जिरेनियम की खेती

कम पानी और जंगली जानवरों से परेशान परंपरागत खेती करने वाले किसानों के लिए जिरेनियम की खेती राहत देने वाली साबित हो सकती है। जिरेनियम कम पानी में आसानी से हो जाता है और इसे जंगली जानवरों से भी कोई नुकसान नहीं है। इसके साथ ही नए तरीके की खेती ‘जिरेनियम’ से उन्हें परंपरागत फसलों की अपेक्षा ज्यादा फायदा भी मिल सकता है। खासकर पहाड़ का मौसम इसकी खेती के लिए बेहद अनुकूल है। यह छोटी जोतों में भी हो जाती है। जिरेनियम पौधे की पत्तियों और तने से सुगंधित तेल निकलता है।

 

साधारण नाम जिरेनियम, रोज जिरेनियम वानस्पतिक नाम पेलार्गोनियम ग्रेवियोलेंस उन्नत किस्म सिम-पवन, बोरबन, सिमैप बयों जी-17।

प्रमुख रासायनिक घटक जिरेनियाल व एल-सिट्रोनेलाले।

 

जलवायु

जलवायु उपोष्ण, ठंड एवं शुष्क जलवायु। 25-30 डिग्री से तापक्रम एवं आर्द्रता 60% से कम अच्छी बढ़वार के लिये उपयुक्त।

 

लाभ

पहाड़ के ढलान वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त - कम पानी वाले क्षेत्रों में आसानी से खेती - बाजार में अत्यधिक मांग एवं उचित दाम - छोटी जोतों के लिए उपयुक्त यहां होता है उपयोग जिरेनियम के तेल में गुलाब के तेल जैसी खुशबू आती है। इसका प्रयोग साबुन, सौंदर्य प्रसाधन, उच्च स्तरीय इत्र व तंबाकू के साथ ऐरोमाथिरेपी में किया जाता है।

 

भूमि

दोमट भूमि, पी.एच.-5.5-8.0, जीवांश पदार्थ की अधिकता एवं समुचित जल निकास की व्यवस्था वाली मृदा उपयुक्त रहती है। प्रवर्धन 12-15 सेमी. लम्बी, रोग मुक्त 3-4 गांठों वाली शाकीय कटिंग से पौधें तैयार किये जाते है।

 

खेत की तैयारी

पौध रोपण एवं भूमि खेत की अच्छी जुताई करने के पश्चात् उसमें सड़ी हुई 10-15 टन गोबर की खाद मिलाकर सुविधाजनक आकार की क्यारियों में रोपाई 50ग50 सेमी. की दूरी पर करनी चाहिए। जिरेनियम उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में नवम्बर से जनवरी के मध्य लगाते है।

 

खाद एवं उर्वरक

60 किग्रा. फास्फोरस, 40 किग्रा. पोटाश प्रति हे. के हिसाब से अन्तिम जुताई के समय मिला देना चाहिए। नत्रजन को तीन बार 50 किग्रा. प्रति हे. की दर से 20-25 दिन के अन्तराल पर डालना चाहिए। एक हे. में कुल 150 किग्रा. नत्रजन पड़ती है।

 

सिंचाई

फसल को 5-6 सिंचाई की आवष्कता पड़ती है।

कटाई

100-120 दिन की फसल होने के बाद कटाई करते है। दूसरी कटाई पहली कटाई के 60-90 दिनों के बाद करते है। ऊपर से 20-30 सेमी. तक केवल हरी शाखाओं को काटना चाहिए। कटाई के बाद कटे हुए पौधों पर ताँबायुक्त फफूँदी नाशक दवाओं का छिड़काव करना चाहिए।

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