मूँग की वैज्ञानिक खेती

दलहनी फसलों में मूँग की खेती कई प्रकार से लाभकारी है। शाकाहारी भोजन में मूँग प्रोटीन का एक प्रमुख स्रोत होने के साथ-साथ फली तोड़ने के पश्चात खेत में पलट देने पर यह हरी खाद का लाभ भी देती है। इसे पशु आहार के लिये भी प्रयोग कर सकते हैं।

भूमि एवं उसकी तैयारी-

मूँग की खेती के लिये दोमट भूमि सर्वोत्तम होती है। यदि नमी की कमी हो तो पलेवा कर दो जुताइयाँ कर या रोटावेटर से खेत तैयार किया जा सकता है। यदि पर्याप्त नमी हो तो जीरो टिल फर्टी सीड ड्रिल से बिना जूते खेत में भी इसकी सीधी बुवाई की जा सकती है।

संस्तुत प्रजातियाँ-

नरेन्द्र मूँग-1, मालवीय जागृति (एच॰यू॰एम॰ -2), सम्राट (पी॰डी॰एम॰-139), मूँग जनप्रिया (एच॰यू॰एम॰ -6), मेहा (आई॰पी॰एम॰-99-125), पूसा विशाल, एच॰यू॰एम॰ -16, मालवीय ज्योति (एच॰यू॰एम॰ -1), टी॰एम॰वी॰-37, मालवीय जन चेतना (एच॰यू॰एम॰ -12), आई॰पी॰एम॰ 2-3, आई॰पी॰एम॰ 2-14 तथा के॰एम॰ -2241 आदि। नरेन्द्र मूँग-1 तथा मालवीय जागृति (एच॰यू॰एम॰ -2) को छोड़कर सभी प्रजातियाँ पीला मोजैक अवरोधी हैं। मूंग की फसल 60-70 दिनों में तैयार हो जाती है और 9-10 कु॰/है॰ की उपज भी प्राप्त हो जाती है। साथ ही खेत के शस्यक्रम में एक दलहन की फसल लगाने तथा उसे फली तोड़ने के पश्चात् खेत में मिला देने से खेत को जीवांश तथा अन्य पोषक तत्वों का अतिरिक्त लाभ मिल जाता है।

बुवाई का समय-

बसन्तकालीन प्रजातियों की बुवाई 15 फरवरी से 15 मार्च तक तथा ग्रीष्मकालीन प्रजातियों की बुवाई 10 मार्च से 10 अप्रैल तक की जा सकती है। बुवाई देर से करने पर फलियाँ वर्षाकल में पकने पर क्षतिग्रस्त हो सकती हैं।

बीज दर, बीजशोधन एवं बीज उपचार –

बसन्त तथा ग्रीष्मकाल में पौधों की वृद्धि कम होती है अतः बीजदर अधिक लगभग 20 से 25 किलोग्राम /हेक्टेयर रखी जाती है। बीज को 2.5 ग्राम थीरम अथवा 2.5 ग्राम थीरम + 1.0 ग्राम कार्बण्डाजिम अथवा 6-10 ग्राम ट्राईकोडर्मा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिये। इसके पश्चात यदि उपलब्धता हो तो बीज को मूँग के विशिष्ट राईजोबियम कल्चर तथा फॉसफोरस सॉलयूबिलाइजिंग कल्चर से उपचारित कर लेना चाहिये। इसके लिये आधा लीटर पानी में 250 ग्राम गुड़ घोलकर पानी को उबालकर ठंडा कर लें तत्पश्चात इसमें 200 ग्राम राईजोबियम कल्चर का मिश्रण कर इस 10 किलोग्राम बीज के ऊपर डालकर हल्के हाथों से अच्छी प्रकार मिला लें। इस छाया में सुखाकर प्रातः जल्दी या सांयकाल में 4 बजे के पश्चात बुवाई करें। इसी विधि से फॉसफोरस सॉलयूबिलाइजिंग कल्चर से भी बीज को उपचरित कर सकते हैं। भूमि में फॉसफोरस के रसायनिक उर्वरकों का प्रयोग करने के पश्चात अधिकांश फॉसफोरस पौधों के लिये अनुपलब्ध अवस्था में परिवर्तित हो जाता है। फॉसफोरस सॉलयूबिलाइजिंग कल्चर भूमि में बेकार पड़े इस अनुपलब्ध फॉसफोरस को पौधों के लिये उपलब्ध अवस्था में परिवर्तित कर देता है। इस प्रकार फॉसफोरस उर्वरकों में 20% तक कमी करके फसल उत्पादन की लागत घटाने के साथ-साथ भूमि पर भी इसका लाभदायक प्रभाव पड़ता है।

बुवाई विधि-

मूंग की बुवाई लाइन से लाइन की दूरी 25-30 सेंटीमीटर रखते हुए बीज को 4-5 सेंटीमीटर की गहराई पर बोना उचित रहता है।

उर्वरक प्रबन्धन-

खाद-उर्वरक का निर्धारण मृदा परीक्षण के आधार पर करें अन्यथा बुवाई के समय कूँड़ में बीज के नीचे 15-20 किलोग्राम नत्रजन, 40-50 किलोग्राम फॉसफोरस, 20-25 किलोग्राम पोटाश तथा 20 किलोग्राम गन्धक का प्रयोग करना लाभप्रद रहता है। फॉसफोरस के लिये सिंगल सुपर फॉसफेट का प्रयोग अधिक लाभदायक होता है।

सिंचाई प्रबन्धन-

पहली सिंचाई बुवाई के 25-30 दिनपर तथा उसके पश्चात 10-15 दिन के अन्तर पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिये। फूल आने से पूर्व तथा दाना पड़ते समय सिंचाई आवश्यक है। सिंचाई छोटी-छोटी क्यारियाँ बनाकर या बौछारी विधि से करें। पहली सिंचाई बुवाई के 25-30 दिन बाद अवश्य करें अन्यथा जड़ों तथा राईजोबियम ग्रंथियों का विकास प्रभावित होगा। पहली सिंचाई के बाद एक निराई-गुड़ाई करने का फसल पर बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

खरपतवार प्रबन्धन-

बुवाई के 30-35 दिन पश्चात एक निराई करने से खरपतवार प्रबन्धन के साथ-साथ मृदा में वायु संचार बेहतर होने से राईजोबियम ग्रंथियों में जीवाणुओं की सक्रियता बढ़ती है जिससे अधिक मात्रा में वायुमंडलीय नत्रजन का स्थिरीकरण होता है। रसायनिक खरपतवार नियंत्रण हेतु पेंडीमेथालिन 30 ई॰सी॰ की 3.3 लीटर मात्रा को 800-1000 लीटर पनि में घोलकर बुवाई के 48-72 घण्टे के भीतर पीछे की ओर हटते हुये छिड़कव करें।

फसल सुरक्षा प्रबन्धन-

पीला चित्रवर्ण रोग-

यह विषाणुजनित पीला चित्रवर्ण रोग होता है जिसमें पत्तियों प पीले चितकबरे धब्बे पद जाते हैं। प्रभावित पौधों में फूल तथा फलियाँ नहीं बनतीं या कम बनती हैं। इस रोग की वाहक सफड़ मक्खी होती है। इसके रोकथाम के लिए समय से बुवाई करना तथा रोगी पौधा दिखते ही सावधानी से उखाड़कर जलाकर नष्ट कर देना उपयुक्त रहता है। इसके साथ ही पीला चित्रवर्ण अवरोधी/असहिष्णु प्रजातियों जैसे पन्त मूँग-4, एच॰ यू॰ एम॰ -16, पी॰डी॰एम॰-139 की बुवाई करना लाभप्रद रहता है साथ ही 5-10 सफ़ेद प्रौढ़ मक्खी प्रति पौधा दिखते ही इमिडाक्लोप्रिड 250 मिली या मिथाइल-ओ-डिमेटान 25% ई॰सी॰ या डाईमेथोएट 30 ई॰सी॰ की एक लीटर मात्रा का 600 से 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव प्रति हेक्टेयर की दर से करना श्रेसकर होता है।

थ्रिप्स तथा हरे फुदके -

इस किट के शिशु तथा प्रौढ़ पत्तियों एवं फूलों से रस चूसकर क्षति पहुंचाते हैं पत्तियाँ मुड़ जाती हैं तथा फूल गिर जाते हैं जिससे उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इसके लिए बुवाई के समय कार्बोफ्यूरान 3 जी॰ 20 किलोग्राम / हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। मिथाइल-ओ-डिमेटान 25% ई॰सी॰ या डाईमेथोएट 30 ई॰सी॰ की एक लीटर मात्रा का 600 से 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव प्रति हेक्टेयर की दर से करने से लाभ होता है।

फलीबेधक –

कभी-कभी फलीबेधक फली में छेद करके दानों को खाकर फसल को क्षति पहुंचाते हैं। इसके लिए यदि 2 सूँडी / वर्गमीटर दिखाई दें तो इंडोक्साकार्ब 15.8% ई॰सी॰ 500 मिली या क्यूनालफॉस 25%ई॰सी॰ 1.25 लीटर की दर से 600 से 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव प्रति हेक्टेयर की दर से करें।

भंडारण-

मूँग को अच्छी तरह सुखाकर, स्टोरेज बिन में ही इसका भंडारण करना चाहिये तथा बरसात के मौसम में एक-दो बार जब मौसम खुला हुआ हो तो इसको खोलकर धूम्रीकरण कर लेना चाहिये। साबुत दालों में कीट जल्दी लगता है अतः अधिक सावधानी रखनी चाहिये अन्यथा इसे दल कर दाल बनाकर भण्डारण करना चाहिये।

 

 

डॉ आर के सिंह,

अध्यक्ष

कृषि विज्ञान केंद्र बरेली

[email protected]

organic farming: 
जैविक खेती: