Organic Farming

मक्का से अधिक उपज एवं आमदनी हेतु सस्य तकनीक

मक्का विश्व की एक प्रमुख खाद्यान्न फसल है। मक्का में विद्यमान अधिक उपज क्षमता  और  विविध उपयोग के कारण इसे खाधान्य फसलों की रानी कहा जाता है। पहले मक्का को  विशेष रूप से गरीबो  का मुख्य भोजन माना जाता था परन्तु अब ऐसा नही है । वर्तमान में इसका उपयोग मानव आहार (24 %) के  अलावा कुक्कुट आहार (44 % ),पशु आहार (16 % ), स्टार्च (14 % ), शराब (1 %) और  बीज (1 %) के  रूप में किया जा रहा है । गरीबों का भोजन मक्का अब अपने पौष्टिक गुणों के कारण अमीरों के मेज की शान बढ़ाने लगा है। मक्का के दाने में 10 प्रतिशत प्रोटीन, 70 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 4 प्रतिशत तेल, 2.3 प्रतिशत क्रूड फाइबर, 1.4 प्रतिशत राख तथा

क्षेत्र के अनुसार फूलगोभी की उन्‍नत किस्‍में

 

Varieties प्रजाति
Developed By विकसित की
Average yield औसत उपज
Characters गुण
 

September Maturity - सितंबर में पकने वाली
 
 
 
 

अर्ली कुवांरी

Early Kunwari

PAU Ludhiana
 
Very early, Sowing in middle to end of May, harvesting from mid Sept.to mid Oct. Suitable for Northern Planins
 

 

पुसा कार्तिक संकर

Pusa Kartik Hybrid

शुष्क क्षेत्रों में फल आधारित बहुफसलीय खेती प्रणाली

शुष्क कृषि क्षेत्र में पंजाब और हरियाणा, राजस्थान एवं कच्छ  के भाग शामिल हैं। ये क्षेत्र देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र के 9.78 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करते है तथा 319 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल पर फैलें है। शुष्क क्षेत्रों की मिट्टी प्रायः बलूई (लगभग 64.6%) हैं। मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस और तांबा, जस्ता और लोहे जैसे सूक्ष्म पोषक तत्व आमतौर पर कम हैं। मिट्टी में अक्सर उच्च लवणता एवं कम जल धारण क्षमता पायी जाती है। इसके अतिरिक्त, मौसम की अनियमितता, सीमित भू-जल संसाधन तथा मिट्टी का कटाव भी इन क्षेत्रों मे चिंता का विषय है। भारतीय शुष्क क्षेत्रों में, वार्षिक औसत वर्षा बहुत कम (200 से 450 मिमी) औ

जाने कैसे उगाएं केले का पेड़

घर पर बगीचे में केले का पेड़ उगाना बड़ा ही आसान होता है और इनकी मेंटेनेंस करना उससे भी सरल। अगर आप नरम जलवायु में रहते हैं तो आपने केले के पेडों को अक्‍सर रोड साइड या हाइवे पर उगते हुए जरुर देखा होगा। तो अगर आपको भी फल आदि के पेड़ लगाने का शौक है तो यहां दिए गए कुछ टिप्‍स को जरुर फॉलो करें।

केले के पेड़ के बारे में जानकारी-

1. सबसे पहली बात यह कि केला पेड़ नहीं होता क्‍योंकि उसके स्‍टेम में लकड़ी नहीं होती बल्कि वह पत्‍तों से लिपटा हुआ होता है।

2. इन पौधों की जिन्‍दगी तब तक होती है जब तक इन पर फल होते हैं। और फल देने के बाद इनकी जिन्‍दगी खतम हो जाती है।

वर्मी कम्पोस्ट से बढ़ाएं खेत की उर्वरता

केंचुआ खाद या वर्मीकम्पोस्ट पोषण पदार्थों से भरपूर एक उत्तम जैव ऊर्वरक है। यह केंचुआ आदि कीड़ों के द्वारा वनस्पतियों एवं भोजन के कचरे आदि को विघटित करके बनाई जाती है।

जैविक खाद और कीटनियंत्रक निर्माण

१ गाय की सींग की खाद

गाय की सींग गाय का रक्षा कवच है। गाय को इसके द्वारा सीधे तौर पर प्राकृतिक ऊर्जा मिलती है। यह एक प्रकार से गाय को ईश्वर द्वारा प्रदत्त एंटीना उपकरण है। गाय की मृत्यु के 45 साल बाद तक भी यह सुरक्षित बनी रहती है। गाय की मृत्यु के बाद उसकी सींग का उपयोग श्रेठ गुणवत्ता की खाद बनाने के लिए प्राचीन समय से होता आ रहा है। सींग खाद भूमि की उर्वरता ब़ाते हुए मृदा उत्प्रेरक का काम करती है जिससे पैदावार बढ जाती है।

कीटनाशक खुद तैयार करें

युवा लोगो की ज़िन्दगी बचाने के लिए शराबखाने सहित समस्त नशीले सामानों की बिक्री हमेशा के लिए बंद किया जाये। नारी जाति की जिन्दगी बचाने के लिए वेश्यालय सहित समस्त असलीलता को परदर्शित करने वाले टीवी, अख़बार, इन्टरनेट तथा फिल्मो को पूर्ण रूप से बंद किया जाये। गौमाता की जिन्दगी बचाने के लिए सभी कत्लखानो को बंद किया जाये तथा उनके भोजन के लिए समस्त गोचर भूमि को खाली किया जाये। किसानो की जिन्दगी बचाने के लिए रासानिक खादों और जहरीली कीट नाशको को बंद किया जाये तथा अंग्रेजो से लेकर अबतक जिंतनी भी ज़मीनों को किसानो से छिना गया है उन ज़मीनों को किसानो को वापस किया जाये। गंगा ,यमुना सहित समस्त नदियों को बांध

खरपतवारों की दोस्ती से करें खेती

हजारो सालों से खेती खरपतवारों को मार कर की जारही है किन्तु अफ़सोस की बात है की खरपतवार नहीं वरन अब किसान ही मरने लगे है. जो दवाई वे कीड़े मकोड़ों और नींदों को मारने के लिए खरीद कर लाते हैं खुद पी कर आत्म हत्या करने लगे हैं. भारतीय प्राचीन खेती किसानी में खेती जमीन को पड़ती कर उपजाऊ और पानीदार बनाईं जाती थी. पड़ती करने से जमीन पूरी तरह अपने आप पैदा होने वाली वनस्पतियों से ढँक जाती थीं इस ढकाव में अनेक धरती में रहने वाले जीव जंतु सक्रीय हो जाते हैं वे बहुत जल्दी जमीन को छिद्रित, उर्वरक और पानीदार बना देते हैं.

ट्राइकोडर्मा का महत्त्व व उपयोग,मृदा जनित बिमारियों का जैव नियंत्रण

ट्राइकोडर्मा पादप रोग प्रबंधन विशेष तौर पर मृदा जनित बिमारियों के नियंत्रण के लिए बहुत की प्रभावशाली जैविक विधि है। ट्राइकोडर्मा एक कवक (फफूंद) है। यह लगभग सभी प्रकार के कृषि योग्य भूमि में पाया जाता है। ट्राइकोडर्मा का उपयोग मृदा - जनित पादप रोगों के नियंत्रण के लिए सफलतापूर्वक किया जा सकता है।

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