औषधि

औषधि वह पदार्थ है जिन का निश्चित मात्रा शरीर मै निश्चित प्रकार का असर दिखाता है। इनका प्रयोजन चिकित्सा में होता है। किसी भी पदार्थ को औषधि के रुप मै प्रयोजन करके के लिए उस पदार्थ का गुण, मात्रा अनुसार का व्यवहार, शरीर पर विभिन्न मात्राऔं में होने वाला प्रभाव आदि का जानकारी अपरिहार्य है।

औषधियाँ रोगों के इलाज में काम आती हैं। प्रारंभ में औषधियाँ पेड़-पौधों, जीव जंतुओं से प्राप्त की जाती थीं, लेकिन जैसे-जैसे रसायन विज्ञान का विस्तार होता गया, नए-नए तत्वों की खोज हुई तथा उनसे नई-नई औषधियाँ कृत्रिम विधि से तैयार की गईं।
ऐसे पौधे जिनके किसी भी भाग से दवाएँ बनाई जाती हैं औषधीय पौधे कहलाते हैं। सर्पगंधा, तुलसी, नीम आदि इसी प्रकार के पौधे हैं।

अजवाइन की खेती

यह धनिया कुल (आबेलीफेरा) की एक महत्वपूर्ण मसाला फसल है। इसका वानस्पतिक नाम टेकिस्पर्मम एम्मी है तथा अंग्रेजी में यह बिशप्स वीड के नाम से जाना जाता है। इसके बीजों में 2.5-4% तक वाष्पशील तेल पाया जाता है।अजवाइन(celery seed )खजीज तत्वों का अच्छा स्रोत हैं। इसमें 8.9% नमी, 15.4% प्रोटीन, 18.1% वसा, 11.9% रेशा, 38.6% कार्बोहाइड्रेट, 7.1% खनिज पदार्थ, 1.42% कैल्शियम एवं 0.30% फास्फोरस होता हैं। प्रति 100 ग्राम अजवाइन से 14. 6मी.ग्रा. लोहा तथा 379 केलोरिज मिलती हैं।

 

औषधीय फसल अफीम की खेती

पोस्त फूल देने वाला एक पौधा है जो पॉपी कुल का है। पोस्त भूमध्यसागर प्रदेश का देशज माना जाता है। यहाँ से इसका प्रचार सब ओर हुआ। इसकी खेती भारत, चीन, एशिया माइनर, तुर्की आदि देशों में मुख्यत: होती है। भारत में पोस्ते की फसल उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं राजस्थान में बोई जाती है। पोस्त की खेती एवं व्यापार करने के लिये सरकार के आबकारी विभाग से अनुमति लेना आवश्यक है। पोस्ते के पौधे से अहिफेन यानि अफीम निकलती है, जो नशीली होती है।

हल्दी व अदरक की खेती

किसान साथियों, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से हल्दी अदरक लगाने का उचित समय 15 मार्च से 15 अप्रैल है, लेकिन अगर आप ने नहीं लगाया है तो अभी भी समय है और आप इसे लगा सकते हैं। इस समय हल्दी लगाने से बरसात होने तक पौधे बड़े हो जाते हैं व ढेर से पत्ते होने के कारण छाया होने लगती है। जिससे खरपतवार कम उगते हैं। हल्दी और अदरक दोनों को सूरज के सीधे प्रकाश की बहुत ज्यादा जरूरत नहीं होती है, अतः इसे बागों में भी अन्तःशस्य फसल के रूप में भी लगाया जा सकता है।यहाँ ध्यान देने योग्य बात ये है कि जब हम बागों में अन्तःशस्य फसल के रूप में इन फसलों को लगाये तो पौधों को खाद की मात्रा अलग से दें।

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