अमृत मिट्टी

अमृत मिट्टी

अमृत मिट्टी तैयार करने की प्रक्रिया (विधि) क्या है ?

अमृत मिट्टी तैयार करने के मुख्य चार चरण हैं-

 

1 अमृत जल तैयार करना।
2 खाद के लिए ढेर तैयार करना।
3 ढेर पर विभिन्न पौधे उस पर लगाकर,वातावरण-सूर्य वायु आदि की ऊर्जा प्राप्त कर, मिट्टी को अधिक उपजाऊ बनाना।
4 ढेर की देखभाल करना।
अमृत मिटटी के लिए लगने वाली सामग्री-
अमृत जल करीब 500 लीटर।
जैविक कचरा करीब 100 किलो।
बारीक मिट्टीकरीब 225 लीटर। (10 प्रतिषत बारीक रेत के साथ)
विविध बीज 300 ग्राम।
जैविक कचरा क्या है ?
अमृत मिट्टी तैयार करने के लिए लगने वाले जैविक पदार्थों जैसे-पेड़ों के पत्ते, फसलों का भूसा, घास, चारा आदि को जैवभार या जैविक कचरा कहा जाता है।
बारीक मिट्टी कहाँ मिलेगी ?
नदी-नालों के किनारों पर यह बारीक मिट्टी बड़ी मात्रा में जमा रहती है। मिट्टी यदि चिकनी हो तो उसमें करीब दस प्रतिषत बारीक रेत मिलाएँ। घर के कचरे में निकलने वाली बारीक धूल सबसे अच्छी बारीक मिट्टी होती है। गांवों, खेतों में जमीन की ऊपरी आधा इंच की परत में यह पाई जाती है। इसे झाड़कर जमा किया जा सकता है।
ढेर कैसे तैयार किए जाते हैं ?
अच्छी तरह सूखे करीब सौ किलो जैविक कचरे के बारीक-बारीक 3-4 इंच के टुकड़े कर लें। इन टुकड़ों को एक खाली टंकी में डालें, (जमीन पर बनाये गये घूरे पर नहीं, क्योकी यह जल को जल्दी सोख लेगा) अब पहले से तैयार अमृत जल इस पर डालें। दो-तीन बार में पूरा अमृत जल इस पर पूर्ण रुप से दबा-दबाकर डाल दें। अब जैविक कचरे के टुकड़ों पर भारी पत्थर या लकड़ी के लठ्ठे रख दें ताकि इसके टुकड़े अमृत जल से बाहर न आएँ। फिर जैविक कचरे को 24 घंटों के लिए अमृत जल में रहने दें। फिर हम जैविक कचरे और मिट्टी की परतें लगायेंगे 10 फुट लंबाई, 3 फुट चैड़ाई और 1 फुट ऊँचाई के ढेर को मानक माना जाता है। जिस जगह पर ढेर लगाना हो वहाँ पहले 10 फुट लंबाई और 3 फुट चैड़ाई की एक आयताकार आकृति खींच लेते हैं। अब अमृत जल में 24 घंटे भीगा हुआ जैविक कचरा निकालकर इस निर्धारित आकार के अंदर उसकी पतली परत बिछाते हैं। एक परत में करीब पाँच किलो गीला जैविक कचरा लगता है। याद रखें अमृत जल में भीगने के बाद जैविक कचरे का वजन बढ़ जाता है। अब इस पर बारीक मिट्टी का छिड़काव करते हैं। एक बार में करीब दो से तीन लीटर बारीक मिट्टी छिड़की जाती है। (जैविक कचरे के आयतन का एक-चैथाई मिट्टी की मात्रा होनी चाहिए) जैविक कचरे की परत लगाने और उस पर बारीक मिट्टी के छिड़काव की इस प्रक्रिया को तब तक दोहराते हैं जब तक ढेर की ऊँचाई एक फुट न हो जाए। याद रखें जैविक कचरे की प्रत्येक पाँच परतों के बाद उस पर चलकर उसे अच्छी तरह दबाते जाना चाहिए। आमतौर पर जैविक कचरे की 25 और मिट्टी की 25 परतें एक-पर-एक बिछाकर उन्हें अच्छी तरह दबाने पर इनकी कुल ऊँचाई लगभग एक फुट हो जाती है। कई बार इन परतों की कुल संख्या 70 तक भी पहुँच जाती है। अब सूखी घास को अमृत जल में डुबोकर उसकी 2 इंच की परत बिछाकर ढेर को ढँक दिया जाता है। इस प्रकार ढेर को ढँकने की क्रिया को आच्छादन (मलचिंग) कहा जाता है। सूखी घास का इस्तेमाल करके किए गए आच्छादन को सूखा आच्छादन कहते हैं। बने हुए ढेर को हर सात दिन में पलटा दें, और अमृत जल का छिड़काव करें। नमी बनाए रखें। पलटा कर आच्छादन बनाए रखें। इस तरह 30 दिन में खाद बन जाएगा।
ढेर का हरीतीकरण
ढेर पर विविध प्रकार के 300 ग्राम बीज लगाए जाते हैं। इन बीजों को बोने से पहले 8 घंटे अमृत जल में रखना चाहिए। ऐसा करने से बीज जल्दी अंकुरित होते हैं। जीवंत आच्छादन के लिए आयुर्वेद के षटरस के अनुसार ढेर पर निम्न प्रकार के बीज लगाने चाहिए -
षटरस के छह रस इस प्रकार हैं-
1 मीठा-सौंफ
2 तीखा-मिर्ची
3 कड़वा-मेथी, करेला
4 खट्टा-अंबाड़ी, टमाटर
5 कसेला-ग्वारफली
6 नमकीन-पालक
अनाज: मक्का, ज्वार, बाजरा, गेहूं, चावल आदि। दालें: मूँग, उड़द, चना, तूर, मोठ आदि। तेल बीज: मूँगफली, तिल, करडई, सरसों आदि। मसाले: मिर्ची, मेथी, जीरा, राई आदि। सब्जियां: पालक, टमाटर, बैंगन, ग्वारफली, सेम आदि। वेल वर्गीय: ककड़ी, काषीफल, लौकी, गिलकी, करेला आदि। कंद: आलू, षकरकंद, हल्दी, अदरक आदि। रेषेदार: भिंडी, कपास, अंबाड़ी। फूलदार: गेंदा, मोगरा, बारामासी आदि। औषधीय: तुलसी, षतावरी, अडुलसा आदि। दीर्घजीवी: सूबबूल, नीम, मुनगा, करंज, ग्लीरिषिडिया आदि।

बीज के अंकुरित होने के पष्चात् 21वें दिन पौधे की 25 प्रतिषत छँटनी करें। तने को ऐसा ही रखें। इससे कोमल पत्तों में पाए जाने वाले तत्व-जिंक, फास्फेट, बोरान, मोलेब्डेनियम ढेर को उपयोगी उपलब्ध अवस्था में हो जाते हैं। दूसरे 21 दिन के बाद या 42 दिन बाद बढ़े हुए पौधों को 25 प्रतिषत छाँट दें। इससे परिपक्व पत्तों में पाए जाने वाले तत्व-नाइट्रोजन, मैग्नीषियम और पोटेषियम ढेर को उपलब्ध हो जाते हैं।