जैविक खाद
जैविक खेती (Organic farming) कृषि की वह विधि है जो संश्लेषित उर्वरकों एवं संश्लेषित कीटनाशकों के अप्रयोग या न्यूनतम प्रयोग पर आधारित है तथा जो भूमि की उर्वरा शक्ति को बचाये रखने के लिये फसल चक्र, हरी खाद, कम्पोस्ट आदि का प्रयोग करती है।जैविक खाद वे सूक्ष्म जीव हैं जो मृदा में पोषक तत्वों को बढ़ा कर उसे उर्वर बनाते हैं। प्रकृति में अनेक जीवाणु और नील हरित शैवाल पाए जाते हैं जो या तो स्वयं या कुछ अन्य जीवों के साथ मिलकर वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का यौगिकीकरण करते हैं( वातावरण में मौजूद गैसीय नाइट्रोजन को अमोनिया में परिवर्तित करते हैं)। इसी प्रकार, प्रकृति में अनेक कवक और जीवाणु पाए जाते हैं जिनमें मृदा में बंद्ध फॉस्फेट को मुक्त करने की क्षमता होती है। कुछ ऐसे कवक भी होते हैं जो कार्बनिक पदार्थों को तेजी से विघटित करते हैं जिसके फलस्वरूप मृदा को पोषक तत्व प्राप्त होते हैं। अत: जैविक खादें नाइट्रोजन के यौगिकीकरण, फॉस्फेट की घुलनशीलता और शीघ्र पोषक तत्व मुक्त करके मृदा को उपजाऊ बनाती हैं।
अमृत घोल
Submitted by Aksh on 14 November, 2015 - 17:12
विशेषतायें
i. मिट्टी में मुख्य पोषक तत्व (नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश) के जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि करता है।
ii. शीघ्र तैयार होने वाली खाद है।
iii. मिट्टी को पोली करके जल रिसाव में वृद्धि करता है।
iv. मिट्टी को भुरभुरा बनाता है तथा भूमि की उत्पादकता में वृद्धि करता है।
v. फसलों पर कीट व रोगों का प्रकोप कम करता है।
vi. स्थानीय संसाधनों से बनाया जा सकता है।
vii. इसको बनाने की विधि सरल व सस्ती है।
आवश्यक सामग्री
गौमूत्र 1 ली. (देशी गाय)
जीवाणु खाद मिट्टी के लिये वरदान
Submitted by Aksh on 14 November, 2015 - 11:00पौधों की उचित वृद्धि एवं ज्यादा उपज के लिये नाइट्रोजन, स्फूर, पोटाश तथा अन्य पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है । यह पोषक तत्व रासायनिक खाद द्वारा पौधों को उपलब्ध कराये जाते हैं । मिट्टी में कुछ ऐसे भी सूक्ष्मजीवी जीवाणु है जो पौधों को मिट्टी में डाले गये पोषक तत्वों को उपलब्ध कराने में मदद करते हैं । जब ऐसे जीवाणुओं की संख्या प्रयोगशाला में बढ़ा कर ठोस माध्यम में मिश्रित कर पैकेट के रूप में किसानों को उपलब्ध कराये जायें तो उसे ''जीवाणु खाद'' कहते हैं ।
मटका खाद
Submitted by Aksh on 11 November, 2015 - 00:15विशेषतायें
i. स्थानीय संसाधनों से तैयार किया जाता है।
ii. यह तकनीक सरल, सस्ती और प्रभावशाली है।
iii. पौधों में वानस्पतिक वृद्धि तेजी से करती है।
iv. भूमि में मित्र जीवाणुओं की संख्या बढ़ाता है।
v. भूमि की उर्वरा शक्ति में वृद्धि करता है और उत्पादन बढ़ाता है।
vi. इसके उपयोग से रासायनिक खादों पर निर्भरता कम होगी।
vii. फसल की गुणवत्ता में वृद्धि होती है।
आवश्यक सामग्री
गौमूत्र 15 ली. (देशी गाय)
गाय का ताजा गोबर 15 कि.ग्रा.