उत्तर प्रदेश के गन्ने पर घातक कीट का हमला
गन्ने की पत्ती का रस चूसने वाले सबसे घातक कीट पायरीला का प्रकोप उत्तरी बिहार के बाद पूर्वी व मध्य उत्तर प्रदेश में भी फैल गया है। इस कीट के आक्रमण से पहले से ही बे-मौसम वर्षा और ओलावृष्टिï से नुकसान झेल रहे किसानों की मुश्किलें और बढ़ गई हैं।
पायरीला कीट गन्ने के लिए सबसे घातक इसलिए माना जाता है क्योंकि यह कीट गन्ना उत्पादन और उससे जुड़े सह-उद्योगों को बुरी तरह प्रभावित करता है। यह पत्तियों का रस चूस लेते हैं, जिससे प्रकाश संश्लेषण कीक्रिया बाधित हो जाती है, और गन्ने का विकास रुक जाता है। साथ ही साथ इन कीटों के आक्रमण से प्रभावित गन्ने की पैदावार, शर्करा उत्पादन में 5-10 प्रतिशत तथा रस की शुद्धता में 12 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है। ग्रसित गन्ने के रस से बनाया गया गुड़ खराब होता है, कई बार तो गुड़ बन भी नहीं पाता। यह कीट सभी प्रजाति के गन्नों के लिए घातक है।
”गन्ने की फसल में अभी कटाई के बाद जो कल्ले निकले हैं उसे यह कीट काटे दे रहे हैं। पत्तियों का रस चूस लिया है, पीली पड़ गई हैं।” पांच एकड़ में गन्ने की खेती करने वाले किसान चंद्रपाल सिंह (70) आगे बताते हैं, ”दवाई वाले के पास से एक दवाई लाए थे, वो डाली थी पर अभी फायदा हुआ नहीं।ÓÓ
कीट के प्रकोप की स्थिति भांपने के लिए लखनऊ स्थित भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान के प्रधान वौज्ञानिक डॉ एके साह ने सीतापुर जि़ले में बिसवां चीनी मिल क्षेत्र की गन्ना फसल का सर्वेक्षण किया। लगभग सभी खेतों में पायरीला कीट का प्रकोप था। किसी-किसी खेत में तो कीटों की आक्रमता इतनी ज्यादा पाई गई कि पत्तियां पीली पड़ गई थीं।
”पूर्वी और मध्य उत्तर प्रदेश में स्थिति सबसे ज्यादा खराब है ” डॉ साह ने आगे बताया, ”तेज़ गर्म हवाएं इन कीटों को खत्म कर देती हैं लेकिन इस बार अपै्रल-मई में भी पुरवइया हवा, हल्की बरसात और हल्की आर्द्रता वाला माहौल रहा जो इस कीट की संख्या में तेजी से वृद्धि में सहायक होता है।”
”अभी जैसा मौसम है, ये कीट और बढ़ सकता है, ऐसी अवस्था कभी-कभी महामारी का रूप भी ले लेती है।” डॉ साह ने चेताया।
उत्तर प्रदेश में लगभग बीस लाख हेक्टेयर रकबे में गन्ना बोया जाता है। देश के पूरे गन्ना उत्पादन में उत्तर प्रदेश लगभग 35 फीसदी की हिस्सेदारी के साथ पहले नम्बर पर है। पायरीला कीट उत्पादन को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है।
चंद्रपाल, हरदोई जि़ला मुख्यालय के उत्तर में लगभग 50 किमी दूर स्थित सैदापुर गाँव के किसान हैं। यह क्षेत्र लखीमपुर खीरी और शाहजहांपुर से सटा है, जो कि प्रदेश की गन्ना बेल्ट के सबसे सघन हिस्सों में से एक है।
गन्ने के साथ-साथ सात एकड़ में गेहूं की भी खेती करते हैं। हाल ही में बे-मौसम वर्षा और ओलावृष्टि से उनकी गेहूं की उपज काफी ज्यादा प्रभावित हो गई, साथ ही साथ चालू पेराई सत्र में बेचे गए गन्ने का रुपया भी मिल पर बकाया है। जमापूंजी के अभाव की स्थिति में इस कीट से निपटने के लिए ज़रूरी दवाई का खर्च जुटाना भी किसानों के लिए समस्या बन रहा है। ”लगभग एक लाख रुपए मिल पर बकाया हैं, गेहूं में भी आधी उपज ही निकल पाई इस बार बारिश की वजह से। दवाई वगैरह का खर्च बड़ा भारी लग रहा” चंद्रपाल ने कहा।
कीट से निपटने के उपाए
डॉ एके साह ने पायरीला कीट से निपटने की जानकारी देते हुए बताया कि इस कीट को खाने वाला किसान मित्र कीट ‘इपीरिकेनिया, जिसके ककून चौकोर सफेद रंग के होते हैं, खेतों में दिखाई पडऩे लगे हैं। इपीरिकेनिया कीट, पायरीला को स्वत: नियंत्रित कर देता है, इसलिए इपीरिकेनिया कीट की संख्या ज्यादा होने की दशा में छिड़काव करने की जरूरत नहीं है।
अपने खेतों में इपीरिकेनिया कीट का दायरा फैलाने के लिए किसान इपीरिकेनिया कीट के ककून ज्यादा संख्या में (प्रति गन्ना थान में एक या अधिक ककून) दिखाई देने पर, वहां से ककून को पत्ती समेत काटकर पायरीला प्रकोप वाले खेतों में गन्ने की पत्तियों से जोड़ दें। इपीरिकेनिया की संख्या कम होने पर इमिडाक्लोप्रिड (17.8 एसएल) या डायमेथोएट (40 ईसी) दवा के घोल का छिड़काव पत्तियों के ऊपर करें। पायरिला कीट की संख्या बहुत अधिक हो जाने की दशा में मोनोक्रोटोफास, क्युनालफास व एसीफेट दवा का छिड़काव पत्तियों पर करना चाहिए।
गन्ना उत्पादक सभी राज्य खतरे में
पायरीला सभी गन्ना उत्पादक प्रदेशों जैसे पंजाब, हरियाण, उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु एवं केरल में गन्ने को हानि पहुंंचाता है। देश में इस कीट का सबसे पहला प्रकोप 1917 में पंजाब में गन्ने की फसल पर हुआ था। मक्के की फसल को भी यह कीट नुकसान पहुंचाता है।
प्रकोप के लक्षण
प्रकोपित गन्ने की पत्तियां इस कीट के शिशुओं व वयस्कों द्वारा निरंतर रस चूसने के कारण पीली पड़ जाती हैं। भयंकर रूप से प्रभावित पत्तियां काली पड़कर सूखने लगती हैं।
पायरीला की पहचान
पायरीला वयस्क गन्ने की सूखी पत्तियों के रंग के होते हैं। सिर के आगे नुकीली नाक निकली होती है तथा आंखें काली होती हैं। अगले जोड़ी पंख लंबे जिनके बाहरी सिरे गोल होते हैं तथा पिछले पंख अपेक्षाकृत छोटे तथा चौड़े होते हैं। अंडे, हल्के पीले अंडाकर होते हैं जिसके ऊपर सफेद रंग का जाला लगा होता है जो बिलकुल रूई की तरह नजर आता है।