सब्जी उत्पादन के नये आयाम
भारत एक प्रमुख सब्जी उत्पादक देश है. हमारे देश की जलवायु में काफी विभिन्नता होने के कारण देश के विभिन्न भागों में 60 से अधिक प्रकार की सब्जियां उगायी जाती है. वर्तमान में हमारे देश में लगभग 60 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सब्जियों की खेती की जाती है. जिसका सकल उत्पादन लगभग 8.4 करोड़ टन है. इस प्रकार भारत, चीन के बाद विश्व का सर्वाधिक सब्जी उत्पादक देश है.
स्वतंत्रता के बाद देश की सब्जी का उत्पादन छह गुणा से अधिक बढ़ा है लेकिन देश की बढ़ती हुई जनसंख्या को देखते हुए इसे और बढ़ाने की आवश्यकता है. वर्ष 2020 तक देश की आबादी लगभग 13.5 करोड़ से अधिक होगी जिसके लिए लगभग 15 करोड़ टन सब्जी की आवश्यकता है. सब्जियों को भरपूर सेवन से कुपोषण की समस्या से भी निपटा जा सकता है. सब्जी उत्पादन की दिशा में महत्वपूर्ण कदम था चौथी पंचवर्षीय योजना के दौरान वर्ष 1970 में अखिल भारतीय समन्वित सब्जी विकास परियोजना को आरंभ करना. इस योजना का मूल उद्देश्य देश के विभिन्न कृषि जलवायु क्षेत्रों के लिए सब्जियों की किस्मों का विकास तथा परीक्षण करना और क्षेत्र विशेष की परिस्थितियों के अनुसार सब्जी उत्पादन की शस्य और पौध संरक्षण संबंधी तकनीक का विकास करना था. इस योजना के अंतर्गत पूरे देश को आठ कृषि जलवायु क्षेत्रों में बांटा गया. अब तक इस योजना के अंतर्गत विभिन्न सब्जियों की 200 अधिक उन्नत व रोग प्रतिरोधी किस्में विकसित की गयी है. इसके अतिरिक्त 41 संकर किस्में भी अनुमोदित की गयी है.
रोग प्रतिरोधी किस्मों का विकास
रोग प्रतिरोधी किस्मों के विकास से पौधे संरक्षण में प्रयोग किये जाने वाले रसायनों में काफी कमी की जा सकती है. इससे उत्पादन की लागत कम आती है साथ ही उपभोक्ता के स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी पर भी प्रतिकूल असर नहीं पड़ता. पिछले दशक में टमाटर में फ्यूजेरियम तथा वर्तिसिलियम मुङोन, बैगन में जीवाणु मुझनि, मटर में चूर्णित फफूंद, फूलगोभी तथा पत्तागोभी में काला गलन तथा भिंडी में पीत शिरा मोजेक विषाणुरोधी किस्में विकसित की गयी.
सब्जियों की कार्बनिक खेती
सब्जियों पर बहुत से कीट व बीमारियों का प्रकोप होता है. जिसके नियंत्रण के लिए बहुत से कीटनाशी रसायनों का प्रयोग किया जाता है. इन कीटनाशी रसायनों का पूर्णरूप से विखंडन नहीं होने पर वे अवशेष के रूप में मानव शरीर में पहुंच जाते हैं जिससे भयावह रोगों के उत्पन्न होने का खतरा रहता है. इसी वजह से विकसित देशों जैसे अमेरिका, इंग्लैंड तथा अन्य यूरोपिय देशों में आजकल कार्बनिक विधि से उगायी गयी सब्जियों की मांग निरंतर बढ़ रही हैं. इस तरह की सब्जियों को उगाने से लेकर तुड़ाई के बाद तक हानिकारक रसायनों के प्रयोग से दूर रखा जाता है. अमेरिका में राष्ट्रीय कार्बनिक मानक बोर्ड जैसी संस्था है जो सब्जियों की कार्बनिक खेती के लिए शस्य, जैविक तथा अन्य प्रणाली के जरिये सब्जियों को उगाने तथा उसमें रोग तथा कीट प्रबंधन पर बल देती है. ब्रिटेन में कार्बनिक ढंग से उगायी गयी सब्जियों को पूर्णरूप से वैज्ञानिक मान्यता मिली है और उनपर कार्बनिक का लेबल लगा होता है. वहां ब्रिटिश आर्गेनिक फारमर्स तथा आर्गेनिक ग्रोवर एसोसिएशन है जिससे उपभोक्ता को कार्बनिक ढंग से उगायी गयी सब्जियों की आपूर्ति की जाती है. हमारे देश में कार्बनिक विधि से उगायी गयी सब्जियों की दिल्ली, मुंबई, चेन्नई तथा कोलकाता जैसे महानगरों में काफी मांग है. इस दिशा में अभी विशेष शोध कार्य नहीं किया गया है और भविष्य में और अधिक अनुसंधान की आवश्यकता हैं.
जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान में प्रगति
जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान में काफी प्रगति हुई है जिसके फलस्वरूप परंपरागत प्रजनन तकनीकों से जिन गुणों का समन्वय नई किस्म के विकास में असंभव प्रतीत होता था. उसे अब इस तकनीक के जरिये सुगमता से प्राप्त किया जा सकता है. सब्जियों में भ्रूण सवंधर्न, जीव द्रव्यक तथा पराग संवर्धन और कायिक संकरण तथा आनुवंशिक अभियंत्रिकी के प्रयोग से जैविक तथा अजैविक दवाओं के प्रति सहनशील/अवरोधी किस्में आसानी से विकसित की जा सकती है. खरबूजे के अंतर्गत इसकी दो प्रजातियों कुकुमिस मिटेलिफेरस तथा सी. एंगुरिया में भ्रूण संवर्धन द्वारा निमाटोड अवरोधी किस्में विकसित की गयी है. संकर बीज के नर बंध्यता का बहुत महत्व है और नर बंध्यता प्रो. टोप्लाज्म फ्यूजन तकनीक से जंगली किस्में में प्रयोग को लगा सकते है तथा इससे सूक्ष्म प्रवर्धन विधि को अपना कर नर बंध्यता पंक्ति से अधिक पौध बनाने में सहायता मिलती है. जैव तकनीक के प्रयोग से टमाटर में रिन, नार, एससी जींस को स्थानांतरिक करके ऐसी किस्में विकसित करने पर बल दिया जा रहा है. जिसकी भंडारण क्षमता काफी अधिक होती है.
खेती में जल प्रबंध
सब्जियों की अधिक उपज गुण तथा स्वाद को बनाये रखने के लिए समुचित जल प्रबंध बहुत आवश्यक है. अभी हाल के वर्षो में कुछ सब्जियों में ड्रिप सिंचाई की विधि अच्छी साबित हुई है. इस विधि से सिंचाई करने से 50-60 प्रतिशत तक जल की बचत होती है और सब्जियों की उपज में भी काफी वृद्धि होती है क्योंकि पौधों को पानी बराबर नियंत्रित मात्र में मिलता रहता है. नियंत्रित पानी में पानी मिलने से खर-पतवार भी कम उगते है तथा ऐसी संकर किस्में जो अधिक नमी के प्रति काफी संवेदनशील है. उनके लिए लाभप्रद होता है. ड्रिप विधि के जरिये पौधों के लिए आवश्यक घुलनशील तत्वों की आपूर्ति करना सुविधाजनक होता है क्योंकि इसमें पोषक तत्व सीधे पौधे की जड़ों को मिल जाते है इस तकनीक के विकास पर और अधिक बल देने की आवश्यकता है.
जैव उर्वरकों का उपयोग
सब्जियों की खेती में जैव उर्वरकों का उपयोग काफी प्रभावी पाया गया है. जैव उर्वरकों में पाये जाने वाले सूक्ष्म जीव वातावरण लेकर नाइट्रोजन लेकर पौधों को पहुंचाते हैं. ये सूक्ष्म जीव मृदा के अंदर स्वतंत्र रूप से या सहजीवी जीवन व्यतीत करते है और पौधे को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में नाइट्रोजन देती है.
पोषक तत्वों का संतुलित उपयोग
प्रति इकाई खेत में अन्य फसलों की तुलना में सब्जियां कई गुणा अधिक उपज देती है. इनकी अच्छी उपज लेने के लिए आवश्यक है संतुलित पोषक तत्वों का उपयोग किया जाये. पौधों की वृद्धि और समुचित विकास के लिए 16 पोषक तत्वों की आवश्यकता पड़ती है. इनमें से कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन पौधे पानी तथा वायुमंडल से प्राप्त करते है. जबकि शेष 13 तत्व भूमि से लेते है.
नियति योग्य सब्जियों, किस्मों व गुणों का निर्धारण
कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद नियति विकास प्राधिकरण ने नियति योग्य सब्जियों को दो वर्गो में बांटा है- परंपरागत तथा अपरंपरागत सब्जियां. परंपरागत सब्जियों में प्याज, आलू, भिंडी, करेला, मिर्च को रखा गया है जबकि अपरंपरागत सब्जियों में एस्परगस, सिलेरी, शिमला मिर्च, स्वीट कार्न, बेबी कार्न, हरी मटर, फ्रेंचबीन खीरा और हरकिन तथा चेरी टमाटर को सम्मिलित किया गया है. इन सब्जियों में सबसे अधिक नियति प्याज का किया जाता हैं. अन्य सब्जियां जिनका नियति होता है. उनमें प्रमुख है टमाटर, फूलगोभी, पत्ता गोभी, लौकी, गाजर तथा बींस.
नियति के लिए भंडारण, पैकिंग तथा परिवहन
सब्जियों का अधिकार नियति मुंबई से किया जाता है. ताजी हरी सब्जियों को डालियों या जूट के बोरे में भरकर लाया जाता है. विमान द्वारा भेजने से पूर्व छटाई श्रेणकिरण तथा पैकिंग का कार्य किया जाता है. आलू और लहसून को भी खुले जूट के बोरे में भरकर मुंबई लाया जाता है. पटना से प्याज का नियति बंग्लादेश के लिए खुले जुट के थैलों में भरकर किया जाता है.