कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए महिलाओं की सहभागिता जरूरी

कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए महिलाओं की सहभागिता जरूरी

कृषि में महिलाओं का योगदान काफी अहम है। कृषि क्षेत्र में कुल श्रम की 60 से 80 फीसदी तक हिस्सेदारी महिलाओं की होती है। फूड एंड एग्रीकल्चर आर्गनाइजेशन (एफएओ) के एक अध्ययन से पता चला है कि हिमालय क्षेत्र में प्रति हैक्टेयर प्रति वर्ष एक पुरुष औसतन 1212 घंटे और एक महिला औसतन 3485 घंटे कार्य करती है। इस आंकड़े के माध्यम से ही कृषि में महिलाओं के अहम् योगदान को आंका जा सकता है। महिलाओं की कृषि में यह सहभागिता क्षेत्र विशेष की खेती पर निर्भर करती है फिर भी उनके योगदान को नकारा नहीं जा सकता है। कृषि कार्यों के साथ ही महिलाएं मछली पालन, कृषि वानिकी और पशु पालन में भी योगदान दे रही हैं।

कृषि में अहम योगदान देने के बावजूद महिला श्रमिकों की कृषि संसाधनों और इस क्षेत्र में मौजूद असीम संभावनाओं में भागीदारी काफी कम है। इस भागीदारी को बढ़ाकर ही महिलाओं को कृषि से होने वाले मुनाफे को बढ़ाया जा सकता है। भा.कृ.अनु.प. के डीआरडब्ल्यूए की ओर से नौ राज्यों में किए गए एक शोध से पता चला है कि प्रमुख फसलों के उत्पादन में महिलाओं की 75 फीसदी भागीदारी, बागवानी में 79 फीसदी और कटाई उपरांत कार्यों में 51 फीसदी महिलाओं की हिस्सेदारी होती है। पशु पालन में महिलाएं 58 फीसदी और मछली उत्पादन में 95 फीसदी भागीदारी निभाती हैं। कृषि क्षेत्र में महिलाओं की सबसे अधिक भागीदारी हिमाचल प्रदेश में है। यह आंकड़े काफी उत्साहजनक हैं। महिलाओं को कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए यदि उन्हें उचित मौके दिए जाएं और जरूरी तकनीक उपलब्ध कराई जाए तो उनकी हिस्सेदारी को और अधिक लाभ के रूप में परिणित किया जा सकता है।

विभिन्न राज्यों की महिलाओं की कृषि क्षेत्र में भागीदारी

नेशनल सैंपल सर्वे आफिस (एनएसएसओ) के आंकड़ों के मुताबिक 23 राज्यों में कृषि, वानिकी और मछली पालन में कुल श्रम शक्ति का 50 फीसदी भाग महिलाओं का है। छत्तीसगढ़, बिहार और मध्य प्रदेश में 70 फीसदी से ज्यादा महिलाएं कृषि क्षेत्र पर आधारित हैं, जबकि पंजाब, पश्चिमी बंगाल, तमिलनाडु और केरल में यह संख्या 50 फीसदी है। मिजोरम, आसाम, छत्तीसगढ़, अरूणाचल प्रदेश और नागालैंड में कृषि क्षेत्र में 10 फीसदी महिला श्रम शक्ति है। कृषि में पुरूषों के साथ महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाकर सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों को काफी हद तक बदला जा सकता है। इससे महिलाओं के सशक्तिकरण को और अधिक बढ़ावा भी मिल सकता है।

 

फसल उत्पादन में महिलाओं का योगदान

फसल उत्पादन के प्रत्येक महत्वपूर्ण कार्य में महिलाओं का अहम योगदान होता है। इसमें पौध लगाना,खरपतवार हटाना और कटाई उपरांत की प्रक्रिया में सक्रिय भागीदारी शामिल है। बागवानी में भी महिलाएं काफी अहम योगदान देती हैं इनमें पौध लगाना, बेसिन बनाना, कटाई-छंटाई करना और खाद डालना शामिल हैं। इस क्षेत्र में यदि महिलाओं को अधिक वैज्ञानिक जानकारी उपलब्ध कराते हुए उनकी पहुंच बाजार तक कराने की कोशिश की जाए तो मुनाफा और अधिक बढ़ सकता है।

 

पशु उत्पादन और प्रबंधन

पशु उत्पादन और प्रबंधन के क्षेत्र में महिलाएं प्रमुख योगदान दे रही हैं। गाय और भैंसों के पालन में महिलाएं रोजाना तीन से छह घंटे तक श्रम करती हैं। इसमें दुधारू पशुओं को चारा खिलाना, दूध निकालना और पशु आवास-पशु की साफ-सफाई का कार्य शामिल है। चारा एकत्रित करने में भी महिलाएं काफी महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। पशु उत्पादन और प्रबंधन के लिए जरूरी तकनीकी ज्ञान, कौशल और पशु पालन हेतु वित्तीय व्यवस्था जैसे बिंदु महिलाओं से जुड़े हैं।

 

मछली उत्पादन

मछली उत्पादन में प्रमुखतः तटीय और गैर-तटीय क्रियाएं शामिल होती हैं। तटीय कार्यों में मछली पकड़ना मुख्य कार्य है जबकि गैर-तटीय कार्यों में मछलियों के लिए जाल बनाना मुख्य कार्य माना जाता है। मछली उत्पादन में महिलाओं से संबंधित दो मुद्दे शामिल हैं-पहला, संसाधन और उत्पादों में उनकी सहभागिता और दूसरा मछली उत्पादन से महिलाओं के जीविकोपार्जन की व्यवस्था करना। इस क्षेत्र में कार्य करने वाले अधिकतर श्रमिक गैर-संगठित हैं।

प्राकृतिक संसाधन

देश के ज्यादातर ग्रामीण समुदाय अपनी आजीविका के लिए ग्रामीण संसाधनों पर ही निर्भर रहते हैं। इनमें से प्रमुख जल, खाद्य, ईंधन, चारा, घर और अन्य सामाजिक जरूरतों को पूरा करने वाले संसाधन हैं। महिलाएं प्राकृतिक संसाधनों से आजीविका का स्त्रोत प्राप्त करने में प्रमुख भूमिका निभा रही हैं। इसमें खाद्य पदार्थ एकत्रित करने, ईंधन के लिए लकड़ियां इकट्ठी करने, छोटे पौधों को रोपना जैसे कार्य शामिल हैं। महिलाओं की इस क्षेत्र में प्रमुख चुनौती उनके योगदान को चिन्हित करने और सूचना-तकनीक तक उनकी पहुंच को और अधिक मजबूत बनाने की है।

प्रमुख चुनौतियां

कृषि क्षेत्र में तेजी के साथ परिवर्तन हो रहे हैं। यह परिवर्तन वातावरण, जलवायु और तकनीक सभी क्षेत्रों में हो रहे हैं। इसका असर समाज के सभी क्षेत्रों में समान रूप से पड़ रहा है। समाज में आ रहे परिर्वतनों जैसे परिवार की संरचना, पलायन और अंतरराष्ट्रीय राजनीति सभी कुछ इससे प्रभावित हो रहे हैं। ऐसे में नई रणनीतियों को बनाते समय इन सभी परिवर्तनों को भी परखना होगा। इन चुनौतियों से निपटने के लिए भा.कृ.अनु.प. का डीआरडब्ल्यूए,भुवनेश्वर 1996 से सतत प्रयासरत है। दुनिया में अपने तरह के इस पहले संस्थान ने महिलाओं के कृषि में योगदान को पहचानते हुए उनके अनुरूप नई विधियां बनाने और नई तकनीक विकसित करने में अहम भूमिका निभाई है। अब कोशिश की जा रही है कि गृह विज्ञान को एक विषय के रूप में और अधिक उन्नत बनाते हुए इसे उद्योगों के साथ जोड़ा जाए। इसी संदर्भ में राष्ट्रीय कृषि शोध प्रणाली के वैज्ञानिकों और शिक्षाविदों को भी इससे जोड़ा जा रहा है। ऐसा करके कृषि में प्रशिक्षित महिलाओं की कमी को दूर किया जा सकेगा।

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