खेती-किसानी का एक सूखा तो खत्म हुआ
यह शायद सबसे बड़ी नीतिगत घोषणा है। केंद्र सरकार द्वारा बजट में किसानों को उनकी फसलों के लागत मूल्य का डेढ़ गुना ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ दिए जाने की घोषणा से अब तक के हताश किसानों में उत्साह का संचार होगा। सरकार की इस घोषणा से चुनाव पूर्व किया गया वादा भी निभाया गया प्रतीत हो रहा है। वर्ष 2017 मंदसौर, यवतमाल व विदर्भ के किसान असंतोष का गवाह बना। तमिलनाडु के किसान संगठनों ने तो दिल्ली के बोट क्लब पर कई सप्ताह तक धरना दिया और लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए कई नाटकीय तरीके अपनाए। देश के बाकी हिस्सों का हाल भी कोई बहुत अच्छा नहीं था। एक के बाद एक तकरीबन पूरे देश से ही किसानों द्वारा आत्महत्या की खबरें आती रहीं। इसी वर्ष उपचार के अभाव में सैकड़ों शिशुओं की मृत्यु दिल दहलाने वाली घटना बनी है। इस लिहाज से देश के कृषि और स्वास्थ्य क्षेत्र को बजट से काफी उम्मीदें थीं। वित्त मंत्री के बजटीय भाषण में खेती-किसानी के मुद्दों की विशेष चर्चा व प्रावधान से कृषकों में सरकार के प्रति संवेदना का संचार हुआ है।
बजट 2018 में किसानों को कर्ज के लिए 11 लाख करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है, जो पिछले बजट की तुलना में लगभग एक लाख करोड़ अधिक है। सिंचाई के लिए 2,600 करोड़ रुपये की घोषणा की गई है। इसके साथ ही हमें यह भी देखना होगा कि केंद्र सरकार का पिछला बजट भी किसानों के लिए खास था, पर इस बार बजट में ग्रामीण भारत को सर्वाधिक तवज्जो दिया जाना सबसे बड़े जनसंख्या समूह का सम्मान है। वित्त मंत्री ने जिस तरह ग्रामीण जीवन शैली को आसान बनाने, किसानों की आय दोगुनी करने तथा कृषि को संकट से उबारने के वायदे किए, वह कृषि की कैंसर रूपी बीमारी की बड़ी शल्य चिकित्सा है। हाल के दिनों में देश भर के आलू, प्याज और टमाटर उत्पादकों की पीड़ा को महसूस करते हुए सरकार द्वारा ‘ऑपरेशन ग्रीन’ का प्रावधान इन उत्पादकों को राहत देने वाली है। इसके साथ ही 42 मेगा फूड पार्कों की स्थापना, जैविक खेती को बढ़ावा, 22 हजार कृषि हाट का निर्माण, पशुपालकों को क्रेडिट कार्ड आदि का प्रावधान किसानों के नजरिये से काफी उत्साहवद्र्धक कदम हैं।
फसलों के दामों में भारी इजाफे के साथ ही गरीबों व मजदूरों के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना नए बजट की सबसे बड़ी सौगात है। इस व्यवस्था के तहत दस करोड़ परिवारों यानी तकरीबन 50 करोड़ लोगों को पांच लाख रुपये सालाना का स्वास्थ्य बीमा प्रदान किए जाने का प्रावधान है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 86 फीसदी ग्रामीण और 82 फीसदी शहरी आबादी के पास न तो कोई सरकारी स्वास्थ्य स्कीम है और न ही कोई निजी बीमा। इस सूरत में नई बीमा नीति से जनसंख्या का बड़ा हिस्सा सीधे लाभान्वित होगा। इसके अलावा पांच लाख नए स्वास्थ्य केंद्रों की स्थापना, हेल्थ वेलनेस फंड के लिए 1,200 करोड़ की फंडिंग, 24 नए मेडिकल कॉलेजों की स्थापना देश के सार्वजनिक स्वास्थ्य को मजबूत करने के कदम हैं। इन स्वास्थ्य योजनाओं का असर पूरे देश पर पडे़गा। ये योजनाएं गांवों का नक्शा बदल सकती हैं।
पिछले तीन वर्षों के दौरान ओलावृष्टि, सूखा और किसानों की आत्महत्या में भारी इजाफे के मद्देनजर 2017-2018 का बजट भले ही किसान व कृषि हित में था, लेकिन योजनाओं के क्रियान्वयन में सुस्ती की वजह से ग्रामीण दुर्दशा ज्यों की त्यों बरकरार रही। इस लिहाज से यह पहला बजट है, जिसमें किसानों को उत्पादों की उचित कीमत देने की ‘सरकारी’ पहल की गई है। पिछले साल इसी सरकार द्वारा सर्वाेच्च न्यायालय में एक हलफनामा दायर कर न्यूनतम समर्थन मूल्य न बढ़ाए जाने की असमर्थता जताई गई थी। नीति आयोग समेत कृषि मंत्री ने भी स्वीकार किया है कि किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य से वंचित रहना पड़ रहा है। इस बजट के बाद यह उम्मीद बनी है कि भविष्य में ऐसा नहीं होगा। किसानों तक न्यूनमत समर्थन मूल्य का लाभ पहुंचे, इसकी निगरानी का जिम्मा राज्य सरकारों और नीति आयोग को सौंपा गया है।
केसी त्यागी, वरिष्ठ जद-यू नेता
(ये लेखक के अपने विचार हैं)