किसानों को आज तक क्या मिला ?

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किसानों की बात... ये मेरी लिए कोई नई बात नहीं है। हम किसानों के दर्द और तकलीफ को बहुत सालों से उठा रहे हैं और साथ में ये भी सच्चाई है कि उनके लिए घोषणाएं और स्कीमों की कोई कमी नहीं होती है। बजट में भी बड़े प्रस्ताव रखे गए किसानों के लिए, सरकार ने अपनी तरफ से ये लक्ष्य तय किया कि किसानों की आमदनी अगले पांच सालों में दोगुनी हो जाएगी। मेरे सवाल बेहद सीधे और बुनियादी हैं।

पहला सवाल है कि आज़ादी से लेकर आजतक का वो आकलन कहां है, जो बता सके कि कितने किसान खेतिहर मजदूरी करते हैं। कई बार ऐसे किसानों के पास उनके अस्तित्व के दस्तावेज तक नहीं होते और यही वजह है कि सरकार की बढ़िया से बढ़िया स्कीम का फायदा उन तक नहीं पहुंच पाता है। मसलन फसल बीमा या किसानों को मिलने वाला कर्ज़। सालों-साल ये किसान खेती करते रह जाते हैं और पैसे के लिए स्थानीय साहूकार के हाथों की कठपुतली बन जाते हैं। जबकि किसी भी गांव का सिस्टम बहुत आसानी से ये बता सकता है कि उस गांव या कस्बे में कितने किसान खुद अपनी ज़मीन जोतते हैं, कितने दूसरों के लिए खेती करते हैं। क्या ये बीमा योजनाएं इन तक पहुंच पाती हैं?

दूसरी बात राज्य सरकारों और केंद्र के बीच आज तक कोई ऐसा तरीका नहीं बन पाया है जिससे स्पष्ट हो सके कि किसानों के हक़ की स्कीमें कब, कैसे और कहां तक उनके पास पहुंची और ये जानकारी सार्वजनिक हो सके। मिसाल के तौर पर एक साल पहले मार्च और अप्रैल के महीने में किसानों की फसलें बारिश न होने से बर्बाद हुई थी, तब पीएम ने डेढ़ गुने मुआवजे का एलान किया था, लेकिन कई जगहों पर किसानों को महज कुछ रुपये के चेक थमा दिए गए। क्या ये स्थिति बदल पाएगी? क्या किसान ज्यादा पैसे की जरूरत पूरी करके अपनी उपज बढ़ा सकेगा और देनदारी कम कर सकेगा? ये कुछ मूल प्रश्न हैं जिनके जवाब इस तरह के बड़े बजट प्रस्तावों में मिलने चाहिए।

(अभिज्ञान प्रकाश एनडीटीवी इंडिया में सीनियर एक्जीक्यूटिव एडिटर हैं)