प्राकृतिक हलवाहा केंचुआ से पायें प्राकृतिक जुताई
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कहा जाता है कि मनुष्य धरती पर ईष्वर की सबसे खूबसूरत रचना है। डार्विन के ‘योग्यतम की उत्तरजीविता’ सिद्धांत के अनुसार मनुष्य सभी प्रजातियों में श्रेष्ठ प्रजाति है। लेकिन जीव विज्ञानी क्रिस्टोलर लाॅयड ने अपनी पुस्तक ‘व्हाट आॅन अर्थ इवाॅल्व्ड’ में पृथ्वी पर मौजूद 100 सफल प्रजातियों की सूची में केंचुए को सबसे ऊपर रखा है। उनके अनुसार केंचुआ धरती पर लगभग 60 करोड़ वर्षों से मौजूद है। जबकि मानव प्रजाति धरती पर लगभग 16 लाख वर्ष पूर्व से उपस्थित है।
भारत असीम जैव विविधता वाला देष है। यहां विभिन्न प्रकार के जीव पाए जाते है। भारत एक कृषि प्रधान देष है यहां की लगभग 65-70 प्रतिषता आबादी खेती पर निर्भर है।
केंचुए की प्रकृति
केंचुआ एक महत्वपूर्ण जीव है। इसकी महत्ता इस बात से भी पता चलती है कि इसे प्राकृतिक हलवाहा और किसान मित्र भी कहा जाता है। केंचुआ नमी युक्त मिट्टी में पाया जाता है। यह खण्डित अकषेरूकी जीव है जो संघ एनीलिडा, वर्ग क्वाइटेला और गण ओलिगोकीटा से संबंधित है। केंचुए की 3600 प्रजातियां एवं 20 परिवार पाए जाते है। भारत में इसकी करीब 385 प्रजातियां पाई जाती हैं। वैसे रहवास के अनुसार केंचुओं को तीन वर्गों इपिजिक, इंडोजिक और एनीसिक में वर्गीकृत किया गया है। इपिजिक केंचुए मिट्टी की सतह पर करीबन 3 से 10 सेमी. गहराई में पाए जाते हैं तथा पत्तियों के अवषेषों का सेवन करते हैं। इन्डोजिक केंचुए 10 से 30 सेमी. गहराई वाले नमीयुक्त स्थानों पर रहते हैं तथा खनिज पदार्थों का सेवन करते हैं। एनीसिक केंचुए करीब 30 से 90 सेमी. तक की गहराई में जा सकते हैं और इनमें जटिल बिल बनाने का हुनर होता है। वैसे तो केंचुए सर्वभक्षी जंतु की श्रेणी में आते हैं लेकिन फिर भी सामान्यतः ये चयनित भोजन ही ग्रहण करते हैं।
केंचुए करे प्राकृतिक जुताई
केंचुए का मलमूत्र मिट्टी में पोषक तत्व प्रदान करता हैं। एक केंचुआ 10 ग्राम वजन के आसपास का होता है। तथा अपने शरीर के वजन के 5 गुना खाता है और समान राशि का मल त्याग करता हैं।
मिट्टी के स्वास्थ्य में केंचुआ की भूमिका बहुत ही रोचक घटना है। प्रत्येक एकड़ में चार से पांच लाख केंचुए की आवश्यकता है। वे फसल के अपशिष्ट पदार्थ और मिट्टी पर निर्भर होते हैं। हवा और उत्सर्जन के लिए वे पृथ्वी की सतह पर आते हैं। वे जड़ों को बिना नुकसान पहुँचाए मिट्टी की जुताई करते हैं। प्रत्येक केंचुआ भूमि की सतह पर हवा के लिए 10-12 बार आता है। फिर भूमिगत हो जाता है। इस प्रकार एक केंचुआ एक दिन में बीस छेद करता है तो चार लाख केंचुए 24 घंटे में एक एकड़ भूमि में अस्सी लाख छेद कर लेगे। यहां तक कि अगर वे केवल मानसून के दौरान काम कर रहे हैं यानी केवल तीन महीने तो वे 72 करोड़ छेद कर लेगे। वे उसको लगातार करते हैं। और इस प्रक्रिया में मिट्टी की स्वाभाविक रूप से जुताई हो जाती है।
अगर किसान थोड़ा भी बुद्धि से काम ले तो उपरोक्त कठिनाइयों का सामना, बिना किसी भी खर्च के, अच्छे लाभ के साथ-2, भूमि की उर्वरता को भी बनाए रख सकता है। इससे भूमि का शोषण भी नहीं होगा और किसान आत्म निर्भरता के रास्ते की ओर बढ़ेगा।
चार लाख केंचुए तीन महीने में छह लाख टन मिट्टी पलट करते हैं। इस मिट्टी में उपचारित मिट्टी की तुलना में दुगुना कैल्शियम और मैग्नीशियम, सात गुना नाइट्रोजन, ग्यारह गुना फास्फोरस तथा पांच गुना पोटेशियम होता है। इसके अलावा इस मिट्टी में लिग्नाइट फसलों में रोग प्रतिरोध शक्ति को बढ़ाता है। वे भी बैक्टीरिया के निर्माण में मदद करते हैं।
एक के बाद एक अधिक उपज देने वाली फसलें लेने से मिट्टी की उर्वरता शक्ति में कमी हो जाती है।