क्या किसानों की आय 2020 तक दोगुनी होगी ?
केन्द्रीय वित्तमंत्री श्री अरूण जेटली ने बुधवार को संसद में वर्ष 2017-18 का आम बजट पेश करते हुए बताया कि सरकार को मानसून की स्थिति बेहतर रहने से चालू वर्ष 2016-17 के दौरान कृषि क्षेत्र में 4.1 प्रतिशत होने की उम्मीद है।
बजट में कुछ खास बातें निम्न प्रकार से हैं
- किसान कर्ज पर ब्याज में कटौती, किसानों को लोन के लिए दस लाख करोड़ रुपये.
- इस साल खेती 4.1 प्रतिशत की दर से बढ़ने की उम्मीद. माइक्रो सिंचाई फंड के लिए शुरुआती 5000 करोड़ रुपये का फंड.
- डेयरी उद्योग के लिए नाबर्ड के जरिये 8 हजार करोड़ रुपये का इंतजाम. दुग्ध पैदावार के लिए 300 करेाड़ का शुरुआती फंड.
- मनरेगा में आवंटन से ज्यादा खर्च किया गया. मनरेगा में इस साल भी 5 लाख तालाब का लक्ष्य रखा गया है. मनरेगा में अंतरिक्ष विज्ञान की मदद ली जाएगी, काम स्पेस टेक्नोलॉजी से जांचा जाएगा.
- एक करोड़ परिवारों को गरीबी से बाहर लाना है. प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना कॉन्ट्रैक्ट खेती के लिए नया कानून.
- गामीण इलाकों में अब 60 फीसदी सैनिटेशन प्रबंध. मार्च 2018 तक सभी गावों में बिजली पहुंचाई जाएगी.
- नाबार्ड के कंप्यूटरीकरण की ओर ध्यान देंगे ताकि किसानों को कर्ज देने में आसानी होगी
- कृषि विकास दर 4.1 पर्सेंट होने की उम्मीद। इस बार फसल अच्छी रहने की उम्मीद
- 150 लाख गांवों में ब्रॉडबैंड सेवा पहुंचाई जाएगी
- गांवों में महिला शक्ति केंद्र स्थापना के लिए 500 करोड़ रुपये का प्रावधान.
- मनरेगा के लिए 48000 करोड़ का आवंटन.
- गामीण इलाकों में अब 60 फीसदी सैनिटेशन प्रबंध. मार्च 2018 तक सभी गावों में बिजली पहुंचाई जाएगी.
किसानों को यह होगा फायदा
वित्त मंत्री द्वारा की गई घोषणाओं के चलते किसानों को फसल बीमा का फायदा तो मिलेगा ही साथ ही सॉइल टेस्टिंग में भी आसानी होगी। किसानों को सहकारी ऋण ढांचे से लिए गए ऋण के संबंध में प्रधानमंत्री द्वारा घोषित 60 दिनों के ब्याज के भुगतान से छूट का भी लाभ मिलेगा।
अनसुलझी हकीकत
देश में 1 हेक्टेयर या इससे कम आकार के जोतों की तादाद में एक दशक के भीतर 23 फीसद का इजाफा हुआ है. 2000-2001 में ऐसे जोतों की संख्या 75.41 मिलियन थी जो 2010-11 में बढ़कर 92.83 मिलियन हो गई।
देश के ज्यादातर किसान इन्हीं सीमांत जोत के मालिक हैं. इनकी आमदनी और खर्च के हिसाब से पता चल सकता है कि अन्नदाता कहलाने वाला किसान खुशहाल या बदहाल है।
खेतिहर परिवारों की आमदनी और खर्च का एक हिसाब नेशनल सैंपल सर्वे की रिपोर्ट में दर्ज है. 2014 के दिसंबर महीने में आई इस रिपोर्ट के मुताबिक देश के कुल 9 करोड़ किसान परिवारों में तकरीबन सवा छह करोड़ किसान-परिवारों के पास 1 हेक्टेयर या इससे कम जमीन है।
सरकार ने किसान की आय को 2022 तक दोगुना करने का वादा किया है। उम्मीद है कि आगामी बजट में कृषि के क्षेत्र को अनुदान में पुन: वृद्धि की जाएगी, परंतु इसके सफल होने की संभावना में संदेह है, जैसा कि पिछले बजट में हुआ है। किसान की मूल समस्या कृषि उत्पादों के दाम की है, जिस पर सरकार का ध्यान नहीं जा रहा है। दाम में वृद्धि के अभाव में सिंचाई आदि में निवेश किसान के लिए अभिशाप बन गए हैं। ये कटु सत्य एक उदाहरण से स्पष्ट हो जाएगा। ब्रिटिश हुकूमत ने देश में सिंचाई योजनाओं और रेल लाइनों का जाल बिछाया था, परंतु देश की अर्थव्यवस्था का पतन ही होता गया। मुगलकाल में विश्व आय में भारत का हिस्सा 23 प्रतिशत था। 1947 में यह घटकर एक प्रतिशत रह गया। सिंचाई योजनाओं से हमारा कृषि उत्पादन बढ़ा, किंतु दाम न्यून रहने के कारण हमारा किसान पिटता गया। सरकार ने निवेश किया, किसान ने उत्पादन बढ़ाया, लेकिन दाम निरंतर गिरते गए और किसान मरता गया। कृषि में निवेश के साथ-साथ उचित दाम के प्रति उदासीनता से बजट का प्रभाव उल्टा हो गया। किसान की आय बढ़ाने के लिए कृषि उत्पादों के दाम में वृद्धि हासिल करनी होगी। इसमें शहरी उपभोक्ताओं का हित आड़े आता है। गेहूं और अरहर के दाम बढ़ने दिए जाएं तो किसान की आय बढ़ेगी,आज नीदरलैंड से पूरी दुनिया को ट्यूलिप के फूलों का निर्यात किया जाता है। इससे वहां के किसानों को इतनी आय होती है कि वे अपने मजदूरों को 7,000 रुपए की दिहाड़ी देते हैं। हमारे किसान अति बुद्धिमान हैं। उन्हें उन्न्त दाम के कृषि उत्पादों की ओर ले जाना चाहिए जैसे ऑर्गेनिक शहद, गुलाब, ट्यूलिप व ग्लाइडोलस के फूल, विशेष आकार के तरबूज आदि। इस दिशा परिवर्तन के कुछ सुझाव इस प्रकार हैं। कृषि मंत्रालय को कृषि अनुसंधान की तमाम इकाइयों को आदेश देना चाहिए कि उन्न्त मूल्यों के कृषि उत्पादों पर रिसर्च करें।
सरकार ने फसल के लिए बीमा योजना का दायरा बढ़ाया है मगर जानवरों और पोल्ट्री सेक्टर के बीमा पर कोई बात नहीं हुई। किसानों की इनकम बढ़ाने में इनका बड़ा रोल है। मछली और मधुमक्खी पालन भी दो ऐसे क्षेत्र हैं, जिनसे किसानों की आय बढ़ती है मगर इनके बारे में कोई घोषणा नहीं हुई। सरकार ने किसानों को कर्ज देने के लिए 10 लाख का रिकॉर्ड टारगेट तय कर लिया मगर वाजिब इंफ्रास्ट्रक्चर न होने के चलते किसानों को अपनी फसल का एमएसपी भी नहीं मिलता। वो अपने फंड का सही ढंग से उपयोग नहीं करते, जिसके चलते वह कर्ज के चंगुल में फंसते चले जाते हैं। जब तक इस कर्ज को कमाई वाली फसलों में नहीं लगाया जाएगा तब तक फार्म इनकम को लेकर आप आश्वस्त नहीं हो सकते।
मेरा मानना है कि बजटमें सिंचाई, मृदा हेल्थ कार्ड, बीमा और सस्ते ऋण से हमारे किसानों का कल्याण नहीं होने वाला है, जैसा कि 2016-17 के बजट का हश्र बताता है। सरकार को इन्हीं की तरह की और योजनायें लानी होगीं तथा राज्यों को निर्धारित कार्यक्रम की सख्ती से पालन करनें का लक्ष्य रखना चाहिय ।
लेखक किसान हैं और कृषि विशेषज्ञ है