Organic Farming

सोयाबीन की वैज्ञानिक खेती

सोयाबीन में लगभग 20 प्रतिशत तेल एवं 40 प्रतिशत उच्‍च गुणवत्‍ता युक्‍त प्रोटीन होता है। इसकी तुलना में चावल में 7 प्रतिशत मक्‍का में 10 प्रतिशत एवं अन्‍य दलहनों में 20 से 25 प्रतिशत प्रोटीन होता है। सोयाबीन में उपलब्‍ध प्रोटीन बहुमूल्‍य अमीनो एसिड लाभसिन (5 प्रतिशत) से स‍मृद्ध होता है। अधिकांश अनाजों में इसकी कमी होती है। इसके अतिरिक्‍त इसमें खनिजों, लवण एवं विटामिनों (थियामिन एवं रिवोल्‍टाविन) की अच्‍छी मात्रा पायी जाती है। इसके अंकुरित दाने में विटामिन सी की पर्याप्‍त मात्रा पाईजाती है।

पपीता की खेती स्वास्थवर्धक तथा लोकप्रिय बागबानी

जलवायु

पपीते की अच्छी खेती गर्म नमी युक्त जलवायु में की जा सकती है. इसे अधिकतम 38 डिग्री सेल्सियस से 44 डिग्री सेल्सियस तक तापमान होने पर उगाया जा सकता है. न्यूनतम पांच डिग्री सेल्सियस से कम नही होना चाहिए. लू तथा पाले से पपीते को बहुत नुकसान होता है. इससे बचने के लिए खेत के उत्तरी पश्चिम में हवा रोधक वृक्ष लगाना चाहिए. पाला पड़ने की आशंका हो तो खेत में रात्रि के अंतिम पहर में धुंआ करके एवं सिंचाई भी करते रहना चाहिए.

भूमि

बैज्ञानिक तरीके से करें बाजरे की खेती

बाजरे की खेती प्रागैतिहासिक काल से अफ्रीका एवं एशिया प्रायद्विप में होती रही है. तमाम मौसम संबंधित कठोर चुनौतियों का सामना खासकर सूखा को आसानी से सहने के कारण राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्रा, ओडीसा, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, उत्तर प्रदेश एवं अन्य सुखा ग्रस्त क्षेत्रों की यह महत्वपूर्ण फसल है. समस्त अनाजवाली फसलों में सूखा के प्रति सर्वाधिक प्रतिरोधक क्षमता बाजरा में पायी जाती है. इसके दानों में 12़4 प्रतिशत नमी, 11़6 प्रतिशत प्रोटीन, 5 प्रतिशत वसा, 67 प्रतिशत काबरेहाइड्रेट एवं 2़7 प्रतिशत मिनरल (लवण) औसतन पाया जाता है. इसे चावल  की तरह या रोटी बनाकर खाया जा सकता है.

काजू की लाभकारी एवं उन्नत खेती

भूमि:
काजू को विभिन्न प्रकार की भूमियों में उगाया जा सकता है आमतौर पर इसे ढलवाँ भूमि में भूक्षरण रोकने के लिए उगाया जाता है वैसे इसके सफल उत्पादन के लिए गहरी दोमट भूमि उपयुक्त रहती है अधिक क्षारीय मृदाएँ इसके सफल उत्पादन में बाधक मानी गयी है पश्चिमी तटवर्ती क्षेत्रों में यह बालू के ढूहों पर भी अच्छी तरह उगता पाया गया है जिसमें कोई अन्य फसल नहीं उगाई जा सकती है

जैविक खेती आधुनिक समय की मांग एवं भविष्य

यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि 60वें दशक की हरित क्रांति ने यद्यपि देश को खाद्यान्न की दिशा में आत्मनिर्भर बनाया लेकिन इसके दूसरे पहलू पर यदि गौर करें तो यह भी वास्तविकता है कि खेती में अंधाधुंध उर्वरकों के उपयोग से जल स्तर में गिरावट के साथ मृदा की उर्वरता भी प्रभावित हुई है और एक समय बाद खाद्यान्न उत्पादन न केवल स्थिर हो गया बल्कि प्रदूषण में भी बढ़ोतरी हुई है और स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा हुआ है जिससे सोना उगलने वाली धरती मरुस्थल का रूप धारण करती नजर आ रही है। मिट्टी में सैकड़ों किस्म के जीव-जंतु एवं जीवाणु होते हैं जो खेती के लिए हानिकारक कीटों को खा जाते हैं। फलतः उत्पादन प्रभा

अमरूद की फसल पर एक मुलाकात

प्रश्‍न- अमरूद का भण्‍डारण कैसे करे?
उत्‍तर- अमरूद का भण्‍डारण जीरो एनर्जी कूल चेम्‍बर में कर सकते है। चेम्‍ब्‍र के अन्‍दर का तापमान बाहर के तापमान से 12 से 14 डिग्री सेल्सियस तक कम रहता है। इसमें फल एवं सब्जियों को लगभग 10 से 15 दिनों तक भण्‍डारित किया जा सकता है।
प्रश्‍न- अमरूद में उस कीट का नियंत्रण कैसे करें जो पेड़ के तने पर रिबन की तरह जाल बनाते है जिसके अन्‍दर गिडार छाल को खाकर नुकसान पहुंचाते हैं।

गौ वंश आधारित उर्वरक जीरो बजट-प्राकृतिक खेती

जीरो बजट का अर्थ है। चाहे कोई भी अन्य फसल हो या बागवानी की फसल हो। उसकी लागत का मूल्य जीरो होगा। मुख्य फसल का लागत मूल्य आंतरवर्तीय फ़सलों के या मिश्र फ़सलों के उत्पादन से निकाल लेना और मुख्य फसल बोनस रूप में लेना या आध्यात्मिक कृषि का जीरो बजट है। फ़सलों को बढ़ने के लिए और उपज लेने के लिए जिन-जिन संसाधनों की आवश्यकता होती है। वे सभी घर में ही उपलब्ध करना, किसी भी हालत में मंडी से या बाजार से खरीदकर नहीं लाना। यही जीरो बजट खेती है। हमारा नारा है। गांव का पैसा गांव में, गांव का पैसा शहरों में नहीं। बल्कि शहर का पैसा गांव में लाना ही गांव का जीरो बजट है।

गौवंश जीवामृत बनाने की विधि

(अ) घन जीवामृत (एक एकड़ खेत के लिए)
सामग्री :-
1. 100 किलोग्राम गाय का गोबर
2. 1 किलोग्राम गुड/फलों का गुदा की चटनी
3. 2 किलोग्राम बेसन (चना, उड़द, अरहर, मूंग)
4. 50 ग्राम मेड़ या जंगल की मिट्टी 
5. 1 लीटर गौमूत्र
बनाने की विधि :- 

एक आसन प्रणाली श्री विधि से धान की खेती

कैरिबियन देश मेडागास्कर में 1983 में फादर हेनरी डी लाउलेनी ने इस तकनीक का आविष्कार किया था। श्री पद्धति धान उत्पादन की एक तकनीक है जिसके द्वारा पानी के बहुत कम प्रयोग से भी धान का बहुत अच्छा उत्पादन सम्भव होता है। इसे सघन धान प्रनाली (System of Rice Intensification-SRI या श्री पद्धति) के नाम से भी जाना जाता है। जहां पारंपरिक तकनीक में धान के पौधों को पानी से लबालब भरे खेतों में उगाया जाता है, वहीं मेडागास्कर तकनीक में पौधों की जड़ों में नमी बरकरार रखना ही पर्याप्त होता है, लेकिन सिंचाई के पुख्ता इंतजाम जरूरी हैं, ताकि जरूरत पड़ने पर फसल की सिंचाई की जा सके। सामान्यत: जमीन पर दरारें उभरने पर

सौंफ़ की उन्नत खेती

सौंफ का वानस्पतिक नाम है Foeniculum vulgare । यह व्यावसायिक रूप से एक वार्षिक जड़ी बूटी के रूप में खेती की जाती है, जो एक मोटा और सुगंधित मसाला फसल है। सौंफ़ देश के विभिन्न भागों में विभिन्न नामों से जाना जाता है। हिंदी में, सौंफ 'saunf' के रूप में जाना जाता है और तमिल में यह perungeerakam 'के रूप में जाना जाता है। भारत में सौंफ के प्रमुख उत्पादन केन्द्रों राजस्थान, आंध्र प्रदेश, पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक और हरियाणा रहे हैं।

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