Organic Farming

अगस्त माह में बागवानी के महत्वपूर्ण कार्य

अगस्त का महीना बागवानी फसलों के लिए सबसे महत्वपूर्ण होता है। आम, अमरूद कटहल, लीची, बेल, नींबू, आंवला आदि के पौधों का रोपण करें।
नव रोपित फलों के पौधों मैं कलम के नीचे से कल्ले नियमित रूप से तोड़ते रहे।
नव रोपित पौधों में दीमक के प्रकोप के बचाव हेतु क्लोरो पायरी फॉस 3 मिलीलीटर 1 लीटर पानी में घोल बनाकर थाँवले में प्रयोग करें।
पौधों को जंगली पशुओं से बचाने के लिए पौधों को भरा या पुआल से ढक दें अथवा छप्पर बना दे।

अगस्त माह में फसल में क्या करें

धान में यूरिया की एक तिहाई मात्रा कल्ले निकलते समय तथा शेष बची हुई एक तिहाई मात्रा गोभ में आने से पहले टॉप ड्रेसिंग के रूप में दें।
यदि रोपाई के बाद खरपतवारनाशी का प्रयोग न कर पाये हों तो रोपाई के 15 से 25 दिन (खरपतवार की 3-5 पत्ती तथा 5-7 सेंटीमीटर ऊँचाई) की अवस्था पर बिस्पायरीबैक सोडियम 10% एस॰सी॰ 100-120 मिलीलीटर रसायन 120 लीटर पानी में घोलकर /एकड़ की दर से छिड़काव करें। छिड़काव के 48-72 घण्टे बाद खेत में पानी भर दें।

गन्ने की फसल में अगस्त माह किसान भाई क्या करें

अन्तः कर्षण क्रियायें –
अगस्त माह के अन्त तक गन्ने के थानों पर अन्तिम रूप से 20-25 सेंटीमीटर मिट्टी चढ़ायें उसके पश्चात वर्षा न होने पर सिंचाई करें।
अधिक वर्षा की स्थिति में जलनिकास की व्यवस्था करें।
सूखे पत्तों को निकाल कर लाइनों के मध्य पलवार के रूप में बिछा दें। इससे बेधक कीटों का प्रकोप कम होगा तथा भूमि में नमी संरक्षण एवं कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ेगी।
माह के अन्त तक पहली बँधाई के 50 सेंटीमीटर ऊपर बढ़वार बिन्दु को छोड़ते हुये, दूसरी बँधाई कर दें।
जून-जुलाई में यदि गन्ने में ढेंचा बोया हो तो उसकी पलटाई कर दें।

केला के पर्ण चित्ती रोग(लीफ स्पॉट) का प्रबन्धन कैसे करें ?

केला विश्व के 130 से ज्यादा देशों में उगाया जाता है I भारत, चीन, फिलीपिंस, ब्राजील, इंडोनेशिया , एक्वाडोर ग्वाटामाला, अंगोला बुरुंडी इत्यादि विश्व के प्रमुख केला उत्पादक देश है I विश्व में उत्पादकता के दृष्टिकोण से भारत चौथे स्थान पर है ,इसकी उत्पादकता 34.9 टन /हेक्टेयर है I उत्पादन के दृष्टिकोण से भारत प्रथम स्थान पर है I हमारे देश में तमिलनाडु, आँध्रप्रदेश ,महाराष्ट्र ,गुजरात, कर्नाटक एवं बिहार प्रमुख केला उत्पादक प्रदेश है I भारत में केला की खेती 0.88 मिलीयन हेक्टेयर में होती है , जिससे 30.8 मिलीयन टन उत्पादन प्राप्त होता है I

मूँगफली की खेती

मूंगफली एक ऐसी फसल है जिसका कुल लेग्युमिनेसी होते हुये भी यह तिलहनी के रूप मे अपनी विशेष पहचान रखती है।

राजस्थान में बीकानेर जिले के लूणकरनसर में अच्छी किस्म की मूँगफली का अच्छा उत्पादन होने के कारण इसे राजस्थान का राजकोट कहा जाता हैं।

मूंगफली की खेती करने से भूमि की उर्वरता भी बढ़ती है। यदि किसान भाई मूंगफली की आधुनिक खेती करता है तो उससे किसान की भूमि सुधार के साथ किसान कि आर्थिक स्थिति भी सुधर जाती है।

जुलाई माह में गन्ने की फसल में क्या करें

अन्तः कर्षण क्रियायें

जुलाई माह से गन्ने की लम्बाई बढ़नी शुरू हो जाती है। कल्ले फूटने/निकलने की क्रिया को रोकने के लिये गन्ने की लाइनों पर मिट्टी चढ़ायें इससे गन्ना गिरने से भी बचेगा।

मिट्टी चढ़ाने के बाद यदि वर्षा नहीं होती है तो जड़ों के बेहतर विकास के लिये सिंचाई करें।

सूखे पत्तों को निकाल कर लाइनों के मध्य पलवार के रूप में बिछा दें।

माह के मध्य तक भूमि सतह से 1.5 मीटर की ऊँचाई पर, ऊपर के पत्तों तथा वृद्धि बिन्दु को छोड़कर, पहली बँधाई कर दें।
फसल सुरक्षा –

जुलाई माह में फसल उत्पादन हेतु आवश्यक कार्य

जुलाई माह में धान की सभी प्रजातियों की रोपाई पूर्ण कर लें। रोपाई के लिये 21 दिन की पौध सर्वोत्तम रहती है। पौध को 3-4 सेंटीमीटर भरे हुये पानी में सावधानी से उखाड़ें और गड्डी बांधकर जड़ों को पानी में डुबोकर रक्खें। पौध को उखाड़ने के बाद जितनी जल्दी सम्भव हो उसकी रोपाई कर दें। रोपाई के लिये 20 सेंटीमीटर लाइन से लाइन तथा 15 सेंटीमीटर पौधे से पौधे की दूरी रखते हुये एक स्थान पर 2 स्वस्थ पौधों की रोपाई करें।

पटसन के रोग तथा रोकथाम एवं उपचार

विश्‍व में कपास के बाद पटसन दूसरी महत्वपूर्ण वानस्पतिक रेशा उत्पादक वाणिज्यिक फसल है।पटसन की खेती मुख्यतया बंगलादेश, भारत, चीन, नेपाल तथा थाईलैंड में की जाती है। भारत में पश्‍ि‍चम बंगाल, बिहार, असम इत्यादि राज्यों में पटसन कि खेती की जाती है। देश में पटसन का क्षेत्रफल 8.27 लाख हैक्टेयर है।पटसन का वानस्पतिक नाम कोरकोरस केपसुलेरिस तथा को. आलीटोरियस है जो कि स्परेमेनियोसी परिवार का सदस्य है।

श्री पद्धति (एस॰आर॰आई॰ पद्धति) से धान की खेती

देश की 70% जनसंख्या का मुख्य आहार चावल है। एक अनुमान के अनुसार देश की जनसंख्या लगभग 2% वार्षिक दर से बढ़ रही है जिसके पोषण के लिये सन 2025 तक 130 तथा सन 2050 तक 180 मिलियन टन चावल की आवश्यकता होगी। सभी फसलों एवं जीवधारियों के मध्य समान प्रतियोगिता होने के कारण इन लक्ष्यों को धान के अन्तर्गत क्षेत्रफल को बढ़ाकर प्राप्त करना सम्भव नहीं है अतः प्रति इकाई क्षेत्रफल में धान की उत्पादकता को बढ़ाकर ही इस लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। परम्परागत धान उत्पादन की विधि (रोपाई विधि) में वर्तमान में धान उत्पादन की लागत तथा संसाधनों की खपत तो बढ़ती जा रही है परन्तु इस विधि में एकदम से उत्पादन क्षमता को बढ़

बुबाई विधि से धान की खेती

सन 1970 से पूर्व भारत में धान की सीधी बुवाई छिटकवाँ विधि से की जाती थी परन्तु बरसात के मौसम में छिटकवाँ विधि से बोये गये धान में खरपतवार नियन्त्रण करना अत्यधिक कठिन कार्य था तथा तब खड़ी फसल में खरपतवार नियन्त्रण के लिये कोई रसायन भी उपलब्ध नहीं था। खरपतवारों की अधिकता के कारण उत्पादन बहुत कम होता था । अतः ऐसी परिस्थिति में धीरे-धीरे सभी किसान अधिक कठिन तथा अधिक खर्चीली रोपाई विधि को अपनाने लगे जिसमें खेत में पानी भरा रखकर खरपतवारों को रोका जाता है तथा भरे हुये पानी में उपयोग के लिये खरपतवारनाशी भी उपलब्ध हैं। परन्तु रोपाई विधि से एक किलोग्राम धान के उत्पादन में 3000 से 5000 लीटर पानी व्यय ह

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