Organic Farming

सेम की व्यावसायिक खेती

सेम सब्जियों के अंतर्गत रोहिलखंड क्षेत्र की एक महत्वपूर्ण फसल है। यहां लगभग 15500 हेक्टेयर क्षेत्रफल में सेम की खेती सफलतापूर्वक की जाती है। सब्जियों में सेम एक दलहनी सब्जी के अंतर्गत आती है, इसलिए पोषण के दृष्टिकोण से बाजार में इसकी बहुत मांग है। सेम की खेती यदि व्यावसायिक रूप से, व वैज्ञानिक विधि से की जाए तो एक तरफ जहां प्रति इकाई क्षेत्रफल में लागत कम आती है, वही दूसरी तरफ कीट बीमारी प्रबंधन के एकीकृत तकनीकों को अपनाकर कृषक अपनी लागत कम करके आय में अधिक वृद्धि कर सकते हैं। साथ ही जो उत्पाद बाजार में बिक्री के लिए उपलब्ध होगा वह खाने के लिए सुरक्षित होगा। सेम लगाने के लिए ऐसी जगह का चुना

उर्द की वैज्ञानिक खेती

दलहनी फसलों में उर्द की खेती कई प्रकार से लाभकारी है। शाकाहारी भोजन में उर्द प्रोटीन का एक प्रमुख स्रोत होने के साथ-साथ फली तोड़ने के पश्चात खेत में पलट देने पर हरी खाद का लाभ भी देती है। उर्द से विभिन्न प्रकार के पकवान बनाने के साथ-साथ इसे बड़ी के रूप में संरक्षित कर ऐसे समय में प्रयोग किया जा सकता है जब घर में अन्य कोई सब्जी उपलब्ध न हो। इसकी चूनी तथा फसल अवशेष को पशु आहार के रूप में प्रयोग किया जाता है।

गन्ना शोध संस्थान के वैज्ञानिकों ने तैयार कीं तीन नई रोगमुक्त किस्में

गन्ना की खेती मुख्य रूप से इसके रस के लिए खेती की जाती है जिसमें से चीनी (शर्करा) संसाधित की जाती है. विश्व में गन्ना उपोष्णकटिबंधीय और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाया जाता है. भारत में विश्व के लगभग 17 प्रतिशत गन्ना का उत्पादन किया जाता है, इसके उत्पादन में देश का लगभग 50 प्रतिशत गन्ना उत्पादन  उत्तर प्रदेश राज्य का क्षेत्र है, इसके बाद महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, गुजरात, बिहार, हरियाणा और पंजाब हैं. गन्ना की अच्छी पैदावार पाने के लिए निम्नलिखित उन्नत किस्में है -

गन्ने में फसल सुरक्षा

गन्ने की फसल से अधिक आर्थिक लाभ के लिए यह आवश्यक है कि फसल में कीटों, बिमारियों और चूहों से होने वाली क्षति पर नियंत्रण रखा जाय। गन्ने की फसल को हानि पहुचाने वाले प्रमुख कारकों यथा कीटों, बिमारियों और चूहों पर नियंत्रण रखने हेतु कुछ सुझाव।

गन्ने के प्रमुख कीट और उनका प्रबंधन –

गन्ने में पेड़ी प्रबन्धन

गन्ने की फसल से अधिक आर्थिक लाभ के लिए यह आवश्यक है कि उसकी पेड़ी भी ली जाये। पेड़ी फसल का प्रबन्धन यदि बेहतर ढंग से किया जाये तो इससे बावग फसल के बराबर ही उपज प्राप्त की जा सकती है।पेड़ी को अलग अलग क्षेत्रों में अलग अलग नाम से जाना जाता है जैसे रैतून, मुड़ आदि

Ø पेड़ी फसल में खेत की तैयारी, बीज तथा बीज की बुवाई का व्यय बचता है।

Ø बावग फसल से कम समय में तैयार होने के कारण इसमें सिंचाई पर कम व्यय होता है तथा नत्रजन का बेहतर उपयोग होता है।

Ø पेड़ी बावग फसल की अपेक्षा कम समय में तैयार हो जाती है अतः फसल चक्र में कम समय लगता है।

लीची की खेती

लीची (लीची चिनेंसिस) गर्मियों का उत्कृष्ट गुणवत्ता वाला एक स्वादिष्ट और रसदार फल है, जो लगभग सभी उम्र के लोगों के द्वारा पसंद किया जाता है। वानस्पतिक रूप से यह सैपिन्डाइसी कुल का सदस्य है। पारभासी, सुगंधित, स्वाद से भरपूर गूदा वाली लीची भारत में ताजे फल के रूप में लोकप्रिय है, जबकि चीन और जापान में इसे सूखे या डिब्बाबंद रूप में ज्यादा पसंद किया जाता है।

पशुओं में वाह्य परजीवी की समस्या और उनकी रोकथाम

मानव ने सभ्यता के प्रारंभ में सर्वप्रथम पशुओं को पालतू बनाकर पालना प्रारंभ किया और उसने पाया की पशुओं से बेहतर उत्पादन प्राप्त करने के लिए उनका समुचित प्रबंधन आवश्यक है। प्रारंभ काल में उसने देखा कि कुछ अन्य जीव जो उनके पालतू पशुओं पर भोजन तथा आवास के लिए आश्रित हैं, जैसे: जोंक, किलनी तथा जुयें इत्यादि और ये जीव परजीवी जन्तु कहलाये। क्योंकि ये जीव पशु शरीर के बहार ही अपने भोजन तथा आवास के लिए आश्रित हैं अतः ये वाह्य परजीवी कहे जाते हैं। वाह्य परजीवियों में प्रमुख हैं जोंक, किलनी, जुयें, माइट्स (कुट्की या चिचड़ी), पिस्सू आदि। वर्षाऋतु, अस्वच्छता, सूर्य का प्रकाश व हवा की कमी होने की

मई में किसान करें सब्जियों की खेती

सही समय पर सही फसल की बुवाई कर किसान अच्छी उपज के साथ मुनाफ़ा भी बेहतर पा सकते हैं. इसके लिए उन्हें यह भी जानना बहुत जरूरी है कि वे फसलों की बुवाई (crop cultivation) में किन फसलों को लें, जिससे उन्हें मुनाफ़ा बेहतर मिल सके. इसी कड़ी में अगर किसान सब्जियों की बुवाई करना चाहते हैं तो आज हम इसी संबंध में जानकारी देने वाले हैं कि किसान मई (may crops) में किन सब्जियों की खेती कर सकते हैं.

फूलगोभी (cauliflower farming)

गन्ने की फसल में सम-सामयिक (अप्रैल व मई माह के) कार्य

गन्ना पच्छिमी उत्तर प्रदेश  की एक प्रमुख फसल है, जिसकी बुआई दिसम्बर से अप्रैल मध्य तक होती है। फरवरी माह में बोयी गई फसल में इस माह (60 दिन की अवस्था पर) सिंचाई के बाद 50 किलोग्राम नत्रजन/ हेक्टेयर (110 किलोग्राम यूरिया) की टॉपड्रेसिंग कर खुदाई करें। शरदकालीन गन्ने में यदि नत्रजन की टॉपड्रेसिंग न की गई हो तो 60 किलोग्राम नत्रजन (132 किलोग्राम यूरिया) की टॉपड्रेसिंग का गुड़ाई कर दें। शरदकालीन गन्ने में यदि अन्तःफसल ली गई हो तो उसकी कटाई के तुरन्त बाद सिंचाई करके यूरिया की टॉपड्रेसिंग करके गुड़ाई करें। 
 

लौकी ,तोरई टिंडा आदि फसलों की खेती

गर्मियों में बेल वाली सब्जियाँ जैसे लौकी, तरोई, टिंडा आदि की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। यह तीनों ही फसलें हरी तरकारीओं में आती हैं । इस समय क्योंकि बाजार में जाड़े की सब्जियां आना कम हो जाती है और उपभोक्ता नई हरी ताजी सब्जी का स्वाद लेना चाहते हैं तो ऐसे में इन तीनों ही सब्जियों की मांग बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। गर्मियों में इन सब्जियों की खेती करके प्रति इकाई क्षेत्रफल में अच्छा लाभ कमाया जा सकता है। लौकी, तरोई, टिंडा को लगाने का उचित समय फरवरी का द्वितीय सप्ताह है। अगेती फसल के रूप में किसान दिसंबर के प्रारंभ में पॉली टनेल में नर्सरी तैयार कर सकते हैं और फरवरी के प्रथम सप्ताह में जब ब

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