Organic Farming

जैविक खाद प्रकार तथा उनमें पाए जाने वालें तत्व

 जैविक खादों का मृदा उर्वरता और फसल उत्पादन में महत्व
●     जैविक खादों के प्रयोग से मृदा का जैविक स्तर बढ़ता है, जिससे लाभकारी जीवाणुओं की संख्या बढ़ जाती है और मृदा काफी
उपजाऊ बनी रहती है ।  
●   जैविक खाद पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक खनिज पदार्थ प्रदान कराते हैं, जो मृदा में मौजूद सूक्ष्म जीवों के द्वारा पौधों को 
मिलते हैं जिससे पौधों स्वस्थ बनते हैं और उत्पादन बढ़ता है ।
●  रासायनिक खादों के मुकाबले जैविक खाद सस्ते, टिकाऊ तथा बनाने में आसान होते हैं । इनके प्रयोग से मृदा में ह्यूमस की 

मशरूम उत्पादन...गांव में खेती, शहर में कमाई

लोगों के खाने की थाली में मशरूम ने एक खास जगह बना ली है। छोटे से गांव की रसोई से लेकर फाइव स्टार होटल के मेन्यू तक में मशरूम की पहुंच बन गई है। लेकिन जिस अनुपात में मशरूम की मांग है, उस अनुपात में देश में इसका उत्पादन नहीं हो पा रहा है। ऐसे में मशरूम उत्पादन कर आप अपने स्वरोजगार को बढ़ाने के साथ-साथ बेहतर कमाई भी कर सकते हैं।

शिमला मिर्च की जैविक खेती

भूमि :-

शिमला मिर्च के लिए अच्छी उपजाऊ जमीन जिसमे जीवांश कि मात्रा अधिक हो आवश्यक होती  है भूमि कि प्रकृति  बलुई दोमट होनी चाहिए इस प्रकार से चुनी हुई जमीन कि ३-४ बार अच्छी तरह से खुदाई करके मिटटी को अच्छी प्रकार से तैयार कर लिया जाता है  |

जलवायु :- 

शिमला मिर्च की उन्नत खेती

सब्जियों मे शिमला मिर्च की खेती का एक महत्वपूर्ण स्थान है। इसको ग्रीन पेपर, स्वीट पेपर, बेल पेपर आदि विभिन्न नामो से जाना जाता है। आकार एवं तीखापन मे यह मिर्च से भिन्न होता है। इसके फल गुदादार, मांसल, मोटा, घण्टी नुमा कही से उभरा तो कही से नीचे दबा हुआ होता है। शिमला मिर्च की लगभग सभी किस्मो मे तीखापन अत्यंत कम या नही के बराबर पाया जाता है। इसमे मुख्य रूप से विटामिन ए तथा सी की मात्रा अधिक होती है। इसलिये इसको सब्जी के रूप मे उपयोग किया जाता है। यदि किसान इसकी खेती उन्नत व वैज्ञानिक तरीके से करे तो अधिक उत्पादन एवं आय प्राप्त कर सकता है। इस लेख के माध्यम से इन्ही सब बिंदुओ पर प्रकाश डाला गय

उर्वरकों की उपयोग क्षमता बढ़ांए

खाद की मात्रा को निर्घारित करने वाले कारक

शस्य चक्र :- फसल चक्र में यदि हरी खाद उगा रहें हैं या दलहनी फसल उगा रहें है, तो इसके बाद बाली फसलों को नत्रजन के खादों की कम आवष्यकता हैं। 

फसल की किस्म :- अलग-अलग फसलों कि पोषक तत्व संम्बधी आवष्यकता अलग-अलग होती हैं। उदाहरण के लियें दलहनी फसलों की नत्रजन की आवष्यकता गेहॅू या गन्नों की फसल की तुलना में कम होती हैं। 

मूंगफली के प्रमुख रोग एवं बचाब

मूंगफली के दानों से 40-45% तेल प्राप्त होता है जो कि प्रोटिन का मुख्य स्त्रोत है। मूंगफली की फल्लियों का प्रयोग वनस्पति तेल एवं खलियों आदि के रुप में भी किया जाता है। मूंगफली का प्रचुर उत्पादन प्राप्त हो इसके लिये पौध रोग प्रबंधन की उचित आवश्यकता महसूस होती है। पौध रोग की पहचान एवं प्रबंधन इस दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास है।मूंगफली तिलहनी फसलों के रुप में ली जाने वाली प्रमुख फसल है। मूंगफली की खेती मुख्य रुप से रेतीली एवं कछारी भूमियों में सफलता पूर्वक की जाती है।

मूंगफली के प्रमुख रोग एवं रोग जनक:

 

मूँगफली की वैज्ञानिक खेती

बहुपयोगी व्यापारिक फसल-मूँगफली 

                 भारत की तिलहन फसलो  में मूँगफली का मुख्य स्थान है । इसे तिलहन फसलों का राजा तथा गरीबों के बादाम की संज्ञा दी गई है। इसके दाने में लगभग 45-55 प्रतिशत तेल(वसा) पाया जाता है जिसका उपयोग खाद्य पदार्थो के रूप में किया जाता है। इसके तेल में लगभग 82 प्रतिशत तरल, चिकनाई वाले ओलिक तथा लिनोलिइक अम्ल पाये जाते हैं। तेल का उपयोग मुख्य रूप से वानस्पतिक घी व साबुन बनाने में किया जाता है। इसके अलावा मूँगफली के तेल का उपयोग श्रंगार प्रसाधनों, शेविंग क्रीम आदि के निर्माण में किया जाता है।

गन्ना की खेती

गन्ना की खेती 

ईंख की व्यावसायिक खेती गुड़ बनाने एवं इसका रस पीने के लिए की जाती है। ईंख एक नकदी फसल है, इसे एक वर्ष रोपकर दो खूँटी फसल के साथ लगातार तीन वर्षों तक उपज लिया जा सकता है। झारखण्ड राज्य के करीब 500 हेक्टेयर में गन्ना की खेती होती है। प्रमुख जिलों जैसे राँची, गुमला, गोड्डा, गढ़वा, कोडरमा, लोहरदगा आदि में इसकी खेती ज्यादातर की जाती है।

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