Organic Farming

हल्दी व अदरक की खेती

किसान साथियों, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से हल्दी अदरक लगाने का उचित समय 15 मार्च से 15 अप्रैल है, लेकिन अगर आप ने नहीं लगाया है तो अभी भी समय है और आप इसे लगा सकते हैं। इस समय हल्दी लगाने से बरसात होने तक पौधे बड़े हो जाते हैं व ढेर से पत्ते होने के कारण छाया होने लगती है। जिससे खरपतवार कम उगते हैं। हल्दी और अदरक दोनों को सूरज के सीधे प्रकाश की बहुत ज्यादा जरूरत नहीं होती है, अतः इसे बागों में भी अन्तःशस्य फसल के रूप में भी लगाया जा सकता है।यहाँ ध्यान देने योग्य बात ये है कि जब हम बागों में अन्तःशस्य फसल के रूप में इन फसलों को लगाये तो पौधों को खाद की मात्रा अलग से दें।

मूँग की वैज्ञानिक खेती

दलहनी फसलों में मूँग की खेती कई प्रकार से लाभकारी है। शाकाहारी भोजन में मूँग प्रोटीन का एक प्रमुख स्रोत होने के साथ-साथ फली तोड़ने के पश्चात खेत में पलट देने पर यह हरी खाद का लाभ भी देती है। इसे पशु आहार के लिये भी प्रयोग कर सकते हैं।

भूमि एवं उसकी तैयारी-

मूँग की खेती के लिये दोमट भूमि सर्वोत्तम होती है। यदि नमी की कमी हो तो पलेवा कर दो जुताइयाँ कर या रोटावेटर से खेत तैयार किया जा सकता है। यदि पर्याप्त नमी हो तो जीरो टिल फर्टी सीड ड्रिल से बिना जूते खेत में भी इसकी सीधी बुवाई की जा सकती है।

संस्तुत प्रजातियाँ-

गर्मी की गहरी जुताई व उसका महत्व

गर्मी की गहरी जुताई का अर्थ है गर्मी की तेज धूप में खेत के ढाल के आर-पार विशेष प्रकार के यन्त्रों से गहरी जुताई करके खेत की ऊपरी पर्त को गहराई तक खोलना तथा नीचे की मिट्टी को पलटकर ऊपर लाकर सूर्य तपती किरणों में तपा कर कीटाणुरहित करना है। मानसून पूर्व बौछारों (मई माह में) के साथ गर्मी की गहरी जुताई मृदा को पुनः शक्ति प्रदान करती है।

पलवार ( प्लास्टिक मल्च) एक उन्नत तकनीक

पलवार ( प्लास्टिक मल्च) वह तकनीक है जिसमें भूमि की सतह पर जैविक व अजैविक दोनों प्रकार की सामग्री का प्रयोग फसल उत्पादन में इस प्रकार किया जाता है कि फसल में पानी या नमी की कमी ना हो, खरपतवार की रोकथाम हो, मृदा तापमान में स्थिरता रहे व मृदा की उर्वरता बढे। इन सब गुणों को बनाये रखने हेतु पलवार का प्रयोग किया जाता है। वैसे तो पलवार का प्रयोग जाड़े व गर्मी दोनों ही ऋतुओं में किया जा सकता है, पर मुख्यतः गर्मियों में बोई जाने वाली फसलों के लिए यह विशेष लाभदायक है।पलवार पौधे की विकास के लिए एक सूक्ष्म जलवायु प्रदान करता है जिससे मृदा में नमी, पर्याप्त तापमान, आर्द्रता, कार्बन डाइऑक्साइड और सू

ट्राइकोडर्मा

ट्राइकोडर्मा पादप रोग प्रबंधन विशेष तौर पर मृदा जनित बिमारियों के नियंत्रण के लिए बहुत की प्रभावशाली जैविक विधि है। ट्राइकोडर्मा एक कवक (फफूंद) है। यह लगभग सभी प्रकार के कृषि योग्य भूमि में पाया जाता है। ट्राइकोडर्मा का उपयोग मृदा - जनित पादप रोगों के नियंत्रण के लिए सफलतापूर्वक किया जा सकता है।ट्राइकोडर्मा एक घुलनशील जैविक फफुंदीनाशक है जो ट्राइकोडर्मा विरडी या ट्राइकोडर्मा हरजिएनम पर आधारित है। ट्राइकोडर्मा फसलों में जड़ तथा तना गलन/सडन उकठा(फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोर्म्, स्केल रोसिया डायलेकटेमिया) जो फफूंद जनित है, में फसलों पर लाभप्रद पाया गया है। धान,गेंहू, दलहनी फसलें, गन्ना, कपास, सब्जियों

तरबूज और खरबूज की खेती में लगने वाले रोग

गर्मी बिन तरबूज और खरबूज के अधूरी सी लगाती है. तरबूज को जहाँ लोग उसके लाल रंग और मिठास के कारण तो वहीँ खरबूज को मिठास के आलावा उसके सुगन्ध के कारण भी पसन्द करते हैं और इसके बीजों की गिरी के बिना मिठाई सजी-सजाई नहीं लगती. खरबूज और तरबूज फलों के सेवन से लू दूर भागती हैं वहीँ इसके रस को नमक के साथ प्रयोग करने पर मुत्राशय में होने वाले रोगों से आराम मिलता है. इनकी 80 प्रतिशत खेती नदियों के किनारे होती है और इन्हें मुख्य रुप से उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश तथा बिहार में बड़े पैमाने पर उगाया जाता है.

मेंथा में आने वाले रोग व् कीट उनकी रोकथाम

बढ़ते तापमान में मेंथा की खेती को सिंचाई की जरूरत ज्यादा होती है.  किसानों को समय पर सिंचाई करनी चाहिए, जहां दिन में तेज धूप हो, सुझाव यही है कि किसान शाम के समय खेतों में पानी लगाएं.फसल प्रबंधन के तहत कीट और रोग से भी फसल को बचाना है. ऐसा इसलिए क्योंकि मेंथा में कई तरह के कीट और रोग फसल को नुकसान पहुंचाते हैं जिससे किसान को कम उत्पादन के साथ नुकसान हो सकता है. आज हम आपको मेंथा (menthe farming) की खेती में लगने वाले कीट और रोगों के बारे में बताने जा रहे हैं.

माहू

मूंग और उड़द के प्रमुख रोग और उनकी रोकथाम

दलहनी फसलो में उड़द एंव मूंग खरीफ की मुख्य फसल है। कम अवधि की फसल होने के कराण यह अंतवर्तीय व बहुफसलीय पध्दति के लिए भी उपयुक्त है। सिंचाई की सुविधा होने पर इसे ग्रीष्म ऋतु में भी उगाया जाता है। उड़द एंव मूंग की औसत उपज बहुत कम है। अतः उचित कीट एंव रोग प्रबंधन तकनीक अपनाकर उड़द एंव मूंग की उत्पादकता को बढाया जा सकता है।. देश में मूंग और उड़द को प्रोटीन का सबसे अच्छा स्त्रोत माना जाता है. इसके साथ ही खनिज लवण समेत कई  विटामिन भी पाए जाते हैं. इन दालों का सेवन  कई बीमारियों से बचाकर रखता है. ऐसे में किसानों को इनकी खेती अच्छी देखभाल के साथ करना चाहिए.

फसल उत्पादन हेतु सामयिक सलाह

गेहूँ, राई, सरसों की प्रजाति अनुसार समय से कटाई, मड़ाई, सफाई करके अच्छी तरह सुखाकर भंडारण करें।
 देर से बोयी जाने वाली चने की फसल में मार्च के अन्तिम सप्ताह में या अप्रैल के प्रथम सप्ताह में फलीछेदक सूँडी हानि पहुंचाती है। इसकी रोकथाम के लिये डाईमेथोएट 30 ई॰ सी॰ की 600 से 750 मिली मात्रा/है॰ का प्रयोग करें। अंगमारी ग्रस्त पौधों को उखाड़कर नष्ट कर दें। चना मटर में दाने पकने पर समय से काटकर, मड़ाई कर, अच्छी प्रकार सुखाकर भंडारण करें।
 ग्रीष्मकालीन मूँग की बुवाई 10 अप्रैल तक की जा सकती है अतः सरसों, मसूर, गन्ना पेड़ी के खाली खेतों में तुरन्त मूँग की बुवाई कर दें।

महामारी को दृष्टि गत रखते हुए किसान भाई अपने कृषि कार्यों को संपादित करें : डॉ आर के सिंह

कोरोना महामारी को दृष्टि गत रखते हुए देश एवं प्रदेश सरकार द्वारा लगातार किसानों के हित में ठोस कदम उठाए जा रहे हैं। इसी क्रम में सरकार द्वारा बनाए गए नियमों का अनुपालन करते हुए देश हित में इस महामारी को रोकने में अपना सहयोग प्रदान करते हुए डॉ आर के सिंह , अध्यक्ष एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र, आई वी आर आई, बरेली ( उत्तर प्रदेश)ने कुछ कृषि कार्यों को संपादित करने की सलाह दी है।

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