दलहन

दलहन वनस्पति जगत में प्रोटीन का मुख्य स्त्रोत हैं। मटर, चना, मसूर, मूँग इत्यादि से दाल प्राप्त होती हैं।

भारतीय कृषि पद्धति में दालों की खेती का महत्वपूर्ण स्थान है। दलहनी फसलें भूमि को आच्छाद  प्रदान करती है जिससे भूमि का कटाव  कम होता है। दलहनों में नत्रजन स्थिरिकरण का नैसर्गिक गुण होने के कारण वायुमण्डलीय नत्रजन को  अपनी जड़ो में सिथर करके मृदा उर्वरता को भी बढ़ाती है। इनकी जड़ प्रणाली मूसला होने के कारण कम वर्षा वाले शुष्क क्षेत्रों में भी इनकी खेती सफलतापूर्वक की जाती है। इन फसलों के दानों के छिलकों में प्रोटीन के अलावा फास्फोरस अन्य खनिज लवण काफी मात्रा में  पाये जाते है जिससे पशुओं और मुर्गियों के महत्वपूर्ण रातब  के रूप में इनका प्रयोग किया जाता है।

चना की खेती

चना एक सबसे महत्वपूर्ण दलहनी फसल मानी जाती है. चने के पौधे की हरी पत्तियां साग और हरा सूखा दाना सब्जियां बनाने में प्रयुक्त होता है. चने के दाने से अलग किए हुए छिलके को पशु चाव से खाते हैं. चने की फसल आगामी फसलों के लिए मिट्टी में नाइट्रोजन स्थिर करती है, इससे खेत की उर्वरा शक्ति भी बढ़ती है.

चना की खेती के लिए भूमि की तैयारी

मटर की खेती

मटर की फसल के लिए उन्नत विधि

खेत की तैयारी- मटर की खेती के लिए गंगा के मैदानी भागों की गहरी दोमट मिट्टी इसके लिए सबसे अच्छी मानी जाती है. हालांकि मटर की खेती बलुई, चिकनी मिट्टी में भी आसानी से की जा सकती है. खरीफ की कटाई के बाद खेत को दो से तीन बार हल से अच्छी तरह जोताई कर दें. अब इस पर पाटा लगा दें. बीजों के अच्छे अंकुरण के लिए मिट्टी में नमी होना जरूरी है.

उर्द की वैज्ञानिक खेती

दलहनी फसलों में उर्द की खेती कई प्रकार से लाभकारी है। शाकाहारी भोजन में उर्द प्रोटीन का एक प्रमुख स्रोत होने के साथ-साथ फली तोड़ने के पश्चात खेत में पलट देने पर हरी खाद का लाभ भी देती है। उर्द से विभिन्न प्रकार के पकवान बनाने के साथ-साथ इसे बड़ी के रूप में संरक्षित कर ऐसे समय में प्रयोग किया जा सकता है जब घर में अन्य कोई सब्जी उपलब्ध न हो। इसकी चूनी तथा फसल अवशेष को पशु आहार के रूप में प्रयोग किया जाता है।

मूँग की वैज्ञानिक खेती

दलहनी फसलों में मूँग की खेती कई प्रकार से लाभकारी है। शाकाहारी भोजन में मूँग प्रोटीन का एक प्रमुख स्रोत होने के साथ-साथ फली तोड़ने के पश्चात खेत में पलट देने पर यह हरी खाद का लाभ भी देती है। इसे पशु आहार के लिये भी प्रयोग कर सकते हैं।

भूमि एवं उसकी तैयारी-

मूँग की खेती के लिये दोमट भूमि सर्वोत्तम होती है। यदि नमी की कमी हो तो पलेवा कर दो जुताइयाँ कर या रोटावेटर से खेत तैयार किया जा सकता है। यदि पर्याप्त नमी हो तो जीरो टिल फर्टी सीड ड्रिल से बिना जूते खेत में भी इसकी सीधी बुवाई की जा सकती है।

संस्तुत प्रजातियाँ-

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