चुकंदर की जैविक खेती

चुकंदर की उपयोगी गुण पोषक तत्वों से समृद्ध है।यह 8-15% चीनी, 1.3-1.8% प्रोटीन, 3-5% कार्बनिक अम्ल, मैग्नीशियम, कैल्शियम, पोटेशियम, फास्फोरस, आयोडीन, आयरन और मैंगनीज की बड़ी मात्रा में, साथ ही विटामिन सी, बी 1, बी 2 में शामिल, पी, पीपी।गरमी चुकंदर पर अन्य सभी भोजन रसीला सब्जियों से बढ़कर है।यह रस, रक्त को शुद्ध करने में मदद करता पेट और जिगर की गतिविधि को बढ़ावा देने।यह प्रति वर्ष औसतन हर व्यक्ति सब्जियों के कम से कम 6 किलो का उपभोग करना चाहिए के लिए अनुमान है।

जलवायु 
चुकंदर कि खेती ४-५ हजार मीटर कि उचाई तक कि जा सकती है ३०-६० से.मी.वर्षा वाले क्षेत्र इसकी खेती के लिए उपयुक्त माने गए है चुकंदर के लिए उच्चतम तापमान ५०-६० डिग्री फारेनहाईट है तापमान अधिक होने पर जड़ों में चीनी कि मात्रा अधिक होने लगती है वृद्धि के समय शुष्क मौसम , चमकीला , दिन व रात में ठंडक होना अति उत्तम है ।
भूमि 
दोमट या बलुई दोमट मृदाएँ चुकंदर के लिए अच्छी रहती है भारी (चिकनी ) मृदाओं में इसकी खेती सफलता पूर्वक कर सकते है परन्तु खुदाई के समय जड़ों से मिटटी कि सफाई करने में कठनाई उत्पन्न होती है मृदा उपजाऊ होना आवश्यक है मृदा का जल निकास भी बहुत आवश्यक है छोटे पौधो पर भूमि में पानी ठहरने से हानी कारक प्रभाव पड़ता है चुकंदर लवणीय मृदाओं में भी आसानी से उगाया जा सकता है ।

चुकंदर किस्में

ईरो टाइप ईमेरोबी, मेरोक, पोलीइग्लोपोलीएन,.पी.पोलीए.,जे.पोलीमेरोबी, मेगना पोलीरोमांस, कायाब्रुश, ई ट्रिपेलक्सयु,. एस. एच. -९,बी.जी.डब्ल्यू - ६७४,यु.एस.-७५,यु.एच .-३५ए.म्.एस.एच.-१०२

बीज बुवाई/ पौध रोपण 

बीज बीज बुवाई के समय मृदा में नमी कि मात्रा , बोने के समय व बीज कि जाति पर निर्भर करती है एक अंकुर वाली जातियों में ५-६ किलो ग्राम तथा बहु अंकुर वाली जातियों में १०-१२ किलो ग्राम बीज प्रति हे.कि आवश्यकता पड़ती है ।

अंतरण 

प्रति  एकड़ .3,००० - 5०,००० पौधे रखना लाभदायक है उसके लिए पंक्तियों से पंक्तियों कि दुरी ४०-६० से.मी.व पौधे से पौधे कि दुरी २०-२५ से.मी.रखी जाति है ।

बोने का समय

बोने का समय चुकंदर कि जाति पर निर्भर करता है साधारणतया १५ अक्तूबर से १५ नवम्बर तक इसकी बुवाई करते है  हिमाचल प्रदेश में चुकंदर का बीज उत्पादन अच्छा होता है बीज के लिए बुवाई का समय १५ अप्रैल है 

बोने कि विधि 

बुवाई से पहले पलेवा करना अच्छा रहता है चुकंदर कि बुवाई समतल खेत में या मेढ़ों पर कि जाती है अगर चुकंदर बोने वाली सीडड्रिल उपलब्ध हो तो उससे सीधे मेढ़ों के ऊपर या समतल खेत में बुवाई कि जा सकती है यदि ड्रिल उपलब्ध न हो तो देशी हल से या किसी हलके यंत्र से एच्छिक दुरी पर कुंढ़ (५० से.मी.कि दुरी पर ) खोलने का कार्य किया जाता है और इनमे १०-२० से.मी.के अंतर पर बीजों कि बुवाई कर देते है बोने से पहले बीजों को रात भर ८-१० घंटे पानी में भिगाना चाहिए तथा बोने से पहले बीजों को थोड़ी देर छाया में सुखाना चाहिए ।

आर्गनिक खाद :-

चुकंदर कि अच्छी फसल लेने के लिए गोबर कि सड़ी हुई खाद लगभग १० से १२ क्विंटल प्रति एकड़ में और आर्गनिक खाद एवं नीम की खली लगनी चाहिए  पोटाश और बोरान के लिए जैव व्यवस्था की जा सकती है 

सिचाई 

चुकंदर को अधिक पानी की आवश्यकता नही होती है सिचाइयों कि संख्या व समय सर्दियों कि वर्षा के ऊपर निर्भर करता है साधारणत: पहली दो सिचाइया बुवाई के १५-२० दिन के अंतर पर करते है बाद में फसल कि कटाई तक २०-२५ दिन के अंतर पर सिचाइया करते रहते है आवश्यकता से अधिक पानी खेत में नहीं ठहरने देना चाहिए इससे शर्करा कि मात्रा पर बुरा प्रभाव पड़ता है खुदाई के समय भूमि में कम नमी रखना , सुक्रोज कि मात्रा बढ़ाता है ।

खरपतवार नियंत्रण

फसल बोने के ६० दिन बाद तक फसल को खरपतवारों से मुक्त रखा जाता है बुवाई के ३० दिन बाद खेत में पहली निराई -गुड़ाई कर देते है दूसरी निराई -गुड़ाई ५५ दिन के बाद करते है ।

 कीट नियंत्रण 

कट वार्म या कटुआ 

तम्बाकू की सुंडी 

बिहार हेयरी कैटर पिलर 

ग्रीन पिच एफिड 

पत्तियों का चित्ती रोग 

रोकथाम

इनकी रोकथाम के लिए नीम का काढ़ा और गोमूत्र को मिलाकर २५० मी .ली ./पम्प द्वारा तर-बतर कर खेत में छिडकाव करें ।

खुदाई

बुवाई के ५-६ महीने बाद फसल पककर तैयार हो जाती है परिपक्वता के समय पत्तियां सुख जाती है खुदाई से १५ दिन पहले सिचाई रोक देते है ।

पौधों कि छंटाई 

बहु अंकुर किस्म के बीज से , एक से एक अधिक पौधे निकलते है इसलिए खेत में पौधों कि इच्छित संख्या रखने के लिए अंकुरण के लगभग ३० दिन बाद पौधों कि छंटाई करना आवश्यक होता है ।

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