बढ़ता तापमान खेती के लिए नुकसानदायक

मौसम में एकाएक आई गर्मी व बढ़ता तापमान खेती के लिए नुकसानदायक है। इसके अलावा चेंपा व मौसमी कीट भी फसल को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
मौसम में तापमान अधिक होने से गेहूं की फसल में ठीक से फुलाव नहीं आ पाता है और दाना भी कमजोर रह जाता है। उन्होंने किसानों को सलाह दी है कि ऐसे में फसल पर हल्की सिंचाई करें और सिंचाई उस समय करें, जब हवा तेज न हो। क्योंकि तेज हवा में बालियों के गिरने का खतरा बना रहता है।
मौसम गर्म होने से गेहूं की फसल में पीला रतुआ के अनुकूल परिस्थितियां बनती जा रही हैं। पत्ती हरी होगी तो अनाज फसल में उपज ज्यादा होगी। पीला रतुआ की पहचान बताते हुए उन्होंने कहा कि इसमें फसल के नजदीक से निकलने पर कपड़ों पर पीले दाग आ जाते हैं। 
उपचार 
जैविक उपचार 1 कि.ग्रा. तम्बाकू की पत्तियों का पाउडर 20 कि.ग्रा. लकड़ी की राख के साथ मिला कर बीज बुआई या पौध रोपण से पहले खेत में छिड़काव करें।
गोमूत्र नीम का तेल मिलाकर अच्छी तरह मिश्रण तैयार कर 500 मि. ली. मिश्रण को प्रति पम्प के हिसाब से फसल में तर-बतर कर छिडकाव करें |
गैामूत्र 10 लीटर  व नीम की पट्टी 2.5 किलो  व लहसुन  250 ग्राम काढ़ा बना कर  80 से 90 लीटर पानी के साथ प्रति एकड़ छिड़काव करें ।
5 लीटर मट्ठा को मिटटी के घड़े में भरकर 7 दिनों तक मिटटी में दाव देवे उसके बाद 40 लीटर पानी में 1 लीटर मट्ठा मिला कर स्प्रे करे |

रासायनिक करने वाले किसान पीला रतुआ का लक्षण दिखाई दे तो किसान तुरंत प्रोपिकोनाजोल 25 ईसी (टिल्ट) नामक दवाई 200 मिलीमीटर को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से स्प्रे करे। दूसरा छिडक़ाव 15-20 दिन के अतंराल के अंदर जरूर करे।

इसके अलावा गेहूं की फसल में काला कंडुआ (खुली कांगियारी) भी दिखाई दे सकता है। यह बीज जनित बीमारी है। इसमें बालियों पर गेहूं के दाने की जगह काला पाउडर भर जाता है। जो कि स्वत: ही दूर से दिखाई पड़ता है। अगर इन्हें बाहर ना निकाला जाए तो यह दूसरी बालियों पर पड़कर उन्हें भी खराब कर सकता है। ऐसी बालियों को कागज के लिफाफों से ढककर सावधानीपूर्वक खेत से निकाल लें व खेत के बाहर दबा दें। अन्यथा यह बीज को भी खराब कर देता है, जिसका असर अगली फसल पर भी पड़ता है।

1 कि.ग्रा. तम्बाकू की पत्तियों का पाउडर 20 कि.ग्रा. लकड़ी की राख के साथ मिला कर बीज बुआई या पौध रोपण से पहले खेत में छिड़काव करें।

1 कि.ग्रा. तम्बाकू की पत्तियों को 10 ली. पानी में गर्म करें। ठण्डा होने के बाद उसमें 250 ग्राम चूना और 500 मि.ली. मिट्टी का तेल मिलायें। इसको 20 ली. पानी में मिला दें तथा उसमें 100 ग्राम साबुन का घोल मिला कर दीमक से फसल के बचाव के लिये छिड़काव करें।

1 ली. दूध में 12 ली. पानी मिलायें। 50 ग्राम तुलसी या बेल का रस मिला कर 15-20 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करें। यह फफूँदी वाले रोगों में काफी लाभदायक होता है।

आजकल चेंपा मच्छर का भी प्रकोप है। चेंपा गेहूं, सरसों, जौ, धनिया, मेथी व सेंगरी की फसलों को नुकसान पहुंचाता है। चेंपा के बचाव के लिए मेलाथीन दवा 400 मिलीलीटर 300 लीटर पानी में मिलाकर उसका स्प्रे करें। उनके अनुसार सब्जियों पर दवा का छिड़काव करने के कम से कम चार-पांच दिन बाद सब्जियां तोड़े। बाजार में बेचने से पहले उसकी साफ पानी से धुलाई कर लें

जैविक खेती: