राज्यों के सहयोग के बगैर कृषि क्षेत्र में सुधार संभव नहीं
कृषि क्षेत्र में सुधार की सख्त जरूरत है, जिसमें राज्यों का दायित्व ज्यादा है। कृषि को घाटे से उबारने और नई दिशा देने के लिए एक नई नीति की तत्काल जरूरत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर गठित मुख्यमंत्रियों की उप समिति ने बृहस्पतिवार को अपनी पहली बैठक में इन मुद्दों पर गंभीरता से विचार किया। कृषि क्षेत्र में निवेश न होना सबसे बड़ा संकट है, जिसे बढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया गया।
मुख्यमंत्रियों की उपसमिति के अध्यक्ष महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने बैठक में हुई चर्चा के बारे में विस्तार से बातचीत की। बैठक में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, गुजरात के मुख्यमंत्री रुपाणी, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री फड़नवीस और अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री मौजूद थे।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ वीडियो कांफ्रेंसिंग से जुड़े थे। जबकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ विधानसभा सत्र चलने की वजह से नहीं पहुंचे।
उप समिति के अध्यक्ष फड़नवीस ने कहा कि 1991 के बाद गैर-कृषि क्षेत्र में आर्थिक सुधार तो हुआ, लेकिन कृषि क्षेत्र लगातार पिछड़ता गया। खेतिहर मजदूरों और औद्योगिक मजदूरों की मजदूरी में फर्क बढ़ता गया। आश्चर्य जताते हुए फड़नवीस ने कहा कि सब्सिडी अनाज की खेती पर ज्यादा दी गई, लेकिन विकास दर बढ़ाने में मत्स्य क्षेत्र की भागीदारी ज्यादा है।
कृषि उपज मंडियों की हालत राज्यों के बनाये मंडी कानून से ही खराब हो गई है। मंडियों पर कुछ निश्चित लोगों का एकाधिकार हो गया। उपज के भाव मुट्ठीभर लोग मिलकर तय करने लगे। भला ऐसे में किसानों को लाभ कहां से मिल पाता। ई-नाम की शुरुआत तो हुई, लेकिन इसका विस्तार नहीं हो सका, जिससे इसका पूरा उपयोग नहीं हो सका। समिति इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करेगी।
कृषि जिंसों पर आवश्यक वस्तु अधिनियम को गैर-वाजिब करार देते हुए फड़नवीस ने कहा कि इसे तत्काल हटाने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि बैठक में मुख्यमंत्रियों की राय थी कि गैर कृषि उत्पादों पर भले ही यह कानून लागू हो, लेकिन कृषि जिंसों पर इसकी जरूरत नहीं है। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के बारे में फड़नवीस ने चर्चा करते हुए कहा कि इस पर गंभीरता की जरूरत है।
कृषि क्षेत्र में निवेश न बढ़ने से हालात नाजुक हो रहे हैं, जिसे प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। गैर-कृषि क्षेत्र में निवेश की रफ्तार 36 फीसद है, जबकि कृषि क्षेत्र में वास्तविक निवेश की दर तीन फीसद है। इसमें प्राइवेट सेक्टर को शामिल करने की जरूरत है। इसके लिए कृषि क्षेत्र के कानून में सुधार किये जाएंगे।
फड़नवीस ने कहा कि जिन राज्यों में कांट्रैक्ट खेती का प्रावधान है, वहां निवेश आ रहा है। इनमें महाराष्ट्र, गुजरात व मध्य प्रदेश प्रमुख हैं।
देश में छोटी जोत वाले किसानों की संख्या ज्यादा है, जिन्हें तकनीक के प्रयोग से आगे बढ़ाया जा सकता है। लेकिन इन तकनीकों को किसानों तक कैसे पहुंचाई जाए, यह विचार का विषय है। 13 लाख करोड़ के कृषि ऋण को हर किसान तक पहुंचाना भी एक चुनौती है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने माना कि देश के लगभग 40 फीसद ऐसे किसान हैं, जिनके तक संस्थागत ऋण नहीं पहुंच पा रहा है।
जिंस बाजार अब वैश्विक हो चुका है, जिसके मद्देनजर नीतियां बनानी होंगी। इनमें कृषि व वाणिज्य मंत्रालयों को मिलकर काम करना होगा। मार्केट पूर्वानुमान एजेंसी होनी चाहिए, जो समय से सूचना दे सके। उसी के अनुरूप किसान खेती करे, ताकि उसकी उपज का उचित मूल्य मिल सके। समिति की अगली बैठक मुंबई में सात अगस्त होगी, जिसमें उक्त चिन्हित मुद्दों पर विचार किया जाएगा।