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भैंस के प्रसूतिकाल के रोग एवं उपचार

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भैंस के प्रसूतिकाल के रोग एवं उपचार

भैंस का प्रसूतिकाल प्रसव के बाद का वह समय है जिसमें मादा जननांग विशेष रूप से बच्चेदानी, शारीरिक व क्रियात्मक रूप से अपनी अगर्भित अवस्था में वापस आ जाती है। इसमें लगभग 45 दिन का समय लगता है। भैंस के प्रसूतिकाल के रोग  इस प्रकार है।

  • जनननलिका, योनि अथवा भगोष्ठों की चोट
  • जेर रूकना / फंसना
  • गर्भाशय में मवाद पड़ना (गर्भाशय शोथ/मेट्राइटिस)
  • दुग्ध ज्वर (मिल्क फीवर)

जनननलिका, योनि अथवा भगोष्ठों की चोट

पशु आहार के तत्व एवं उनके स्रोत

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पशु आहार के तत्व एवं उनके स्रोत

पशु आहार के तत्व

रासायनिक संरचना के अनुसार कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन, विटामिन तथा खनिज लवण भोजन के प्रमुख तत्व हैं। डेयरी पशु शाकाहारी होते हैं अत: ये सभी तत्व उन्हें पेड़ पौधों से, हरे चारे या सूखे चारे अथवा दाने  से प्राप्त होते हैं।

कार्बोहाइड्रेट - 

कार्बोहाइड्रेट मुख्यत: शरीर को ऊर्जा प्रदान करते हैं। इसकी मात्रा पशुओं के चारे में सबसे अधिक होती है । यह हरा चाराभूसा, कड़वी तथा सभी अनाजों से प्राप्त होते हैं।

प्रोटीन - 

भैंस में मुंह खुर रोग

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भैंस में मुंह खुर रोग

भैंस में मुंह खुर रोग
यह विषाणु जनित तीव्र संक्रमण से फैलने वाला रोग मुख्यत: विभाजित खुर वाले पशुओं में होता है भैंस में यह रोग उत्पादन को प्रभावित करता है एवं इस रोग से संक्रमित भैंस यदि गलघोटू या सर्रा जैसे रोग से संक्रमित हो जाये तो पशु की मृत्यु भी हो सकती है I यह रोग एक साथ एक से अधिक पशुओं को अपनी चपेट में कर सकता है I 

संक्रमण   

भैंस में गलघोटू रोग लक्षण एवं बचाव

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भैंस में गलघोटू रोग लक्षण एवं बचाव

भारत में भैंस के स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला प्रमुख जीवाणु रोग, गलघोटू है जिससे ग्रसित पशु की मृत्यु होने की सम्भावना अधिक होती है I यह रोग "पास्चुरेला मल्टोसीडा" नामक जीवाणु के संक्रमण से होता है I सामान्य रूप से यह जीवाणु श्वास तंत्र के उपरी भाग में मौजूद होता है एवं प्रतिकूल परिस्थितियों के दबाव में जैसे की मौसम परिवर्तन, वर्षा ऋतु, सर्द ऋतु , कुपोषण, लम्बी यात्रा, मुंह खुर रोग की महामारी एवं कार्य की अधिकता से पशु को संक्रमण में जकड लेता है I  यह रोग अति तीव्र एवं तीव्र दोनों का प्रकार संक्रमण पैदा कर सकता है I  

पशु पालन में कुछ प्रभावी घरेलु उपचार

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पशु पालन में कुछ प्रभावी घरेलु उपचार

कृषि के साथ साथ पशु पालन किसानों की आय का प्राचीनतम आय का स्रोत रहा है पशु पालन के विना किसानों का खेती को लाभकारी व्यवसाय बना पाना दिवा स्वप्न होगा 

पशु पालन के समय पशुओं में कुछ बीमारियाँ आती है जिनका घरेलु उपचार निम्न प्रकार से है

फैट बढ़ाने का फार्मूला

पशु चारे के साथ सो ग्राम कैल्शियम व सो ग्राम सरसो का तेल तथा चुटकी भर काला नमक डालकर सात दिन तक खिलाने से दूध में फेट बढ़ जाएगी

बकरी में लगने वाले रोगों की पहचान एवं उपचार

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बकरी में लगने वाले रोगों  की पहचान एवं उपचार

फड़किया रोग- इस रोग से ग्रसित बकरियां अचानक सुस्त तथा कमजोर हो जाती हैं। उनका पेट फूल जाता हैं। और वे बेचैन होकर उनके शरीर में कंपन होते हैं वह फड़कने लगती है अत: इस रोग का नाम फड़किया रखा गया हैं। उन्हें बुखार होता हैं तथा उनको पेटदर्द होने से वह पैर पटकती रहती हैं। धीरे-धीरे वह सुस्त होकर उसकी मृत्यु हो जाती हैं। यह रोग इतनी तेजी से फैलता हैं कि इलाज के लिए वक्त नहीं मिलता और कई बकरियों की मृत्यु हो जाती हैं। टीकाकरण करना यही इस रोग का इलाज हैं।

दुधारू पशुओं का रख रखाब कैसे करें

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दुधारू पशु

हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है तथा यहां पशुपालन साधारणत: कृषि का एक महत्वपूर्ण अंग है जो कि देश की अर्थव्यवस्था में मुख्य भूमिका अदा करता है। दुधारू पशुओं को मौसम की विशेषताओं जैसे गर्मी एवं सर्दी से बचाने की विशेष आवश्यकता होती है। इससे पशुओं की उत्पादन एवं प्रजनन क्षमता में गिरावट एवं बीमारी होने से बचाया जा सकता है। संकर नस्ल की गायें एवं भैंस गर्मियों के प्रति अधिक संवेदनशील होती है। 

पशु का आवास कैसे बनायें ?

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पशु का आवास कैसे बनायें ?

पशु का आवास जितना अधिक स्वच्छ तथा आराम दायक होता है, पशु का स्वस्थ उतना ही अधिक ठीक रहता है जिससे वह अपनी क्षमता के अनुसार उतना ही अधिक दुग्ध उत्पादन करने में सक्षम हो सकता है| अत: दुधारू पशु के लिए साफ सुथरी तथा हवादार पशुशाला का निर्माण आवश्यक है क्योंकि इसके आभाव से पशु दुर्बल हो जाता है और उसे अनेक प्रकार के रोग लग जाते है|एक आदर्श गौशाला बनाने के लिए निम्न लिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:

गाय के पेट से प्लास्टिक पौलिथिन को समाप्त करने का सफल उपचार

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 गाय के पेट से प्लास्टिक पौलिथिन को समाप्त करने का सफल उपचार

अब गाय के पेट में से प्लास्टिक पौलिथिन निकलने के लिए पेट फाड़ने की जरूरत नहीं.. गाय के पेट से प्लास्टिक पौलिथिन को समाप्त करने का सफल उपचार किया जा सकता है पौलिथिन खाई गाय के जुगाली करते समय उसके दांतों से आवाज आती है !

उपचार इस प्रकार है सामग्रीः

100 ग्राम सरसों का तेल,

100 ग्राम तिल का तेल,

100 ग्राम नीम का तेल और

100 ग्राम अरण्डी का तेल 

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