भूमि एवं मिट्टी का प्रदूषण
मृदा प्रदूषण के मुख्य स्रोत
1-अपशिष्ट पदार्थ (Solid Waste)
घरेलू कचरा, लौह अपशिष्ट औद्योगिक इकाइयों के अपशिष्ट आदि भूमि को प्रदूषित करते हैं। इन अपशिष्टों में जहरीले अकार्बनिक एवं कार्बनिक रसायनों के अवशेष पाए जाते हैं, जो हानिकारक होते हैं। इन अवशेषों में रेडियो-विकिरण तत्व जैसे स्ट्रॅान्शियम, कैडमियम, यूरेनियम, लैड आदि पाए जाते हैं, जो भूमि की जीवंतता एवं उर्वरता को प्रभावित करते हैं। फ्लाई एश (चिमनियों से निकलने वाला पदार्थ) औद्योगिक क्षेत्र के आस-पास प्रदूषण का मुख्य स्रोत है। बहुत से अपशिष्ट, जिनका जैविक अपघटन (Biological Degradation) नहीं होता जैसे- पालीथिन बैग, प्लास्टिक आदि बहुत समय तक मृदा में अवरुद्ध रहकर एवं भौतिक संरचना को प्रभावित करते हैं।
कृषि रसायन -
व्यावसायिक कृषि में पेट्रो रसायन जैसे खरपतवारनाशी-कीटनाशी आदि का बेतहाशा प्रयोग किया जा रहा है साथ में अकार्बनिक रासायनिक उर्वरक (Chemical Fertilizers) का भी प्रयोग दिनों-दिन बढ़ रहा है। रासायनिक उर्वरकों में फास्फेट,नाइट्रोजन एवं अन्य कार्बनिक रासायनिक भूमि के पर्यावरण एवं भूमिगत जल संसाधनों को प्रदूषित कर रहे हैं। सर्वाधिक खतरनाक प्रदूषक जैवनाशी रसायन है जिनके कारण जलवायु एवं अन्य मृदा के सूक्ष्म जीव नष्ट हो रहे हैं फलस्वरूप मिट्टी की गुणवत्ता में कमी हो रही है। विषैले रसायन आहार श्रृंखला में प्रविष्ट हो जाते हैं जिससे उनकी पहुंच शीर्ष उपभोक्ता तक हो जाती है जैवनाशी रसायनों को रेंगती मृत्यु (Creeping Deaths) भी कहा जाता है। गत 30 वर्षों में जैव रसायनों के प्रयोग में 11 गुने से अधिक की वृद्धि हुई है। अकेले भारतवर्ष में प्रतिवर्ष 1,00,000 टन जैव रसायनों का प्रयोग हो रहा है।
अभी जनवरी 2011 में उत्तराखंड में हुए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि वहां गेहूं और चावल की फसलें मिट्टी की सेहत से खिलवाड़ करने वाली साबित हो रहीं है। यूरिया खाद की खपत एक साल में ढाई गुना तक बढ़ गई है। प्रदेश में पहले जिन खेतों में औसतन चार बैग यूरिया प्रयोग होता था वहां करीब अब 10 बैग इस्तेमाल किया जा रहा है। संतुलित उपयोग में नाइट्रोजन फास्फोरस और पोटास का अनुपात 4:2:1 का होना चाहिए। उत्पादकता बनाए रखने की मजबूरी में यहां ऐसा नहींं हो रहा है। पोटाश और फास्फोरस का उपयोग कम हो रहा है और यूरिया का उपयोग बढ़ रहा है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार ऐसा मिट्टी की ऊपरी सतह (Top Soil) को हुए नुकसान की वजह से हो रहा है। पर्वतीय जिलों में मिट्टी की ऊपरी सतह का क्षरण तेजी से बढ़ रहा है। अत्यधिक बरसात का सबसे बड़ा नुकसान भी यह है। मैदानी जिलों में उत्पादकता को बचाए रखने की जुगत में किसान यूरिया का उपयोग बढ़ाने को विवश है। यूरिया के बढ़ते इस्तेमाल से मिट्टी की सेहत गड़बड़ा रही है। असंतुलित खाद का प्रयोग फसल को रोगग्रस्त करता है इससे कीटनाशकों का उपयोग बढ़ता है। कीटनाशक मानव स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाते हैं।
मृदा प्रदूषण के भौतिक स्रोत -
मृदा अपरदन (Soil Corrosion) के कारण में मृदा की गुणवत्ता में भारी कमी होती है जिसके प्रमुख कारण निम्नवत हैं।
1- वर्षा की मात्रा एवं तीव्रता 2- तापमान तथा हवा 3- जैविक कारक 4- मृदा खनन
प्रभाव -
मृदा प्रदूषण के मुख्य प्रभाव निम्नवत हैं।
1- मृदा की गुणवत्ता में हृास एवं उर्वरकता में कमी होती है जिसके कारण कृषि उत्पादन में कमी तथा खाद्यान्न संकट में बढ़ोतरी होती है ।
2- मृदा अपरदन से मृदा बंजर भूमि में बदल जाती है।
3- रासायनिक उर्वरकों एवं जैवनाशी रसायनों के कारण संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन पैदा होता है एवं विषाक्तता से मृत्यु तक हो जाती है।
4- मृदा प्रदूषण पर नियंत्रण - (Control of Soil Pollution)
मृदा प्रदूषण के प्रभावों को देखते हुए इस पर नियंत्रण नितांत आवश्यक है। मिट्टी कृषकों का धन है इसके गुणों के ह्रास से न केवल कृषक ही बल्कि देश की अर्थ व्यवस्था, मानव स्वास्थ्य, जीव-जन्तु, वनस्पतियां आदि भी प्रभावित होती हैं। जंतु जगत एवं पादप जगत का अस्तित्व मिट्टी पर आधारित होता है।
मृदा प्रदूषण पर नियंत्रण के उपाय
1- जीवनाशी रसायनों के प्रयोग को परिसीमित कर समन्वित कीट प्रबंध प्रणाली (Integrated Pest Management) को अपनाया जाए।
2- रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर समन्वित पादप पोषण प्रबंधन (Integrated Plant Nutrient Management) से मिट्टी के मौलिक गुण कालांतर तक विद्यमान रहेंगे।
3- लवणता की अधिकता वाली मृदा के सुधार के लिए वैज्ञानिकों के सुझाव के अनुसार जिप्सम तथा पाइराइट्स जैसे रासायनिक मृदा सुधारकों का प्रयोग किया जाएं।
4-कृषि खेतों में जल जमाव को दूर करने के लिए जल निकास की व्यवस्था अत्यंत आवश्यक है।
5- वन कटाव पर प्रतिबंध लगाकर मृदा अपरदन तथा इसके पोषक तत्वों को सुरक्षित रखने के लिए मृदा संरक्षण प्रणालियों को अपनाया जाए।
6- झूमिंग कृषि पर प्रतिबंध के द्वारा भू-क्षरण की समस्या को कम किया जा सकता है।
7- बाढ़ द्वारा नष्ट होने वाली भूमि को बचाने के लिए योजनाओं का निर्माण एवं उनका क्रियान्वयन आवश्यक है।
8- भूमि उपयोग तथा फसल प्रबंधन पर ध्यान देना नितांत आवश्यक है।