जल प्रबंधन की जरूरत
भारत में सिंचाई कुप्रबंधन के कारण करीब छह-सात मिलियन हेक्टेयर भूमि लवणता से प्रभावित है। यह स्थिति पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश में ज्यादा है। इसी तरह करीब छह मिलियन हेक्टेयर भूमि जलजमाव से प्रभावित है।
देश में पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा एवं उत्तर-पूर्वी राज्यों में जलजमाव की समस्या है। असमतल भू-क्षेत्र वर्षा जल से काफी समय तक भरा रहता है। इसी तरह गर्मी के दिन में यह अधिक कठोर हो जाती है। ऐसे में इसकी अम्लता बढ़ जाती है और इसमें खेती नहीं हो पाती है।
यदि इस समस्या का निराकरण कर दिया जाए तो खाद्य उत्पादन में आशातीत बढ़ोतरी होगी। इसी तरह रासायनिक खादों के अधिक प्रयोग के कारण अम्लीय भूमि भी हमारे देश की उत्पादन क्षमता को प्रभावित कर रही है। अम्लीय मृदा में विभिन्न पोषक तत्वों का अभाव हो जाता है। इससे मृदा अपरदन की संभावना बढ़ने लगती है।
भारत में करीब 60 फीसदी कृषि भूमि वर्षा पर आधारित है। बदलते परिवेश में मानसून की सक्रियता कहीं कम तो कहीं ज्यादा होने से बाढ़ व सूखे के हालात रहते हैं। बाढ़ के कारण कृषि योग्य भूमि प्रभावित होती है। बाढ़ के पानी के बहाव के साथ मिट्टी की ऊपरी परत भी बह जाती है। इसे जल अपरदन कहते हैं।
पारिस्थितिकीविदों की मानें तो भारत में हर साल करीब छह हजार टन उपजाऊ ऊपरी मिट्टी का कटाव होता है। पानी के साथ बहने वाली इस मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, कैल्शियम, मैग्नीशियम के साथ ही अन्य सूक्ष्य तत्व भी बह जाते हैं। इससे किसानों का खेत अनुपजाऊ हो जाता है।
मध्य एवं पूर्वी भारत जलजनित क्षरण की चपेट में ज्यादा आता है। इसका एक बड़ा कारण यहां की मिट्टी की स्थिति भी है। ऐसे में इस मिट्टी को बचाने के लिए सबसे उपयुक्त उपाय है मिट्टी के अनुकूल फसल चक्र का अपनाया जाना।
जलजनित क्षरण से बचने के लिए जड़युक्त फसलों की खेती ज्यादा से ज्यादा कराई जाए। बाढ़ प्रभावित इलाके में पानी के तीव्र गति से होने वाले बहाव को रोकने के लिए जगह-जगह बाड़बंदी कराई जाए। पट्टीदार खेती करने वाले किसानों को मेड़बंदी में विशेष सहयोग किया जाए।
कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि पौधे का प्रथम भोजन पानी माना गया है। पौधे को तैयार होने में करीब 90 फीसदी जल की आवश्यकता होती है। यह मिट्टी में उपस्थित तत्वों काे भोजन के रूप में पौधे तक पहुंचाता है।
मिट्टी में समुचित आर्द्रता होना भी जरूरी होता है। मिट्टी में पानी का कम होना और अधिक होना दोनों ही बात पौधे को किसी न किसी रूप में प्रभावित करती हैं। इसलिए जल प्रबंधन बेहद जरूरी है।