औषधीय पौधे स्टीविया
जलवायु
स्टीविया की खेती भारतवर्ष में पूरे साल भर में कभी भी करायी जा सकती हैइसके लिये अर्धआद्र एवं अर्ध उष्ण किस्म की जलवायु काफी उपयुक्त पायीजाती है ऐसे क्षेत्र जहाँ पर न्यूनतम तापमान शून्य से नीचे चला जाता हैवहाँ पर इसकी खेती नही करायी जा सकती 11 सेन्टीग्रेड तक के तापमान में इसकी खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है
भूमि
स्टीविया की सफल खेती के लिये उचित जल निकास वाली रेतीली दोमट भूमि जिसका पी०एच० मान 6 से 7 के मध्य हो, उपयुक्त पायी गयी है जल भराव वाली याक्षारीय जमीन में स्टीविया की खेती नही की जा सकती है
रोपाई
स्टीविया वर्ष भर में कभी लगाई जा सकती है लेकिन उचित समय फरवरी-मार्च का महीना है तापमान एवं लम्बे दिनों का फसल के उत्पादन पर अधिक प्रभाव पङता होता है स्टीवियाके पौधों का रोपाई मेङो पर किया जाता है इसके लिये 15 सेमी० ऊचाई के 2 फीटचौङे मेंड बना लिये जाते है तथा उन पर कतार से कतार की दूरी 40 सेमी० एवं पौधों में पौधें की दूरी 20-25 सेमी० रखते है दो बेङो के बीच 1.5 फीट की जगह नाली या रास्ते के रूप में छोङ देते है
खाद एवं उर्वरक
क्योकि स्टीविया की पत्तियों का मनुष्य द्वारा सीधे उपभोग किया जाता हैइस कारण इसकी खेती में किसी भी प्रकार की रसायनिक खाद या कीटनाशी काप्रयोग नहीं करते है एक एकङ में इसकी फसल को तत्व के रूप में nitrozan ,फास्फोरस एवं पोटाश की मात्रा क्रमश: 110 : 45: 45 कि० ग्रा० की आवश्यकता होती है इसकी पूर्ति के लिये 70-80कु० वर्मी कम्पोस्ट या 200 कु० सङी गोबर की खाद पर्याप्त रहती
सिंचाई
स्टीविया की फसल सूखा सहन नहीं कर पाती है फसल सूखा सहन नहीं कर पाती है इसको लगातार पानी की आवश्यकता होती है सर्दी के मौसम में 10 दिन के अन्तराल पर तथा गर्मियों में प्रति सप्ताह सिंचाई करनी चाहिये वैसे स्टीविया भी फसल में सिंचाई करने का सबसे उपयुक्त साधन स्प्रिंकलरर्स या ड्रिप है
खरपतवार नियंत्रण
सिंचाई के पश्चात खेत की निराई खेत की निराई- गुङाई करनी चाहिये जिससे भूमि भुरभुरी तथा खरपतवार रहित हो जाती है जो कि पौधों में वृद्धि के लिये लाभदायक होता है
रोग एवं कीट नियंत्रण
सामान्यत: स्टीविया की फसल में किसी भी प्रकार का रोग या कीङा नहीं लगताहै कभी-कभी पत्तियों पर धब्बे पङ जाते है जो कि बोरान तत्व की कमी के लक्षण है इसके नियंत्रण के लिये 6 प्रतिशत बोरेक्स का छिङकाव किया जासकता है कीङो की रोकथाम के लिये नीम के तेल को पानी में घोलकर स्प्रेकिया जा सकता है
कटाई
फूलों को तोङना-
क्योंकि स्टीविया की पत्तियों में ही स्टीवियोसाइड पायेजाते है इसलिये पत्तों की मात्रा बढायी जानी चाहिये तथा समय-समय पर फूलोंको तोङ देना चाहिये अगर पौधे पर दो दिन फूल लगे रहें तथा उनको न तोङाजाये तो पत्तियों में स्टीवियोसाइड की मात्रा में 50 प्रतिशत तक की कमी हो सकती है फूलों की तुङाई, पौधों को खेत के रोपाई के 30, 45, 60,75 एवं 90 दिन के पश्चात एवं प्रथम कटाई के समय की जानी चाहिये फसल की पहली कटाई के पश्चात 40, 60 एवं 80 दिनों पर फूलों को तोङने की आवश्यकता होती हैफसल की कटाई- स्टीविया की पहली कटाई पौधें रोपने के लगभग ४ महीने पश्चातकी जाती है तथा शेष कटाईयां 90-90 दिन के अन्तराल पर की जाती है इसप्रकार वर्ष भर में 3-4कटाईया तीन वर्ष तक ही ली जाती है, इसके बादपत्तियों के स्टीवियोसाइड की मात्रा घट जाती है कटाई में सम्पूर्ण पौधेको जमीन से 6-7 सेमी० ऊपर से काट लिया जाता है तथा इसके पश्चात पत्तियों को टहंनियों से तोङकर धूप में अथवा ड्रायर द्वारा सूखा लेते है तत्पश्चात सूखी पत्तियों को ठङे स्थान में शीशे के जार या एयर टाईट पोलीथीन पैक में भर देते है
उपज
उपज- वर्ष भर में स्टीविया की 3-4कटाईयों में लगभग 70 कु० से 100 कु०सूखे पत्ते प्राप्त होते है
लाभ
वैसे तो स्टीविया की पत्तियों का अन्तर्राष्ट्रीय बाजार भाव लगभगरू० 300-400 प्रति कि०ग्रा० है लेकिन अगर स्टीविया की बिकीदर रू० 100/प्रति कि०ग्रा० मानी जाये तो प्रथम में एक एकङ में भूमि से 5 से 6 लाख की कुल आमदनी होती है, तथा आगामी सालों में यह लाभ अधिक होता है कुल आमदनी होती है, तथा आगामी सालों में यह लाभ अधिक होता है कुल तीन वर्षो में लगभग 1 एकङ से 5-6 लाख का शुद्ध लाभ प्राप्त किया जा सकता है
vp singh
Sikar(rajasthan)