Organic Farming

बदलते समय के साथ बदलती खेती

यद्यपि खाद्यान्न आपूर्ति के लिए अब भी अधिकतर भारतीय किसान परम्परागत खेती को ही महत्व देते हैं किंतु शिक्षित किसानों की पीढ़ी ने कुछ नया करने की सोच के साथ परम्परागत खेती की बजाय बाजार की मांग के अनुरूप खेती करना आरम्भ कर दिया है। उनका मानना है कि बीज, खाद, पानी आदि के खर्चे निकालने के बाद परम्परागत खेती से उन्हें कुछ खास लाभ नहीं हो पाता, इसलिए वे कुछ ऐसी फसलों का चयन कर रहे हैं जिनसे उन्हें निरन्तर अधिक आमदनी होती रहे। इसके अलावा, उन्हें इन फसलों में अपने तकनीकी ज्ञान का उपयोग करने का अवसर भी मिलता है।

एग्रो पार्क

लहसुन की खेती

जलवायु -

लहसुन को ठंडी जलवायु कि आवश्यकता होती है वैसे लहसुन के लिए गर्म और सर्दी दोनों ही कुछ कम रहें तो उत्तम रहता है अधिक गर्म और लम्बे दिन इसके कंद निर्माण के लिए उत्तम नहीं रहते है छोटे दिन इसके कंद निर्माण के लिए अच्छे होते है इसकी सफल खेती के लिए 29.76-35.33 डिग्री सेल्सियस तापमान 10 घंटे का दिन और 70 % आद्रता उपयुक्त होती है समुद्र तल से 1000-1400 मीटर तक कि ऊंचाई पर इसकी खेती कि जा सकती है .

 भूमि -

अदरक की उन्नत आर्गनिक जैविक खेती

 : जलवायु —

 

अदरक उष्ण कटिबंधीय मसाला फसल है : सामान्यत अदरक के लिए गर्मी और नमीयुक्त मौसम उपयुक्त रहता है फिर भी 1500 मीटर कि उंचाई के केरल के घाटी प्रदेशों में भी अदरक कि खेती कि जाती है वर्षा पोषित खेती के 1500 -3000 मिमी 0 वार्षिक वर्षा पोषित आवश्यक लिए है बीजों के रोपण से लेकर अंकुरण तक हल्की वर्षा और बढ़वार कि स्थिति में – बीच बीच में भारी वर्षा अच्छी होती है बुवाई के कम से कम एक महीने पहले बरसात समाप्त होनी चाहिए अदरक कि खेती के लिए केरल का मौसम सर्वोत्तम माना गया है .

: भूमि —

अब गोमूत्र से बनेगा फसलों के लिए खास कीट नियंत्रक

रासायनिक खाद और कीटनाशकों के बढ़ते जोखिम से कृषि को बचाने के लिए अब गोमूत्र से हानिरहित कीट नियंत्रक बनाया जाएगा। साथ ही गोबर से जैविक खाद और वर्मिंग कम्पोस्ट का बड़े स्तर पर उत्पादन करने की योजना है। यह पहल लावारिस पीड़ित पशु सेवा संघ द्वारा की गई है। बहू अकबरपुर स्थित गोशाला में तैयार हो रहे तीन प्रोडक्ट का परीक्षण गोशाला की 11 एकड़ की फसलों पर किया जा रहा है।

जहरीले रसायन मतलब खेती में कैंसर

सूखे की मार से तबाह बिहार के कृषि क्षेत्र में फिर एक बड़ा हादसा हो गया है। मक्का यहां की प्रमुख फसल है। इस बार भी बड़े पैमाने पर मक्के की फसल लगाई गई थी। जिन किसानों ने पूसा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित बीज या अपने परम्परागत बीजों से खेती की थी उनके पौधों में दाने भरपूर हैं। लेकिन लगभग दो लाख एकड़ भूमि में टर्मिनेटर सीड (निर्वंश बीजों) का प्रयोग किया गया। इसके पौधे लहलहाये जरूर लेकिन उनमें दाने नहीं निकले। किसानों को कम्पनियों के एजेंटो ने बताया था कि वे उनके बीज लगायें तो पैदावार तिगुनी होगी। गरीबी की मार झेल रहे किसान उनके झांसे में आ गये। जिन किसानों ने चैलेंजर पायोनियर-7, पायोनियर-9

जैविक कीटनाशक अपनाकर पानी प्रदूषण से बचाएं

हम जिस गाँव में रहते हैं वैसे ही लगभग एक लाख गाँव पूरे उत्तर प्रदेश में है जिनमें तेरह करोड़ से भी ज्यादा लोग रहते हैं और इनमें से दस करोड़ से ज्यादा लोगों का जीवन पूर्णत: खेती पर ही आधारित है। इनमें से अधिकांश किसान तथा खेतिहर मजदूर हैं हमारे सारे किसान मिलकर पूरे देश की आवश्यकताओं का एक बटे पाँचवाँ भाग तो खुद ही पूरा करते हैं। 

सामान्य मेथी की उन्नत उत्पादन तकनीक

सामान्य मेथी का वानस्पतिक नाम ट्राइगोनेला फोइनमग्रेसियम एवं एक और वर्ग कस्तूरी मेथी का है जिसका वानस्पतिक नाम ट्राइगोनेला कार्निकुलाटा है। मेथी की खेती मुख्यत: सब्जियों, दानो (मसालों) एवं कुछ स्थानो पर चारो के लिये किया जाता है। मेथी के सूखे दानो का उपयोग मसाले के रूप मे, सब्जियो के छौकने व बघारने, अचारो मे एवं दवाइयो के निर्माण मे किया जाता है। इसकी भाजी अत्यंत गुणकारी है जिसकी तुलना काड लीवर आयल से की जाती है। इसके बीज में डायोस्जेनिंग नामक स्टेरायड के कारण फार्मास्यूटिकल उधोग में इसकी मांग रहती है। इसका उपयोग विभिन्न आयुर्वेदिक दवाओं को बनाने में किया जाता है। इस लेख मे सामान्य मेथी की उ

जड़ युक्त सब्जियों की जैविक खेती

हमारे जीवन में हरी पत्तेदार व जड़ वाली सब्जियों का महत्व है। जिसमें शलजम, मूली, गाजर, अरबी, कमल आदि अति आवश्यक है, जिसका अनुमान हम इस तथ्य से स्पष्ट कर सकते हैं कि विश्व में लगभग 46 करोड़ लोग कुपोषण के शिकार हैं। भारत में कुल जनसंख्या का बहुत बड़ा हिस्सा, विशेषकर महिलाएॅं तथा बच्चे कुपोषण से ग्रस्त हैं, जिसका मुख्य कारण आहार में कम सब्जियों का उपयोग होना है। आहार विशेषज्ञों के अनुसार संतुलित आहार में प्रतिदिन मनुष्य को 285 ग्राम सब्जियाॅं लेनी चाहिए, जिसमें 100 ग्राम जड़ व कन्दीय सब्जियाॅं, 115 ग्राम पत्तेदार सब्जियाॅं एवं 75 ग्राम अन्य सब्जियाॅं होनी चाहिए। 

धान की फ़सल में खरपतवार प्रबन्धन

देश की बढ़ती हुई जनसंख्या के साथ खाद्यानों की मांग को पूरा करना एक गम्भीर चुनौती बनी हुई है । धान हमारे देश की प्रमुख खाद्यान फ़सल है । इसकी खेती विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों में लगभग 4 करोड़ 22 लाख है0 क्षेत्र में की जाती है आजकल धान का उत्पादन लगभग 9 करोड़ टन तक पहुंच गया है । राष्ट्रीय स्तर पर धान कीऔसत पैदावार 20 क्विंटल प्रति हैक्‍टेयर है। जो कि इसकी क्षमता से काफ़ी कम है, इसके प्रमुख कारण है -  कीट एवं ब्याधियां,  बीज की गुणवत्ता,  गलत शस्य क्रियाएं,  तथा खरपतवार।

Pages