Aksh's blog

गरीबों के खेत, अमीरों के पेट

गरीबों के खेत, अमीरों के पेट

पिछले कुछ समय से दो खबरों से जुड़ी बातें लगातार अखबारों और इलेक्ट्रानिक चैनलों में जोर-शोर से आ रहीं हैं। एक बढ़ती मँहगाई जिससे आम जन त्राहि-त्राहि कर रहा है। दूसरा सरकारी व्यवस्था में सड़ता अनाज। भारत में रोज ना जाने कितने पेट खाली ही सो जाते हैं, इस उम्मीद में कि शायद कल पेट भर जाये। आखिर इस व्यवस्था का दोषी कौन है?

देश को बचना है तो जंगल बचाओ

देश को बचना है तो जंगल बचाओ

अगर देश प्राक्रतिक सम्पदा  को बचना है तो जंगल बचाओ I जब तक जंगल है हम जैविक खेती या प्राकृतिक खेती का सपना देश सकते है रासायनिक खेती से छुटकारा पाने का एक विकल्प है जंगल

भूमि क्षरण का गहराता संकट कारण एवं निवारण

भूमि क्षरण

भूमि एक अत्यन्त ही महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन जो हमें भोजन, ईधन, चारा एवं लकड़ी प्रदान करती है। दुर्भाग्यवश भारत में सदियों से खाद्यान्न उत्पादन हेतु भूमि का शोषण किया गया है जो भूमि क्षरण के प्रमुख कारणों में से एक है। भूमि क्षरण के फलस्वरूप उसकी उपजाऊ क्षमता खत्म हो जाती है जिसके कारण उपजाऊ भूमि बंजर भूमि में तब्दील हो जाती है। क्षरित भूमि किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए बहुत बड़ी हानि है। भारत में विभिन्न कारणों से भूमि क्षरण की दर में लगातार वृद्धि हो रही है। सिकुड़ते भूमि संसाधन आज भारत जैसे विकासशील देश के लिए सबसे बड़ी समस्या है। देश में मनुष्य भूमि अनुपात मुश्किल से 0.48 हेक्टेयर प्

किसान की समृद्धि और विकास मतलब देश की समृद्धि

किसान की समृद्धि और विकास मतलब देश की समृद्धि

भूमि' कृषि प्रधान भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार है। देश की दो तिहाई से अधिक आबादी आज भी  कृषि, पशुपालन और इससे सम्बंधित व्यवसायों पर निर्भर है। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली देश की 70 प्रतिशत से अधिक आबादी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पूरी तरह भूमि पर निर्भर है, लेकिन हाल के वर्षों में सरकार भूमि अधिग्रहण से ग्रामीण क्षेत्रों की कृषि योग्य निजी और सार्वजनिक जमीन निरन्तर सिकुड़ती जा रही है।

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