सेम की उन्नत खेती

सेम की उन्नत खेती

सेम एक लता है। इसमें फलियां लगती हैं। फलियों की सब्जी खाई जाती है। इसकी पत्तियां चारे के रूप में प्रयोग की जा सकती हैं। ललौसी नामक त्वचा रोग सेम की पत्ती को संक्रमित स्थान पर रगड़ने मात्र से ठीक हो जाता है।
सेम संसार के प्राय: सभी भागों में उगाई जाती हैं। इसकी अनेक जातियाँ होती हैं और उसी के अनुसार फलियाँ भिन्न-भिन्न आकार की लंबी, चिपटी और कुछ टेढ़ी तथा सफेद, हरी, पीली आदि रंगों की होती है। । वैद्यक में सेम मधुर, शीतल, भारी, बलकारी, वातकारक, दाहजनक, दीपन तथा पित्त और कफ का नाश करने वाली कही गई हैं। इसके बीज भी शाक के रूप में खाए जाते हैं। इसकी दाल भी होती है। बीज में प्रोटीन की मात्रा पर्याप्त रहती है। उसी कारण इसमें पौष्टिकता आ जाती है।

जलवायु 

सेम ठंडी जलवायु कि फसल है | इसे 15 से २२ डिग्री तक तापमान की आवश्यकता होती है इसमें पाला सहनें की क्षमता अधिक होती है 

भूमि 

इसके लिए उत्तम निकास वाली दोमट भूमि अधिक उपयुक्त  रहती है अधिक क्षारीय और अधिक अम्लीय भूमि इसकी खेती में बाधक होती है पहली जुताई मिटटी पलटने वाले हल से करें इसके बाद 2-3 बार कल्टीवेटर या हल चलाएँ प्रत्येक जुताई के बाद पाटा अवश्य लगाएं |

प्रजातियाँ

पूसा अर्ली प्रौलिफिक ,HD.1,HD26, रजनी ,HA3, DB1, DB18, JDL 53 ,JDL 85 , पूसा सेम3, पूसा ,सेम २ ,कल्याणपुर टाइप 1,कल्याणपुर टाइप 2

बीज बुवाई

 

बोने का समय

अगेती फसल - फ़रवरी -मार्च 
वर्षाकालीन फसल - जून - जुलाई 
रजनी नामक किस्म अगस्त के अंत तक बोई जाती है |

बीज की मात्रा

प्रति हे. ६ किलो ग्राम बीज पर्याप्त होता है |

दूरी 

पंक्तियों और पौधों की आपसी दूरी क्रमश: ९० से.मी.और ९० से.मी. रखें यदि सेम को चौड़ी क्यारियों में बोना हो तो १.५ मीटर  की चौड़ी क्यारियां बनाएँ उनके किनारों पर ५० से.मी.की दूरी पर २-३ से.मी. की गहराई पर बीज बोएं पौधों को सहारा देकर ऊपर बढ़ाना लाभप्रद होता है |

खाद एवं उर्वरक

सेम की फसल की अच्छी उपज लेने के लिए उसमे आर्गनिक खाद ,कम्पोस्ट खाद का पर्याप्त मात्रा में होना जरुरी है इसकी लिए एक हे. भूमि में ४०-५० क्विंटल अच्छे तरीके से सड़ी हुई गोबर की खाद  20 किलो ग्राम नीम और 50 किलो अरंडी की खली इन सब खादों को अच्छी तरह मिलाकर मिश्रण बनाकर खेत में बुवाई से पहले समान मात्रा में बिखेर लें और खेत की अच्छे तरीके जुताई कर खेत को तैयार करें इसके बाद बुवाई करें |
और जब फसल 25 - 30 दिन की हो जाए तब उसमे 10ली. गौमूत्र में नीम का काड़ा मिलाकर अच्छी प्रकार से मिश्रण तैयार कर फसल में तर-बतर कर छिड़काव करें और हर 15-20 दिन के अंतर से दूसरा व तीसरा छिड़काव करें |
रासायनिक खाद की दशा में
25 से 30 टन सड़ी हुई गोबर की या कम्पोस्ट खाद खेत में बुवाई से 25-30 दिन पहले तथा बुवाई से पूर्व नालियों में 50 किग्रा. डी.ए.पी., 50 किग्रा. म्यूरेट आफ पोटाश प्रति हैक्टेयर के हिसाब से जमीन में मिलाए। बाकी नत्रजन 30 किग्रा. यूरिया बुवाई के 20-25 दिन बाद व इतनी ही मात्रा 50-55 दिन बाद पुष्पन व फलन की अवस्था में डाले।

सिचाई

अगेती फसल में आवश्यकता अनुसार सिचाई करे वर्षाकालीन फसल में आमतौर पर सिचाई की आवश्यकता नहीं होती है यदि वर्षा काफी समय तक न हो तो आवश्यकतानुसार सिचाई करते रहें फ़रवरी मार्च में 10-15 दिन के अंतर पर सिचाई करनी चाहिए |

खरपतवार नियंत्रण 

सेम की फसल के उगे खरपतवारों की रोकथाम के लिए 2-3 बार निराई-गुड़ाई करें |

कीट एवं रोग नियंत्रण 

बीज का चैंपा
यह एक छोटा सा कीट होता है जो पत्तियों और पौधों के अन्य भाग का रस चूस लेता है फूल और फलियों को काफी हानी पहुंचाता है |
रोकथाम 
इसकी रोकथाम के लिए नीम का काढ़ा और गौमूत्र को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर अच्छी तरह से मिश्रण तैयार कर 250 ग्राम .को प्रति पम्प में डालकर फसल में तर-बतर कर छिड़काव करें |
बीन बीटल 
इस कीट का प्रौढ़ तांबे के रंग जैसा होता है शरीर का आवरण कठोर और उस पर १६ काले निशान होते है यह कीट पौधे के कोमल भागों को खाता है |
रोकथाम 
इसकी रोकथाम के लिए नीम का काढ़ा और गौमूत्र को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर अच्छी तरह से मिश्रण तैयार कर 250 ग्राम .को प्रति पम्प में डालकर फसल में तर-बतर कर छिड़काव करें ||
चूर्णी फफूंदी 
यह एक फफूंदी जनित रोग है इसकी फफूंदी जड़ के अलावा पौधे के प्रत्येक भाग को प्रभावित करती है पत्तियां पीली पड़कर मर जाती है कलियाँ या तो बनती नहीं है यदि बनती भी है तो बहुत छोटी उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है |
रोकथाम 
इम से कम 40-50 दिन पुराना 15 लीटर गोमूत्र को तांबे के बर्तन में रखकर 5 किलोग्राम धतूरे की पत्तियों एवं तने के साथ उबालें 7.5 लीटर गोमूत्र शेष रहने पर इसे आग से उतार कर ठंडा करें एवं छान लें मिश्रण तैयार कर 3 ली. को प्रति पम्प के द्वारा फसल में तर-बतर कर छिडकाव करना चाहिए |

तुड़ाई 

जुलाई -अगस्त में बोई जाने वाली फसल में नवम्बर- दिसंबर में फूल निकल आता है फूल निकलने के २-३ सप्ताह बाद फलियों की पहली  तुड़ाई की जा सकती है  फलियों की तुड़ाई में देरी नहीं करनी चाहिए अन्यथा फलियाँ कठोर हो जाती है जिसके कारण उनका बाजार में उचित भाव नहीं मिल पाता है क्योकि उनसे स्वादिष्ट सब्जी का निर्माण नहीं होता है |

उपज

इसमें प्रति हे. 50 से 80  क्विंटल तक हरी फलियाँ मिल जाती है |

 

अमर कान्त

लेखक एक उन्नतशील किसान है

kisanhelp.in उन्नतशील किसानों के विचार देश के किसानों के पास पंहुचा रही है 

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