मेंथा की नई तकनीक से मिलेगा कम समय में अधिक उत्पादन
कुछ कारक मेंथा की उत्पादकता पर विपरीत प्रभाव डालते हैं। जैसे- फसल उत्पादन के लिए समय का आभाव, दूसरी कटाई की कम सम्भावनाएं और कम उत्पादकता, फसल की अधिक पानी की आवश्यकता, खरपतवार की समस्या और नियंत्रण पर अधिक खर्च।
इन कारकों को दूर करने के लिए सीमैप (केन्द्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान) ने अगेती मिंट का विकास किया है, जिससे किसानों को कम समय में अधिक उत्पादन मिलता है।
”अगेती मिंट तकनीक से खेती में पैदावार ज्यादा होती है। समय भी कम लगता है और खरपतवार से भी फसल सुरक्षित रहती है। इसके लिए हमें रोपाई से लेकर आसवन तक कुछ बातों का ध्यान रखना होता है। इस तकनीकी में मेंथा की रोपाई फरवरी महीने से मार्च तक की जाती है। इस विधि से रोपाई के लिए एक हेक्टेयर क्षेत्रफल के लिए लगभग 80 हजार पौधें लगते हैं।”
ध्यान रखने योग्य बातें
*इस तकनीक में समतल क्यारियों के स्थान पर मेड़ बनाकर उस पर रोपाई की जाती है।
*मेड़ों की दूरी एक दूसरे से 40-50 सेमी और पौध से पौध की दूरी 25 सेमी रखनी चाहिए।
*कटाई के 15-20 दिन पहले ही सिंचाई बंद कर देनी चाहिए लेकिन फसल सूखने न पाए।
*कटाई से पहले सिंचाई करने से पौधों की लम्बाई बढ़ती है लेकिन कुछ समय बाद पौधों की पत्तियां गिरनी शुरू हो जाती हैं।
*कटाई के समय खेत में नमी है तो पत्तियां और अधिक गिरती हैं।
*समय-समय पर खेत के पौधों को पास से देखना चाहिए ताकि समय रहते कीट प्रबंधन किया जा सके।
अगेती मिंट तकनीक से खेती करने से लाभ
*एक से दो सिंचाई की बचत होती है।
*मानसून जल्दी आने या खड़ी फसल में जल भराव होने पर अपेक्षाकृत कम नुकसान होता है।
*तेल की उपज और गुणवत्ताद पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता बल्कि उपज और गुणवत्ता में बढ़ोत्तरी होती है।
*सिंचाई बंद करने से आसवन से पहले पौधों को सुखाने की जरुरत नहीं पड़ती, पौधों को सीधे आसवन की टंकी में भरा जा सकता है। इससे टंकी में अधिक पौधे आते हैं और ईंधन, पानी कम लगता है।
साभार सौदान सिंह,
सीमैप के कृषि विभाग के वैज्ञानिक