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पशुपालन, मुर्गीपालन तथा मत्स्य पालन सम्बन्धी सुझाव

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पशुपालन, मुर्गीपालन तथा मत्स्य पालन सम्बन्धी सुझाव

पशुपालन

पशुपालक भाई ध्यान दें अब गर्मी का मौसम आ गया है अतः अपने पशुओं को गर्मी से बचाए।पशुओं को तेज धूप में न रहने दें और जहाँ तक संभव हो उन्हें छायादार जगह पर रखें और उन्हें 3-4 बार पानी अवश्य पिलायें।

गर्मी अधिक होने पर नहलाने से पशु स्वस्थ रहेंगें और उनकी उत्पादकता भी अप्रभावित रहेगी।

भोजन में हरा चार अवश्य दें, तथा 50 से १०० ग्राम खनिज लवण और 50 ग्राम नमक दाना में मिला कर देना लाभकारी होता है।

पशुओं के लिए मह्त्वपूर्ण होते हैं खनिज लवण

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पशुओं के लिए मह्त्वपूर्ण होते हैं  खनिज लवण

पशुओं के लिए खनिज लवण प्रजनन में  अतिमहत्वपूर्ण स्थान हैं। शरीर में इनकी कमी से नाना प्रकार के रोग एवं समस्यायें उत्पन्न हो जाती है। इनकी कमी से पशुओं का प्रजनन तंत्र भी प्रभावित होता है, जिससे पशुओं में प्रजनन संबंधित विकार पैदा हो जाते है, जैसे पशु का बार-बार मद में अनाना, अधिक आयु हो जाने के बाद भी मद में नहीं आना, ब्याने के बाइ के मद में नहीं आना या देर से आना तथा मद में आने के बाद का नहीं रूकना इत्याइि तरह के उत्पन्न हो जाते हैं। इन विकारों के लिये कारण उत्तरदायी है, जिसमें एक खनित लवण भी हैं। 

मुर्गीपालन में संतुलित आहार की भूमिका

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मुर्गीपालन में संतुलित आहार

जैसा कि सर्वविदित है कि वर्तमान युग में मुर्गीपालन का मुख्य उद्देश्य प्रोटीनयुक्त आहार प्राप्त करना है। मुर्गी का अण्डा एवं मांस सस्ता प्रोटीन आहार तो है ही, इनके उत्पादन में कम पूंजी व कम समय को आवश्यकता होती है। मानव के लिए बेकार अनाज, हरा चारा, विटामिन्स एवं पोषक तत्वों मुर्गी को खिलाकर एक उत्तम, सुपाच्य पौष्टिक पदार्थ मानव के लिए मुर्गी के अण्डे के रूप में उपलब्ध हो जाता है इसलिए अनेक वैज्ञानिक मुर्गी को अद्भूत प्रवर्तक यंत्र की संज्ञा देते हैं। मानव हेतु तैयार किए पक्षियों को पौष्टिक एवं संतुलित आहार ही मिलना चाहिए। मुर्गी पालन व्यवसाय में 60 प्रतिशत व्यय तो केवल मुर्गी आहार पर होता है

भारतीय नस्ल की गाय

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भारतीय नस्ल की गाय

हिन्दू धर्म में गाय को पूजनीय और पवित्र माना जाता है। हमारे देश ८०% लोग कृषि पर निर्भर है । इनमें से ९५% पशु आधारित खेती पर निर्भर हैं । बैलगाड़ियों द्वारा ढोया जाने वाले सामान रेलगाड़ियों से ४-५ गुणा अधिक होता है । इससे विदेशी मुद्रा की उल्लेखनीय बचत होती है । उदाहरणार्थ वर्ष २००५ में ५०,००० करोड़ रू. का परिवहन बैलगाड़ियों द्वारा हुआ । गो आधारित उद्योगों के विस्तार से हमारी अर्थ व्यवस्था में गाय की महत्वपूर्ण भूमिका हो जायेगी । यह दुःख का विषय है कि इसका पहले से ही महत्वपूर्ण स्थान हमारे लोग नहीं पहचानते ।

पशुओं में बांझपन कारण और उपचार

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पशुओं में बांझपन  कारण और उपचार

भारत में डेयरी फार्मिंग और डेयरी उद्योग में बड़े नुकसान के लिए पशुओं का बांझपन ज़िम्मेदार है. बांझ पशु को पालना एक आर्थिक बोझ होता है और ज्यादातर देशों में ऐसे जानवरों को बूचड़खानों में भेज दिया जाता है.

पशुओं में, दूध देने के 10-30 प्रतिशत मामले बांझपन और प्रजनन विकारों से प्रभावित हो सकते हैं. अच्छा प्रजनन या बछड़े प्राप्त होने की उच्च दर हासिल करने के लिए नर और मादा दोनों पशुओं को अच्छी तरह से खिलाया-पिलाया जाना चाहिए और रोगों से मुक्त रखा जाना चाहिए.

बांझपन के कारण

विभिन्न महीनों में पशुपालन से सम्बन्धित कार्य

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विभिन्न महीनों में पशुपालन से सम्बन्धित कार्य

 पशुपालन कार्य
वर्ष के विभिन्न महीनों में पशुपालन से सम्बन्धित कार्य (पशुपालन कलेण्डर) इस प्रकार हैं-

अप्रैल (चैत्र)
*1. खुरपका-मुँहपका रोग से बचाव का टीका लगवायें। 
*2. जायद के हरे चारे की बुआई करें, बरसीम चारा बीज उत्पादन हेतु कटाई कार्य करें। 
*3. अधिक आय के लिए स्वच्छ दुग्ध उत्पादन करें। 
*4. अन्तः एवं बाह्य परजीवी का बचाव दवा स्नान/दवा पान से करें।

करोड़पति बनना है तो गाय पालन करें

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करोड़पति बनना है तो  गाय पालन करें

गाय का यूं तो पूरी दुनिया में ही काफी महत्व है, लेकिन भारत के संदर्भ में बात की जाए तो प्राचीन काल से यह भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ रही है। चाहे वह दूध का मामला हो या फिर खेती के काम में आने वाले बैलों का। वैदिक काल में गायों की संख्‍या व्यक्ति की समृद्धि का मानक हुआ करती थी। दुधारू पशु होने के कारण यह बहुत उपयोगी घरेलू पशु है। गाय पालन ,दूध उत्पादन व्यवसाय या डेयरी फार्मिंग छोटे व बड़े स्तर दोनों पर सबसे ज्यादा विस्तार में फैला हुआ व्यवसाय है। गाय पालन व्यवसाय, व्यवसायिक या छोटे स्तर पर दूध उत्पादन किसानों की कुल दूध उत्पादन में मदद करता है और उनकी आर्थिक वृद्धि को बढ़ाता है। इसमें कोई स

पशु में फैलती महामारियां

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पशु में फैलती महामारियां

हो सकता है बरसों पहले इंग्लैंड में फैला मैडकाउ रोग आपको याद हो। इस बीमारी (बीएसई) ने गायों के मानसिक संतुलन को पागलपन की हद तक बिगाड़ दिया था, इसलिये इसे पागल गाय रोग कहा गया है। इस रोग की वजह से लाखों गाय-बछड़ों का बेरहमी से मार डाला गया था। माना जाता है कि यह रोग इसलिए फैला कि गायों को उन्हीं की हड्डियों, खून और अन्य अवशेषों का बना हुआ आहार खिलाया गया। आधुनिक बूचडख़ानों में गायों आदि को काटने के बाद मांस को तो पैक करके बेच दिया जाता किन्तु बड़े पैमाने पर हड्डियां, अंतडिय़ां, खून आदि का जो कचरा बचा, उसको ठिकाने लगाना एक समस्या हो गया।  इस समस्या से निपटने का एक तरीका यह निकाला गया है कि इस क

खुश रहेगी गाय तो दूध होगा ज्यादा पौष्टिक

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खुश रहेगी गाय तो दूध होगा ज्यादा पौष्टिक

अगर आप चाहते हैं कि आप की गाय ज्यादा दूध दे और उसका दूध पौष्टिक भी रहे तो जरूरी है कि गाय स्वस्थ और खुश रहे। एक अध्ययन में यह रोचक खुलासा किया गया है कि गाय जब खुश होती है तो कहीं अधिक पौष्टिक दूध देती है और उसके दूध में कैल्शियम का स्तर अधिक होता है।

अमेरिका के विस्कॉन्सिन-मेडिसन विश्वविद्यालय की शोधकर्ता लौरा हर्नांडीज़ के नेतृत्व में अनुसंधानकर्ताओं की टीम ने प्रसन्नता के अनुभव के लिए जिम्मेदार रसायन ‘सेरोटोनिन’ के सेवन का गायों के रक्त और दूध में कैल्शियम के स्तर से संबंधों की जांच की। 

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