तम्बाकू की खेती
किसान अपने खेतों में इस सीज़न की अहम फ़सलों जैसे- गेहूं, चावल, सरसों, चना, मसूर, मटर, उड़द, मूंग, ज्वार, बाजरा, रागी, मक्का, जौ, मूंगफली, सूरजमुखी, तिल आदि की बुआई में लगे हुए हैं. इन सब के अलावा रबी सीज़न की एक और फ़सल है जिसका नाम है तम्बाकू (Tobacco). आज हम इसकी खेती के बारे में बात करेंगे.
तम्बाकू को नशी
ऐसे करें पौधा तैयार-
यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि तम्बाकू की खेती में बीजों को सीधा नहीं लगाया जाता है बल्कि पौधों (Tobacco Plants) को नर्सरी (Nursery) में एक से डेढ़ महीने पहले(अगस्त से सितम्बर माह में) तैयार करके खेत में लगाना होता है. पौधे तैयार करने के लिए पहले क्यारी तैयार करें और फिर गोबर खाद को उसमें सही से मिलाएं. ये प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद तम्बाकू के बीज को लें और इस मिट्टी में ध्यानपूर्वक अच्छे से मिलाएं. फिर आपको हजारे की सहायता से इसमें जल देना है. इसके बाद क्यारियों में बीजों को पुलाव से सही से ढांक दें और जब बीज अंकुरित हो जाएं तो पुलाव हटा लें.
पौधों की रोपाई का तरीक़ा और सही समय-
तम्बाकू के पौधों (Tobacco Plants) को क़िस्मों के मुताबिक़ रोपा जाता है. सूंघने वाली क़िस्मों को दिसम्बर के शुरू में लगाना चाहिए तो वहीं सिगरेट-बीड़ी में इस्तेमाल होने वाले तम्बाकू की क़िस्म को अक्टूबर से लेकर दिसम्बर तक कभी भी लगा सकते हैं. आप तम्बाकू पौधों की रोपाई मेड़ और समतल दोनों भूमि पर कर सकते हैं.
मेड़ वाली जगह पर दो मेड़ की बीच की दूरी 1 मीटर और पौधों की बीच की दूरी 2 फ़ीट हो वहीं समतल भूमि में रोपाई पर दो पौधों की बीच दूरी 2 से 2.5 फ़ीट और तैयार पक्तियों के बीच दूरी 2 फ़ीट होनी चाहिए इस बात का विशेष ध्यान दें. पौधों को अगर शाम में लगाएंगे तो वो अच्छी तरह अंकुरित होंगे. इसका बात का ख़्याल रखें कि पौधों की जड़ों को ज़मीन के 3 से 4 सेमी अंदर गहराई में लगाना है.
ले पदार्थ के तौर पर जाना जाता है, लेकिन किसान इसकी खेती कम ख़र्च में करके ज़्यादा बचत कर सकते हैं. तम्बाकू (Tobacco Farming) का इस्तेमाल बीड़ी, सिगरेट, पान मसाला, खैनी, हुक्के और इन जैसी दूसरी चीज़ों में किया जाता है. आजकल तम्बाकू की मार्केट में बहुत डिमांड है. आप इसकी खेती कर के अच्छी कमाई कर सकते हैं. 1 एकड़ में 3 से 4 माह में इसकी खेती करके आपको 2 लाख तक की कमाई हो सकती है.
तम्बाकू खेती के लिए मिट्टी और जलवायु-
तम्बाकू की खेती (Tobacco farming) के लिए लाल दोमट मिट्टी और हल्की भुरभुरी मिट्टी सबसे बढ़िया मानी जाती है. ध्यान रहे कि आपके खेत में पानी न लगता हो यानि जलभराव की समस्या न हो. अन्य फ़सलों की तरह तम्बाकू खेती में भी पीएच मान एक अहम कारक है, इसलिए ज़मीन का pH level 6 से 8 के बीच होना चाहिए.
बात अगर जलवायु की करें तो शुष्क और ठंडी जलवायु को सबसे उपयुक्त माना जाता है. इस तरह की जलवायु में खेती अच्छी होती है. तम्बाकू के पौधों के अच्छे विकास के लिए ठंडी और पकने के लिए तेज़ और ज़्यादा धूप की ज़रूरत होती है. बारिश की बात की जाए तो ज़्यादा से ज़्यादा 100 सेमी. वर्षा काफ़ी है. तम्बाकू की खेती उसी ज़मीन पर करनी चाहिए जिसकी समुद्र तल से ऊंचाई लगभग 1800 मीटर हो.
इसके पौधे को अंकुरित होने के लिए 15 डिग्री और पौधों के अच्छे विकास के लिए 20 डिग्री तापमान की ज़रूरत होती है. टेम्परेचर कम या ज़्यादा होने पर फ़सल प्रभावित हो सकती है.
सिंचाई और उर्वरक-
पौधों की अच्छी वृद्धि के लिए सही सिंचाई बहुत ज़रूरी है. जब आप रोपाई करें तो पहली सिंचाई उसके तुरंत बाद कर दें फिर इसके बाद 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करते रहें. पौधों की कटाई के क़रीब 20 दिन पहले सिंचाई करा बंद कर दें. गोबर की खाद के अलावा अगर आप रासायनिक खाद इस्तेमाल करना चाहते हैं तो प्रति एकड़ के हिसाब से नाइट्रोजन 80 किलो, पोटाश 45 किलो, फ़ॉस्फ़ेट 150 किलो और कैल्शियम 86 किलो को आख़िरी जुताई करने के बाद खेत में छिड़कें. पुरानी गोबर खाद का प्रयोग 10 गाड़ी प्रति हेक्टेयर प्रथम जुताई के बाद करें.
खरपतवार नियंत्रण-
दूसरी फ़सलों की तरह तम्बाकू में भी खरपतवार नियंत्रण की ज़रूरत होती है. इसके लिए जब खेत में खरपतवार दिखे तो पहली गुड़ाई 20 से 25 दिन में करें और फिर 15 से 20 दिन के अंतराल पर दूसरी गुड़ाई करें. तम्बाकू की खेती (Tobacco Cultivation) किसान बीज और तम्बाकू दोनों के लिए ही करते हैं. अगर आप इसकी खेती तम्बाकू के लिए कर रहे हैं तो फूल की कलियों जिन्हें डोडा कहा जाता है इसे तोड़ दें. ऐसा करने से तम्बाकू के पैदावार में अच्छी वृद्धि देखने को मिलेगी , लेकिन अगर आप बीच के मक़सद से खेती कर रहे हैं तो डोडों को हरगिज़ नहीं तोड़ना चाहिए.
बेहतरीन क़िस्में-
निकोटिना टुवैकम, निकोटीन रस्टिका
तम्बाकू पौधों में होने वाले रोग-
पर्ण चिट्टी रोग, ठोकरा परपोषी किस्म का रोग, तना छेदक कीट रोग, सुंडी रोग
कटाई –
तम्बाकू की फ़सल क़रीब 120 से 130 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. इसके बाद आवश्यकतानुसार पत्तों और डंठल को काटा जा सकता है.