गर्मी की गहरी जुताई व उसका महत्व
गर्मी की गहरी जुताई का अर्थ है गर्मी की तेज धूप में खेत के ढाल के आर-पार विशेष प्रकार के यन्त्रों से गहरी जुताई करके खेत की ऊपरी पर्त को गहराई तक खोलना तथा नीचे की मिट्टी को पलटकर ऊपर लाकर सूर्य तपती किरणों में तपा कर कीटाणुरहित करना है। मानसून पूर्व बौछारों (मई माह में) के साथ गर्मी की गहरी जुताई मृदा को पुनः शक्ति प्रदान करती है।
गर्मी की गहरी जुताई में जुताइयों की संख्या तथा गहराई खरपतवारों की सघनता पर निर्भर करती है। सामान्यतः मानसून से पूर्व 15-20 दिन के अन्तर पर दो गहरी जुताइयाँ करना उत्तम रहता है। गहराई मृदानुसार 9-10 इंच तक रखनी चाहिये। अधिक गहरी जुताई करने से नीचे की अनुपजाऊ मृदा ऊपर आ जायेगी जो अगली फसल को कमजोर कर सकती है। मानसून की वर्षा के पश्चात हैरो, कल्टीवेटर या रोटावेटर से जुताई करने पर खेत भुरभुरा होकर बुवाई/रोपाई के लिये तैयार हो जाता है।
जुताई करते समय निम्न बातों का ध्यान रखें।
# खेत में 15 अप्रैल से 15 मई तक गहरी जुताई करें।
#कम से कम 20 से 30 सेंटीमीटर तक गहरा हल चलाएं।
#खेत में खरपतवार होने की स्थिति में 10 से 15 दिन के अंतराल में जुताई को दोहराएं।
#खेत में कीट-पतंगे नष्ट करने के लिए सुबह सात से 11 बजे तक व शाम चार से छह बजे तक जुताई करें।
#खेत में जुताई से पहले गोबर का खाद डालें।
गर्मी की गहरी जुताई के लाभ-
मृदा की ऊपरी कठोर पर्त टूट जाती है तथा गहरी जुताई से वर्षा जल की मृदा में प्रवेश क्षमता व पारगम्यता बढ़ जाने से खेत में ही वर्षा जल का संरक्षण हो जाता है। परिणामस्वरूप पौधों की जड़ों को कम प्रयास में मृदा जल की अधिक उपलब्धता प्राप्त होती है।
मृदा की जलशोषण व जलधारण क्षमता बढ्ने से सिंचाई व्यय में बचत होती है तथा फसल का विकास भी अनुकूल होता है।
बड़े क्षेत्र में इसे अपनाने से क्षेत्र का जल बहकर खेतों से बाहर अन्य जलस्रोतों में जाकर नहीं मिलता है जिससे जलस्रोत कृषि रसायनों से प्रदूषित नहीं होते हैं और भूमि जलस्तर में सुधार होता है।
क्रमिक रूप से शुष्क होने व ठंडा होने के कारण मृदा की संरचना में सुधार होता है।
मृदा वायु संचार में सुधार होने से मृदा सूक्ष्म जीवों का बहुगुणन तीव्र गति से होता है फलस्वरूप मृदा कार्बनिक पदार्थ का अपघटन तीव्र गति से होने से अगली फसल को पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ जाती है।
मृदा वायु संचार बढ्ने से खरपतवारनाशियों, कीटनाशकों, मृदामें उपस्थित अन्य हानिकारक रसायनों तथा पिछली फसल व खरपतवारों की जड़ों द्वारा विसर्जित हानिकारक रसायनों का जो निकटवर्ती अन्य पौधों की वृद्धि को रोकते हैं का तीव्र गति से क्षरण होता है तथा मृदा स्वास्थ्य में सुधार होता है। .
मृदा की जल शोषण क्षमता बढ्ने से वर्षा जल के साथ घुलकर आने वाली वायुमंडलीय नत्रजन तथा प्रदूषण के रूप में वायु मण्डल में उपस्थित अन्य तत्व जैसे गन्धक आदि वर्षा जलके साथ मृदा में अवशोषित होकर मृदा की उपजाऊ शक्ति को बढ़ते हैं।
पिछली फसल के ठूँठों, खरपतवारों में तथा मृदा सतह के नीचे बहुत से कीट गर्म मौसम में आश्रय लेते हैं। गर्मी की गहरी जुताई में मिट्टी के पलटने से सूर्य की तेज किरणें मृदा में प्रवेश करके इन मृदा जनित कीटों, उनके अंडों, सूँडी, प्यूपा को नष्ट कर देती हैं या खुले में आने से पक्षियों द्वारा खाकर नष्ट कर दिये जाते हैं और अगली फसल में इन कीटों द्वारा फसल को कम नुकसान होता है तथा उनके प्रबन्धन पर होने वाले व्यय की बचत होती है।
बहुत से हानिकारक जीवाणु, उनके स्पोर, फफूंद तथा अन्य हानिकारक सूक्ष्म जीव गर्मी की तेज धूप में तपकर नष्ट हो जाते हैं फलस्वरूप अगली फसल में बीमारियों में कमी आने से कृषक को इनके प्रबन्धन पर अतिरिक्त व्यय नहीं करना पड़ता है।
पौधों के परजीवी निमेटोड अत्यन्त छोटे जीव हैं जो सर्वव्यापी हैं और मृदा में रहकर हर आने वाली फसल को क्षति पहुंचाते हैं तथा कभी-कभी पूरी फसल नष्ट कर देते हैं। गर्मी की गहरी जुताई तथा फसल चक्र इनके प्रबन्धन की दो मुख्य विधियाँ हैं।
गहरी जुताई से खरपतवार तथा उनकी गाँठे उखड़कर ऊपर आ जाती हैं और तेज धूप में सूखकर मर जाते हैं। मृदा में दबे हुये खरपतवारों के बीज ऊपर आ जाते हैं तथा पक्षियों द्वारा खा लिये जाते हैं जिससे अगली फसल में पोषक तत्वों के लिये फसल व खरपतवार में प्रतियोगिता में कमी आती है तथा उत्पादकता में बढ़ोत्तरी होती है।
खेत में ढलान के आर-पार जुताई करने से ढलान की निरन्तरता में रुकावट आती है जिससे वर्षा जल से मृदा कटाव नहीं होता। साथ ही जुताई के पश्चात मृदा ढेलों के रूप में होने से वायु द्वारा कटाव भी नहीं होता है।
किसान भाइयों जैसा की आप जानते हैं कि देश में इस समय कोविड 19 महामारी का प्रकोप चल रहा है, अतः हमें बहार निकलते समय कुछ सावधानी बरतनी है, जिससे हम खुद भी सुरक्षित रहे और महामारी के फैलाव पैर भी नियंत्रण रहे ।
हम घर से अत्यंत अवश्यक होने पर ही निकलें तथा निकलते समय अपने मुंह की ठुडी से लेकर नाक तक मास्क लगाये या सूती रूमाल, गमछा या अन्य कपडे की ३ परत की मास्क घर पर ही बनायें और उसे लगायें । बहार निकलते समय अपने साथ अपना आधार कार्ड व किसान बही अवश्य रखें ।मास्क को बाहर से आने के उपरांत यहाँ वहां न रखे वरन साबुन या डिटर्जेंट से धुले ।अपने आस पास सफाई का विशेष ध्यान रखे अपने घरों में सैनीटाईजर का प्रयोग करे ।आप २ मीटर की सामाजिक दूरी बनाये रखे, आप स्वस्थ रहेंगे तो देश स्वस्थ रहेगा । ऐसा स्वयं भी करें वह सभी को बताएं ।
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डॉ आर के सिंह,
अध्यक्ष कृषि विज्ञान केंद्र बरेली
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