क्या है मृदा स्वास्थ्य कार्ड?
कृषि और इससे संबंधित गतिविधियां भारत में कुल सकल घरेलू उत्पाद में 30 फीसदी का योगदान करती है। कृषि सीधे तौर पर मिट्टी से जुड़ी है। किसानों की उन्नति निर्भर करती है मिट्टी पर मिट्टी स्वस्थ्य तो किसान स्वस्थ्य। इसी सोच के आधार पर बना है ‘मृदा स्वास्थ्य कार्ड'। इसमें निजी खेतों के लिए आवश्यक पोषकों और उर्वरकों के लिए फसल के अनुसार सलाह दी जाती है। मृदा स्वास्थ्य स्थिति के बारे में जागरूकता और खाद की भूमिका से पूर्वी भारत में भी अधिक खाद्यान उत्पादन में सहायता के साथ-साथ मध्य प्रायद्वीपीय भारत में उत्पादन में हो रही गिरावट को दूर करने में भी मदद मिलेगी। पूर्वी भारत में अनाज, चावल और गेहूँ में वृद्धि से स्थानीय स्तर पर खाद्यान्न भंडार बनाने के लिए एक अवसर मिलेगा। इससे पंजाब और हरियाणा पर कृषि दबाव में भी कमी होगी। मृदा स्वास्थ्य कार्ड का इतिहास वर्ष 2003-04 से स्वयं में यह एक तथ्य है कि सरकार के सूत्रों के अनुसार मृदा स्वास्थ्य देखभाल के लिए वैज्ञानिक उपायों की पहल के मामले में गुजरात मृदा स्वास्थ्य कार्ड पेश करने वाला प्रथम राज्य रहा है। गुजरात में 100 से ज्यादा मृदा प्रयोशालाएं स्थापित की गई थीं और इस योजना का परिणाम काफी संतोषजनक रहा था। इसकी शुरुआत के बाद से, गुजरात की कृषि आय 2000-01 में 14,000 करोड़ रुपए से बढ़कर 2010-11 में उच्चतम 80,000 करोड़ रुपए तक पहुंच गई थी।
जब राष्ट्रीय स्तर पर बाया कार्ड केंद्र सरकार ने इसे राष्ट्रीय स्तर पर लॉन्च किया, जिसमें मृदा प्रबंधन कार्य प्रणालियों और मृदा स्वास्थ्य बहाली को प्रोत्साहन देने के लिए 3 वर्ष की अवधि में कृषि जनसंख्या के व्यापक स्तर पर 14 करोड़ कार्ड धारकों को शामिल करने का लक्ष्य है। क्यों जरूरी था यह कार्ड कृषि भूमियों में मूल्यवान पोषक तत्वों की कमी के कारण कृषि वैज्ञानिक पहले से चिंतित थे। वैज्ञानिकों ने यां तक चेतावनी दी थी कि भारत के विभिन्न भागों में अकाल और सूखे की संभावना हो सकती है। यदि आवश्यक सुधारात्मक कदम नहीं उठाए गए अगले 10 वर्षों के समय भोजन की कमी हो सकती है। इसी को देखते हुए सरकार ने ऐसी जमीनें तलाशनी शुरू कर दी, जहां कृषि को बढ़ावा दिया जा सकता है।
वैकल्पिक फसलों को बढ़ावा - विशेषज्ञों की मानें तो अधिक दालों और हरी सब्जियों को उगाने की ज्यादा जरूरत है। कई राज्यों में मिट्टी के अध्ययन में पता चला कि वहां दालें, सूरजमुखी, बाजरा अथवा चारा और सब्जियों जैसी वैकल्पिक फसलों को बढ़ावा दिया जा सकता है।
मूल्य संवर्द्धित फसलों को चांस - इसके अंतर्गत, सरकार फसल विविधिकरण को अपनाने वाले किसानों की मदद कर सकती है। किसान भूमि की उर्वरा शक्ति के कारक को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं और नई मूल्य संवर्द्धित फसलों की ओर आकर्षित हो सकते हैं।
कृषि में जोखिम घटा कम होगा मृदा का र्ड से कृषि में जोखिम घटाने में मदद मिलेगी और संपूर्ण खेती प्रक्रिया की लागत में भी कमी आएगी। किसान कम पैसा लगा कर ज्यादा अनाज प्राप्त कर सकेंगे। इससे किसानों को वित्तीय लाभ मिलेंगे।
पोर्टल पर सब कुछ मृदा स्वास्थ्य कार्ड पोर्टल www.soilhealth.dac.gov.in पर मृदा नमूनों के पंजीकरण, मृदा नमूनों के परीक्षण परिणामों को दर्ज करने और उर्वरक सिफारिशों के साथ मृदा स्वास्थ्य कार्ड (एसएचसी) को बना सकते हैं।
मृदा स्वास्थ्य कार्ड पोर्टल मृदा स्वास्थ्य कार्ड पोर्टल का उद्देश्य राज्य सरकारों द्वारा प्रदत्त आम उर्वरक सिफारिशों अथवा आईसीएआर क द्वारा विकसित मृदा परीक्षण-फसल प्रतिक्रिया (एसटीसीआर) फॉर्मूले को विकसित करने के आधार पर मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनाना और जारी करना है।
568 करोड़ रुपए की योजना इस योजना को 568.54 करोड़ रुपए के एक परिव्यय के साथ 12वीं योजना के दौरान कार्यान्वयन के लिए स्वीकृति दी जा चुकी है। वर्तमान वर्ष (2015-16) के लिए केंद्र सरकार की सहभागिता के तौर पर 96.46 करोड़ रुपए का आवंटन किया है।
नहीं होगी सल्फर जिंक की कमी किसान अक्सर सल्फर, जिंक और बोरोन जैसे पोषक तत्वों की कमी से जूझते हैं। यह खाद्य उत्पादकता बढ़ाने में एक सीमित तत्व बन चुके हैं। मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना इन समस्याओं का समाधान करेगी।
2017 तक हर किसान के पास कार्ड देश में सभी किसानों के पास वर्ष 2017 तक अपना मृदा स्वास्थ्य कार्ड होगा। 2014-15 में, 27 करोड़ और 2015-16 में मृदा स्वास्थ्य कार्ड को तैयार करने के लिए सभी राज्यों के लिए 100 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं।
साभार वन इंडिया