औषधि

औषधि वह पदार्थ है जिन का निश्चित मात्रा शरीर मै निश्चित प्रकार का असर दिखाता है। इनका प्रयोजन चिकित्सा में होता है। किसी भी पदार्थ को औषधि के रुप मै प्रयोजन करके के लिए उस पदार्थ का गुण, मात्रा अनुसार का व्यवहार, शरीर पर विभिन्न मात्राऔं में होने वाला प्रभाव आदि का जानकारी अपरिहार्य है।

औषधियाँ रोगों के इलाज में काम आती हैं। प्रारंभ में औषधियाँ पेड़-पौधों, जीव जंतुओं से प्राप्त की जाती थीं, लेकिन जैसे-जैसे रसायन विज्ञान का विस्तार होता गया, नए-नए तत्वों की खोज हुई तथा उनसे नई-नई औषधियाँ कृत्रिम विधि से तैयार की गईं।
ऐसे पौधे जिनके किसी भी भाग से दवाएँ बनाई जाती हैं औषधीय पौधे कहलाते हैं। सर्पगंधा, तुलसी, नीम आदि इसी प्रकार के पौधे हैं।

बादाम की खेती

बादाम हालांकि एक मेवा होता है, किन्तु तकनीकी दृष्टि से यह बादाम के पेड़ के फल का बीज होता है। बादाम का पेड़ एक मध्यम आकार का पेड़ होता है और जिसमें गुलाबी और सफेद रंग के सुगंधित फूल लगते हैं। ये पेड़ पर्वतीय क्षेत्रों में अधिक मात्रा में पाये जाते हैं। इसके तने मोटे होते हैं। इसके पत्ते लम्बे, चौड़े और मुलायम होते हैं। इसके फल के अन्दर की मिंगी को बादाम कहते हैं। बादाम के पेड़ एशिया में ईरान, ईराक, मक्का, मदीना, मस्कट, शीराज आदि स्थानों में अधिक मात्रा में पाये जाते हैं। इसके फल वानस्पतिक रूप से अष्ठिफल के रूप में जाने जाते हैं और उनमें एक बाह्य छिलका होता है तथा एक कठोर छाल के साथ अंदर एक

जिरेनियम की खेती

कम पानी और जंगली जानवरों से परेशान परंपरागत खेती करने वाले किसानों के लिए जिरेनियम की खेती राहत देने वाली साबित हो सकती है। जिरेनियम कम पानी में आसानी से हो जाता है और इसे जंगली जानवरों से भी कोई नुकसान नहीं है। इसके साथ ही नए तरीके की खेती ‘जिरेनियम’ से उन्हें परंपरागत फसलों की अपेक्षा ज्यादा फायदा भी मिल सकता है। खासकर पहाड़ का मौसम इसकी खेती के लिए बेहद अनुकूल है। यह छोटी जोतों में भी हो जाती है। जिरेनियम पौधे की पत्तियों और तने से सुगंधित तेल निकलता है।

 

सिट्रोनेला (जावा घास) की खेती

सुगंधित पौधों के वर्ग में मुख्य रूप से जो पौधे हैं, वे हैं – लेमन ग्रास, सिट्रोनेला, तुलसी, जिरेनियम पामारोजा/रोशाग्रास। नींबू घास की दो प्रजातियाँ – सी. फ्लेसुसोयम – भारत में पाई जाती है, जबकि सी. स्टेरिट्स – दक्षिणी पूर्वी देशों में पाई जाती है।

ग्लैडिओलस की खेती

 

शल्ककन्दीय फूल के रूप में ग्लैडिओलस विश्व स्तर पर कट-फ्लावर के रूप में उगाया जाता है। भारत में इसकी खेती बंगलुरु, श्रीनगर, नैनीताल, पुणे व उटकमण्डलम में वृहत रूप से होता है। झारखण्ड के धनबाद में अब इसकी खेती छोटे पैमाने पर आरम्भ हो चुकी है। इसकी खेती गृह बाजार तथा निर्यात, दोनों हेतु किया जाता है। शीतकाल में ग्लैडिओलस का यूरोपियन देशों में निर्यात किया जाता है। जिसके कारण काफी विदेशी मुद्रा का अर्जन होता है।

 
 
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