भूमि की उपजाऊ शक्ति बढ़ाती है जैविक खाद
भारत में शताब्दियों से गोबर की खाद, कम्पोस्ट, हरी खाद व जैविक खाद का प्रयोग विभिन्न फसलों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए किया जाता रहा है। इस समय ऐसी कृषि विधियों की आवश्यकता है जिससे अधिक से अधिक पैदावार मिले तथा मिट्टी की गुणवत्ता प्रभावित न हो, रासायनिक खादों के साथ-साथ जैविक खादों के उपयोग से मिट्टी की उत्पादन क्षमता को बनाए रखा जा सकता है। जिन क्षेत्रों में रासायनिक खादों का ज्यादा प्रयोग हो रहा है वहां इनका प्रयोग कम करके जैविक खादों का प्रयोग बढाने की आवश्यकता है। जैविक खेती के लिए जैविक खादों का प्रयोग अतिआवश्यक है, क्योंकि जैविक कृषि में रासायनिक खादों का प्रयोग वर्जित है। ऐसी स्थिति में पौंधों को पोषक तत्व देने के लिए जैविक खादों, हरी खाद व फसल चक्र में जाना अब आवश्यक हो गया है। थोड़ी सी मेहनत व टैक्नोलॉजी का प्रयोग करने से जैविक खाद तैयार की जा सकती है जिसमें पोषक तत्व अधिक होंगे और उसे खेत में डालने से किसी प्रकार की हानि नहीं होगी और फसलों की पैदावार भी बढ़ेगी।
अच्छी जैविक खाद तैयार करने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान देना आवश्यक है :
1- जैविक खाद बनाने के लिए पौधों के अवशेष, गोबर, जानवरों का बचा हुआ चारा आदि सभी वस्तुओं का प्रयोग करना चाहिए।
2- जैविक खाद बनाने के लिए 10 फुट लम्बा, 4 फुट चौड़ा व 3 फुट गहरा गङ्ढा करना चाहिए। सारे जैविक पदार्थों को अच्छी तरह मिलाकर गङ्ढें को भरना चाहिए तथा उपयुक्त पानी डाल देना चाहिए।
3- गङ्ढे में पदार्थों को 30 दिन के बाद अच्छी तरह पलटना चाहिए और उचित मात्रा में नमी रखनी चाहिए। यदि नमी कम है तो पलटते समय पानी डाला जा सकता है। पलटने की क्रिया से जैविक पदार्थ जल्दी सड़ते हैं और खाद में पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ती है।
4- इस तरह यह खाद 3 महीने में बन कर तैयार हो जाती है।
खेत में खाद डालकर शीघ्र ही मिट्टी में मिला देना चाहिए। ढेरियों को खेत में काफी समय छोड़ने से नत्रजन की हानि होती है जिससे खाद की गुणवत्ता में कमी आती है। गोबर की खाद में नत्रजन की मात्रा कम होती है और उसकी गुणवत्ता बढ़ाने के लिए अनुसंधान कार्यों से कुछ विधियां विकसित की गई हैं। जैविक खाद में फास्फोरस की मात्रा बढ़ाने के लिए रॉक फास्फेट का प्रयोग किया जा सकता है। 100 किलाग्राम गोबर में 2 किलोग्राम रॉक फास्फेट आरम्भ में अच्छी तरह मिलाकर सड़ने दिया जाता है। तीन महीने में इस खाद में फास्फोरस की मात्रा लगभग 3 प्रतिशत हो जाती है। इस विधि से फास्फोरस की घुलनशीलता बढ़ती है और विभिन्न फसलों में रासायनिक फास्फोरस युक्त खादों का प्रयोग नहीं करना पड़ता। अगर खाद बनाते समय केंचुओं का प्रयोग कर लिया जाए तो यह जल्दी बनकर तैयार हो जाती है और इस खाद और इस खाद में नत्रजन की मात्रा अधिक होती है। खाद बनाते समय फास्फोटिका का एक पैकेट व एजोटोबैक्टर जीवाणु खाद का एक पैकेट एक टन खाद में डाल दिया जाए तो फास्फोरस को घुलनशील बनाने वाले जीवाणु व एजोटोबैक्टर जीवाणु पनपते हैं और खाद में नत्रजन व फास्फोरस की मात्रा आधिक होती है। इस जीवाणुयुक्त खाद के प्रयोग से पौधों का विकास अच्छा होता है। इस तरह वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग करके अच्छी गुणवत्ता वाली जैविक खाद बनाई जा सकती है जिसमें ज्यादा लाभकारी तत्व उपस्थित होते हैं।
इसके प्रयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाई जा सकती है। जैविक खाद किसानों के यहां उपलब्ध संसाधनों के प्रयोग से आसानी से बनाई जा सकती है। रासायनिक खादों का प्रयोग कम करके और जैविक खाद का अधिक से अधिक प्रयोग करके हम अपने संसाधनों का सही उपयोग कर कृषि उपज में बढ़ोत्तरी कर सकते हैं और जमीन को खराब होने से बचाया जा सकता है।
जैविक खादों के प्रयोग से निम्नलिखित लाभ मिलते हैं :
1- रासायनिक खाद के साथ-साथ जैविक खादों के उपयोग से पैदावार अधिक मिलती है तथा भूमि की उपजाऊ शक्ति भी कम नहीं होती।
2- इससे सूक्ष्म तत्वों की कमी पूरी होती है जो फसलों के लिए अति आवश्यक है।
3- इसके उपयोग से मिट्टी की संरचना में सुधार होता है जिससे उसकी उपजाऊ शक्ति बढ़ती है।
4- जैविक खाद से मिट्टी में लाभदायाक सूक्ष्म जीवों की संख्या बढ़ती है जो फसलों को उपयोगी तत्व उपलब्ध करवाते हैं।
5- जैविक खादों के उपयोग से जल व वायु प्रदूषण नहीं होता है जो कि सामान्य जीवन के लिए अति आवश्यक है।
ग्रामीण क्षेत्रों में लोग प्राय: फसल अवशेषों और पशुओं के मलमूत्र को नष्ट होने देते हैं। गोबर व अन्य अवशेषों का सड़कों या गलियों में ढेर लगा दिया जाता है या गोबर के उपले बनाकर जला दिया जाता है। इस प्रकार यह अवशेष सड़ते-गलते नहीं हैं और वातावरण प्रदूषित होता है। इन अवशेषों को खेत में डालने से दीमक, खरपतवार व पौध रोगों को बढ़ावा मिलता है।