नील हरित शैवाल एवं उसकी उपयोगिता
नील हरित शैवाल
फसलों के उचित बाढ़ एवं अधिक उपज के लिए पोषक तत्वों खासकर नेत्रजन, स्फूर एवं पोटाश की आवश्यकता होती है । इन तीनों पोषक तत्वों में नेत्रजन की जरूरत ज्यादा होती है । वैसे तो नेत्रजन मिट्टी में भी पाया जाता है परन्तु लगातार खेती करने से इनकी मात्रा मिट्टी से कम हो जाती है । अतः इसे उर्वरक के रूप में पौधों को उपलब्ध कराया जाता है । कुछ जीवाणु भी है जो वायुमण्डलीय नेत्रजन को पौधों उपलब्ध कराते हैं, जैसे - राइजोबियम दलहनी फसलों में, ऐजोटोवैक्टर, गेहूँ, सब्जीयों एवं कपास इत्यादि में तथा नील हरित शैवाल जिसे काई भी कहते है, धान की फसल में नेत्रजन उपलब्ध कराते हैं । ये जीवाणु उर्वरक के रूप में व्यवहार में लाये जाते हैं तथा खड़ी फसल के अलावे बाद वाली फसल को भी नेत्रजन उपलब्ध कराते हैं ।
नील हरित शैवाल खाद के द्वारा अधिक उपज प्राप्त करने के लिए धान की रोपनी समाप्त होने के एक सप्ताह बाद खेत में 5-7 से.मी. पानी भरें । यदि पानी नहीं हो तो उसके बाद खेत में 10 कि.ग्रा. प्रति हे0 के दर से नील हरित खाद का छिड़काव बराबर रूप से कर दें । खेत में शैवाल डालने के बाद कम से कम 10 दिनों तक पानी भरा रहना चाहिए । इस तरह से एक ही खेत में कई सालों तक लगातार प्रयोग करते रहने से ये खाद आने वाले कई एक सालों तक डालने की जरूरत नहीं पड़ती है, इस प्रकार शैवाल खाद का पूरा लाभ फसलों को मिलता है जिससे उपज में वृद्धि होती है ।
नील हरित शैवाल खाद के प्रयोग से लगभग 30 कि.ग्रा. नेत्रजन प्रति हे. की प्राप्ति होती है, जो लगभग 65 कि.ग्रा. यूरिया के बराबर है, इसके प्रयोग से उपज में 0-15 प्रतिशत की वृद्धि अलग से होती है । यह स्वयं जैविक प्रवृति के होने के कारण अनेक उपयोगी अम्ल, विटामिन एवं पादप हारमोन भी भूमि में छोड़ते है, जो कि धान के पौधों के लिए लाभदायक है । इन सभों के अलावा यह ऊसर भूमि सुधारने में भी मदद करता है । नील हरित शैवाल खाद को किसान भाई कम खर्च में अपने घरों के आस पास बेकार पड़ी भूमि में बना सकते हैं । इसके लिए सबसे पहले ऐसे स्थान का चुनाव करना चाहिए जहाँ सूर्य का प्रकाश और शुद्ध हवा प्रर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो । इसे बनाने के लिए गैल्बानाइजड (जंगरोधी लोहे की चादर) लोहे की शीट से2 मी0 लम्बा, 1 मी0 चौड़ा तथा 15 से. मी. ऊँचा एक ट्रे बना लें । इस प्रकार का ट्रे इंट एवं सिमेंट के द्वारा भी बना सकते है । या फिर इसी साइज का गडढा खोद कर उसमें नीचे पोलीथीन शीट बीछा कर पानी डालकर भी इस्तेमाल कर सकते है । इस ट्रे में सबसे पहले 10 कि.ग्रा. दोमट मिट्टी में 200 ग्रा0 सुपरफास्फेट खाद एवं 2 ग्रा. चूना भी मिलायें । इस ट्रे में इतना पानी भरें कि 5 - 10 से.मी. की ऊचाई तक हो जाये । उसे कुछ घंटो तक छोड़ दें जिससे मिट्टी अच्छी तरह बैठ जाये । इसके बाद पानी की सतह पर एक मुट्ठी नील हरित शैवाल का प्रारम्भिक कल्चर छिड़क दें । 7-8 दिनों के बाद गहरे हरे रंग की काई की परत दिखाई पड़ने लगती है । अब पानी को सुखने के लिए छोड़ दें और जब पानी सुख जाय तो काई या शैवाल को आधा से.मी. की गहराई तक खुरच कर थैले में भर लें । फिर ट्रे में पानी डालकर इस क्रिया को दो तीन बार दुहरायें । एक बार भरे ट्रे से लगभग
1.5 से 2 कि.ग्रा. शैवाल खाद की प्राप्ति होगी । यह कार्यक्रम सालों भर चला कर शैवाल खाद बनाया जा सकता है ।
नील हरित शैवाल खाद बनाते समय सावधानियां
ट्रे या गडढे को ऐसे जगह पर रखे या बनाये जहाँ पूरी मात्रा में धूप एवं हवा आती हो क्योंकि धूप से ही इसमें गुणन विधि या फैलाव ज्यादा एवं जल्दी होता है| ट्रे में हमेशा पानी भरा रहे इसका भी ध्यान रखना चाहिए यदि मिट्टी अम्लीय हो तो चूना अवश्य डालें|