Organic Farming

नीम: एक अच्छा कार्बनिक उर्वरक

मैं खाद के बारे में पहले भी चर्चा की है. अब अपने समय कुछ उपलब्ध जैविक उर्वरकों पर कुछ प्रकाश डाल करने के लिए. आज के संस्करण नीम है.
वानस्पतिक नाम: Azadirachta इंडिका
आम नाम: निम, नीम, लिंबा, और निम्बा आदि
नीम मोटा और नहीं बल्कि कम स्टेम साथ एक पेड़ है. यह 12-15 मीटर तक बढ़ सकता है. नीम के बीज पेड़ से और तेल निकाला जाता है वहाँ से एकत्र कर रहे हैं. डी तेल से सना हुआ नीम केक मिट्टी के निषेचन में उपयोग किया जाता है.

हमे बर्बादी की कगार पर लाकर खड़ा कर दिया इन रासायनिक खादों ने :गिरिजा कान्त सिंह

हमे बर्बादी की कगार पर लाकर खड़ा कर दिया इन रासायनिक खादों ने ऐसे शव्दों को न्यूट्रीवर्ड कम्पनी के डायरेक्टर  श्री गिरिजा कान्त सिंह जी ने ।उन्होंने फसल में लगातार बदने बाले उर्वरकों के प्रति चिन्ता जाहिर की उन्होंने कहा कि रासायनिक उर्वरकों का  प्रयोग वर्ष प्रति वर्ष बढ़ता जा रहा है। उत्पादन बढ़ाने के उद्देश्य से रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशको का चलन हरित क्रांति में किया गया।हमारे प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक स्वामीनाथन जी ने रासानिक खादों और संकर प्रजाति के बीजों की वकालत की। जिसकी  कीमत अव हमारे देश के किसान चुका रहे हैं ,उन्होंने साथ ही यूरिया के अंधाधुंध प्रयोग पर चिन्ता जाहिर की साथ ही उन्हो

जिरेनियम की खेती

कम पानी और जंगली जानवरों से परेशान परंपरागत खेती करने वाले किसानों के लिए जिरेनियम की खेती राहत देने वाली साबित हो सकती है। जिरेनियम कम पानी में आसानी से हो जाता है और इसे जंगली जानवरों से भी कोई नुकसान नहीं है। इसके साथ ही नए तरीके की खेती ‘जिरेनियम’ से उन्हें परंपरागत फसलों की अपेक्षा ज्यादा फायदा भी मिल सकता है। खासकर पहाड़ का मौसम इसकी खेती के लिए बेहद अनुकूल है। यह छोटी जोतों में भी हो जाती है। जिरेनियम पौधे की पत्तियों और तने से सुगंधित तेल निकलता है।

 

धान की फसल में खरपतवार नियंत्रण के कारगर उपाय

धान की फसल में पाये जाने वाले प्रमुख खरपतवार सावां घास, सावां, टोडी बट्टा या गुरही, रागीया झिंगरी, मोथा, जंगली धान या करघा, केबघास, बंदरा- बंदरी, दूब (एकदलीय घास कुल के), गारखमुडी, विलजा, अगिया, जलकुम्भी, कैना, कनकी, हजार दाना और जंगली जूट हैं। खरपतवार नियंत्रण के लिए निम्रलिखित उपाय अपनावें:-
1. जहां खेत में मिट्टी को लेव बनाकर और पानी भरकर धान को रोपा या बाया जाता है, वहां जो खरपतवार भूमि तैयार करने से पहले उग आते हैं, वे लेव बनाते समय जड़ से उखाड़कर कीचड में दब-सड़ जाते हैं। इसके बाद मिट्टी को 5 से. मी. या अधिक पानी से भरा रखने पर नए व पुराने खरपतवार कम पनप पाते हैं।

मृदा संरक्षण

मृदा संरक्षण (Soil Conservation)

मिट्टी एक अमूल्य प्राकृतिक संसाधन है, जिस पर संपूर्ण प्राणि जगत निर्भर है । भारत जैसे कृषि प्रधान देश में; जहाँ मृदा अपरदन की गंभीर समस्या है, मृदा संरक्षण एक अनिवार्य एवं अत्याज्य कार्य है। मृदा संरक्षण एक प्रक्रिया है, जिसके अन्तर्गत न केवल मृदा की गुणवत्ता को बनाये रखने का प्रयास किया जाता है, बल्कि उसमें सुधार की भी कोशिश की जाती है । मृदा संरक्षण की दो विधियाँ हैं -

क) जैवीय विधि ब) यांत्रिक विधि ।

सिट्रोनेला (जावा घास) की खेती

सुगंधित पौधों के वर्ग में मुख्य रूप से जो पौधे हैं, वे हैं – लेमन ग्रास, सिट्रोनेला, तुलसी, जिरेनियम पामारोजा/रोशाग्रास। नींबू घास की दो प्रजातियाँ – सी. फ्लेसुसोयम – भारत में पाई जाती है, जबकि सी. स्टेरिट्स – दक्षिणी पूर्वी देशों में पाई जाती है।

गेहूं की कटाई के बाद तैयार करें हरी खाद

गेहूं की कटाई के बाद किसान को खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए हरी खाद तैयार करनी चाहिये।गेहूं 30 अप्रैल तक पूरी तरह से कट जाएगा। इसके बाद ज्यादातर खेत खाली पड़े रहते है। जिसमें किसान ढैंचा, सन, आदि की उपज लेकर हरी खाद ले सकते हैं। किसान भाई तीसरी फसल के रूप में मूंग (दलहन) की खेती कर सकते है। यह फसल 65-70 दिनों में तैयार हो जाती है। इससे भूमि की उर्वरा शक्ति भी बढ़ती है। इस दौरान किसान चाहे तो तीसरी फसल के रूप में सूरजमुखी (तिलहन) की खेती कर सकते है।

ग्लैडिओलस की खेती

 

शल्ककन्दीय फूल के रूप में ग्लैडिओलस विश्व स्तर पर कट-फ्लावर के रूप में उगाया जाता है। भारत में इसकी खेती बंगलुरु, श्रीनगर, नैनीताल, पुणे व उटकमण्डलम में वृहत रूप से होता है। झारखण्ड के धनबाद में अब इसकी खेती छोटे पैमाने पर आरम्भ हो चुकी है। इसकी खेती गृह बाजार तथा निर्यात, दोनों हेतु किया जाता है। शीतकाल में ग्लैडिओलस का यूरोपियन देशों में निर्यात किया जाता है। जिसके कारण काफी विदेशी मुद्रा का अर्जन होता है।

 
 
किस्म

सदाबहार धनिया उपजायें

जलवायु एवं भूमि – धनिया की खेती शीतोष्ण एवं उपोष्ण दोनों प्रकार की जलवायु में की जाती है। बसंत ऋतु में पाला पडऩे से पौधों को क्षति होने की संभावना रहती है। इसका अंकुरण होने के लिए 20 डिग्री से.ग्रे. तापमान की आवश्यकता होती है। धनिया की खेती के लिए दोमट मृदा सर्वोत्तम होती है। ऐसी भूमि जिसमें कार्बनिक पदार्थ की मात्रा ज्यादा हो एवं जल निकास की भी उचित व्यवस्था हो, इसकी खेती के लिए उचित होती है। इसकी खेती के लिए भूमि का पी.एच. मान 6.5-8 के बीच होना चाहिए, क्योंकि ज्यादा अम्लीय एवं लवणीय मृदा इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती है।

स्ट्राबेरी की उन्नत खेती

 

भारत में स्ट्राबेरी की खेती सर्वप्रथम उत्तर प्रदेश तथा हिमाचल प्रदेश के कुछ पहाड़ी क्षेत्रों में 1960 के दशक से शुरू हुई, परन्तु उपयुक्त किस्मों की अनुउपब्धता तथा तकनीकी ज्ञान की कमी के कारण इसकी खेती में अब तक कोई विशेष सफलता नहीं मिल सकी। आज अधिक उपज देने वाली विभिन्न किस्में, तकनीकी ज्ञान, परिवहन शीत भण्डार और प्रसंस्कण व परिरक्षण की जानकारी होने से स्ट्राबेरी की खेती लाभप्रद व्यवसाय बनती जा रही है। बहुद्देशीय कम्पनियों के आ जाने से स्ट्राबेरी के विशेष संसाधित पदार्थ जैसे जैम, पेय, कैंडी इत्यादि बनाए जाने के लिये प्रोत्साहन मिल रहा है।

जलवायु

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