आलू की फसल में लग सकते हैं झुलसा जैसे रोग, करे बचाव
आलू में कई तरह की बीमारियां और कीटों के लगने का खतरा रहता है,लगातार तापमान गिरने और बदलते मौसम के साथ ही आलू में कई तरह के रोग और कीट लगने लगते हैं, समय रहते इनका प्रबंधन करके किसान नुकसान से बच सकते हैं। "आलू में पछेती अंगमारी या पछेती झुलसा बीमारी बहुत खतरनाक होती है। दो बीमारियों का हमें खास ध्यान रखना होता है, एक अगेती झुलसा और दूसरा पछेती झुलसा रोग। इनसे बचाव के लिए जब एक महीने की फसल हो जाती है तो मैंकोजेब 75 प्रतिशत फंफूदीनाशक की लगभग आठ सौ ग्राम मात्रा प्रति एकड़ खेत के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए। इसी के साथ ही आलू की फसल में एक और भी बीमारी देखने को मिलती है, जिसे बैक्टीरियल रॉट या जीवाधुजनित तना गलन कहते हैं। आप देखेंगे पौधे का नीचे का हिस्सा जहां से कंद बनता है, उसके थोड़े ऊपर का हिस्सा गलकर सड़कर काले रंग का हो जाता है और पौधा सूखने लगता है, मुरझाया हुआ सा लगता है, ऐसा लगता कि जैसे कि पानी की कमी है, इससे बचाने के लिए स्ट्रेप्ट्रोसाइक्लिन की छह ग्राम की मात्रा लगभग पचास लीटर पानी में घोल बनाकर इसकी दो-तीन छिड़काव करना है और इसकी हर छिड़काव के बीच में 18-20 दिन का अंतर रखना होता है। इस समय क्योंकि सरसों की फसल भी आलू के आसपास होती है और जहां फूल आने शुरू होते हैं, वहां पर माहू और सफेद मक्खी हमारे आलू में आ जाते हैं। ये कीट रस चूसकर पौधे को नुकसान तो पहुंचाते ही हैं, साथ ही वायरस का भी संक्रमण कर देते हैं। इससे बचाव के लिए हम कीटनाशक के रूप में थायोमेथेक्जॉन 25 प्रतिशत डब्ल्यूजी कीटनाशक की 40 ग्राम मात्रा प्रति एकड़ क्षेत्रफल में प्रयोग कर सकते हैं। अगर हम चाहे तो ये तीनों दवा, मैंकोजेब, स्ट्रेप्ट्रोसाइक्लिन और थायोमेथेक्जॉन को एक साथ मिलाकर छिड़काव करने से एक साथ झुलसा, बैक्टीरियल रॉट और माहू से छुटकारा मिल जाता है। इसके साथ ही फेरोमॉन ट्रैप, लाइट ट्रैप और ब्लू या येलो स्टिकी ट्रैप भी लगाने से कीटों से छुटकारा पा सकते हैं।