उर्द की वैज्ञानिक खेती

दलहनी फसलों में उर्द की खेती कई प्रकार से लाभकारी है। शाकाहारी भोजन में उर्द प्रोटीन का एक प्रमुख स्रोत होने के साथ-साथ फली तोड़ने के पश्चात खेत में पलट देने पर हरी खाद का लाभ भी देती है। उर्द से विभिन्न प्रकार के पकवान बनाने के साथ-साथ इसे बड़ी के रूप में संरक्षित कर ऐसे समय में प्रयोग किया जा सकता है जब घर में अन्य कोई सब्जी उपलब्ध न हो। इसकी चूनी तथा फसल अवशेष को पशु आहार के रूप में प्रयोग किया जाता है।
भूमि एवं उसकी तैयारी- उर्द की खेती के लिये बलुई दोमट से दोमट भूमि उपयुक्त रहती है। यदि नमी की कमी हो तो पलेवा कर हैरो या कल्टीवेटर से दो जुताइयाँ या रोटावेटर का प्रयोग कर पाटा लगाकर खेत तैयार किया जा सकता है। यदि पर्याप्त नमी हो तो जीरो टिल फर्टी सीड ड्रिल से बिना जुते खेत में इसकी सीधी बुवाई भी की जा सकती है।
संस्तुत प्रजातियाँ
प्रजाति अवधि (दिनों में) उपज (कु॰/है॰) कीट/रोग ग्राहिता उपयुक्त क्षेत्र
टाइप - 9 75-80 6-8 पीला मोजैक सहिष्णु सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश
नरेन्द्र उर्द - 1 75-80 8-10 पीला मोजैक अवरोधी सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश
आजाद उर्द – 1 70-75 8-10 पीला मोजैक अवरोधी सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश
आजाद उर्द - 2 70-75 10-12 पीला मोजैक अवरोधी सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश
उत्तरा 80-85 8-11 पीला मोजैक अवरोधी सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश
माश – 479 70-75 11-12 पीला मोजैक अवरोधी सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश
शेखर -1 (हारा दाना) 80-85 12-15 - सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश
शेखर –2 (हारा दाना) 75-80 10-12 पीला मोजैक अवरोधी सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश
आई॰पी॰यू॰ 2-43 70-75 10-12 पीला मोजैक अवरोधी सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश
सुजाता 70-75 10-12 पीला मोजैक अवरोधी सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश
पन्त उर्द -31 70-75 12-15 पीला मोजैक अवरोधी सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश
पन्त उर्द -40 75-80 12-15 पीला मोजैक अवरोधी सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश
बुवाई का समय- बसन्तकालीन प्रजातियों की बुवाई 15 फरवरी से 15 मार्च तक तथा ग्रीष्मकालीन प्रजातियों की बुवाई 10 मार्च से मार्च के अन्तिम सप्ताह तक की जा सकती है। बुवाई देर से करने पर कीट एवं बीमारियाँ का अधिक प्रकोप होता है तथा फलियाँ वर्षाकाल में पकने पर क्षतिग्रस्त हो सकती हैं।
बीज दर, बीजशोधन एवं बीज उपचार – बसन्त तथा ग्रीष्मकाल में पौधों की वृद्धि कम होती है अतः बीजदर अधिक लगभग 25 से 30 किलोग्राम /हेक्टेयर रखी जाती है। बीज को 2.5 ग्राम थीरम अथवा 2.0 ग्राम थीरम + 1.0 ग्राम कार्बण्डाजिम अथवा 6-10 ग्राम ट्राईकोडर्मा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिये। इसके पश्चात यदि उपलब्धता हो तो बीज को उर्द के विशिष्ट राईजोबियम कल्चर तथा फॉसफोरस सॉल्यूबिलाइजिंग बैक्टीरिया कल्चर से उपचारित कर लेना चाहिये। इसके लिये आधा लीटर पानी में 250 ग्राम गुड़ घोलकर पानी को उबालकर ठंडा कर लें तत्पश्चात इसमें 200 ग्राम राईजोबियम कल्चर का मिश्रण कर, मिश्रण को 10 किलोग्राम बीज के ऊपर डालकर हल्के हाथों से अच्छी प्रकार मिला लें। उपचारित बीज को छाया में सुखाकर प्रातः जल्दी या सांयकाल में 4 बजे के पश्चात बुवाई करें। इसी विधि से फॉसफोरस सॉल्यूबिलाइजिंग कल्चर से भी बीज को उपचरित कर सकते हैं। भूमि में फॉसफोरस के रसायनिक उर्वरकों का प्रयोग करने के पश्चात अधिकांश फॉसफोरस पौधों के लिये अनुपलब्ध अवस्था में परिवर्तित हो जाता है। फॉसफोरस सॉल्यूबिलाइजिंग कल्चर भूमि में बेकार पड़े इस अनुपलब्ध फॉसफोरस को पौधों के लिये उपलब्ध अवस्था में परिवर्तित कर देता है। इस प्रकार फॉसफोरस उर्वरकों में 20% तक कमी करके फसल उत्पादन की लागत घटाने के साथ-साथ भूमि पर भी इसका लाभदायक प्रभाव पड़ता है।
बुवाई विधि- उर्द की बुवाई लाइन से लाइन की दूरी 20-25 सेंटीमीटर रखते हुए बीज को 4-5 सेंटीमीटर की गहराई पर बोकर पाटा लगाना उचित रहता है।
उर्वरक प्रबन्धन- खाद-उर्वरक का निर्धारण मृदा परीक्षण के आधार पर करें अन्यथा बुवाई के समय कूँड़ मंम बीज के नीचे 15-20 किलोग्राम नत्रजन, 40-50 किलोग्राम फॉसफोरस, 20-25 किलोग्राम पोटाश तथा 200 किलोग्राम जिप्सम का प्रयोग करना लाभप्रद रहता है। जिप्सम के स्थान पर फॉसफोरस को सिंगल सुपर फॉसफेट से देने पर लागत मेन कमी की जा सकती है।
सिंचाई प्रबन्धन- पहली सिंचाई बुवाई के 30-35 दिनपर तथा उसके पश्चात 10-15 दिन के अन्तर पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिये। फूल आने से पूर्व तथा दाना पड़ते समय खेत में नमी होना आवश्यक है। सिंचाई छोटी-छोटी क्यारियाँ बनाकर या बौछारी विधि से करें।
खरपतवार प्रबन्धन- बुवाई के 25-30 दिन पश्चात एक निराई करने से खरपतवार प्रबन्धन के साथ-साथ मृदा में वायु संचार बेहतर होता है जिससे राईजोबियम ग्रंथियों में जीवाणुओं की सक्रियता बढ़ती है तथा अधिक मात्रा में वायुमंडलीय नत्रजन का स्थिरीकरण होता है। रसायनिक खरपतवार नियंत्रण हेतु पेंडीमेथालिन 30 ई॰सी॰ की 3.3 लीटर मात्रा को 800-1000 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के 48 घण्टे के भीतर पीछे की ओर हटते हुये छिड़काव करें। उर्द की खड़ी फसल में घासकुल के खरपतवारों के नियंत्रण के लिए बुवाई के 20-25 दिन के मध्य क्वीजालोफाप इथाइल 5% ई॰सी॰ रसायन की 1.0 लीटर मात्रा 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।

फसल सुरक्षा प्रबन्धन-

1. पीला चित्रवर्ण रोग- पीला चित्रवर्ण रोग विषाणुजनित होता है तथा इसकी वाहक सफेद मक्खी होती है। इसमें पत्तियों पर पीले चितकबरे धब्बे पड़ जाते हैं। प्रभावित पौधों में फूल तथा फलियाँ नहीं बनतीं या कम बनती हैं।
प्रबन्धन-

समय से बुवाई करना तथा रोगी पौधा दिखते ही सावधानी से उखाड़कर, जलाकर नष्ट कर देना।

पीला चित्रवर्ण अवरोधी/सहिष्णु प्रजातियों जैसे नरेन्द्र उर्द -1, आजाद उर्द -1, आजाद उर्द -2, उत्तरा, सुजाता, शेखर -2 आदि की बुवाई करना।

सफ़ेद प्रौढ़ मक्खी 5-10 प्रति पौधा दिखते ही इमिडाक्लोप्रिड 250 मिली या मिथाइल-ओ-डिमेटान 25% ई॰सी॰ या डाईमेथोएट 30 ई॰सी॰ की 1.0 लीटर मात्रा का 600 से 800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।

2.पत्तियों का सर्कोस्पोरा धब्बा रोग – पत्तियों पर गोलाई में भूरे रंग के कोणीय धब्बे बनते हैं जिनके बीच का भाग राख के रंग का/हल्का भूरा/

सफ़ेद तथा किनारे लाल-बैंगनी रंग के होते हैं। ये लक्षण तने तथा फलियों पर भी दिखाई देते हैं। इसके नियन्त्रण के लिये कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या मेंकोजेब 0.3% या कार्बण्डाजिम 0.05% या प्रोपिकोनाजोल 0.1% का घोल बनाकर छिड़काव करें।

3.थ्रिप्स तथा हरे फुदके - इस कीट के शिशु तथा प्रौढ़ पत्तियों एवं फूलों से रस चूसकर क्षति पहुंचाते हैं पत्तियाँ मुड़ जाती हैं तथा फूल गिर जाते हैं जिससे उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

प्रबन्धन-

बुवाई के समय फोरेट 10 जी॰ 10 किलोग्राम या कार्बोफ्यूरान 3 जी॰ 20 किलोग्राम / हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें।

मिथाइल-ओ-डिमेटान 25% ई॰सी॰ या डाईमेथोएट 30 ई॰सी॰ 1.0 लीटर मात्रा 600 से 800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।

फलीबेधक – फलीबेधक फली में छेद करके दानों को खाकर फसल को क्षति पहुंचाते हैं।

प्रबन्धन –

यदि 2 सूँडी / वर्गमीटर दिखाई दें तो फेन्थ्रोएट 50% ई॰सी॰ 500 मिली या क्यूनालफॉस 25% ई॰सी॰ 1.25 लीटर की दर से 600 से 800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
5. तना मक्खी – इसकी सूंडियाँ तने को खोखलाकर या तने में सुरंग बनाकर क्षति पहुंचाती हैं। पौधे पीले पड़कर सूख जाते हैं। सूँडी के नियन्त्रण के लिये डाईमेथोएट या मिथाइल ओ डिमेटान 1.0 मिली लीटर/लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
6. बिहार रोमिल सूँडी – काले-भूरे रोयेंदार सूंडियाँ पत्तियों को खाकर मात्र उसकी शिरायें छोड़ते हैं। इसकी वयस्क मादा पत्तियों पर समूह में अंडे देती है जिसे ढूँढकर प्रारम्भिक अवस्था में ही अंडों को पत्ती सहित तोड़कर नष्ट कर देना चाहिये। रसायनिक नियन्त्रण के लिये क्वीनालफॉस या ट्रायजोफॉस 2.0 मिली लीटर/लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
कटाई एवं भंडारण- उर्द की फलियाँ काली पड़ने पर इसकी कटाई कर लेनी चाहिये। कटाई पश्चात झड़ाई, सफाई करके उर्द को अच्छी तरह सुखाकर, स्टोरेज बिन में ही इसका भंडारण करना चाहिये तथा बरसात के मौसम में एक-दो बार जब मौसम खुला हुआ हो तो इसको खोलकर धूम्रीकरण कर लेना चाहिये। साबुत दालों में कीट जल्दी लगता है अतः अधिक सावधानी रखनी चाहिये अन्यथा इसे दल कर दाल बनाकर भण्डारण करना चाहिये।
प्रभावी बिन्दु-
1. उर्द की बुवाई पर्याप्त नमी में, 15 फरवरी से 15 मार्च के मध्य अवश्य कर लें। शीघ्र बोयी फसल में पीला चित्रवर्ण रोग तथा कीटों का प्रकोप कम होता है।

2. बुवाई के लिये रोगरोधी प्रजातियों जैसे नरेन्द्र उर्द -1, आजाद उर्द -1, आजाद उर्द -2, उत्तरा, सुजाता, शेखर -2 आदि का चयन करें।

3. बीज शोधन (थीरम+कार्बण्डाजिम या ट्राइकोडर्मा से) तथा बीज उपचार (राइजोबियम + पी॰एस॰बी॰ कल्चर से) अवश्य करें।

4. फॉसफोरस के लिये सिंगल सुपर फॉसफेट का प्रयोग अधिक लाभदायक होता है।

5. पहली सिंचाई बुवाई के 30-35 दिन बाद करें अन्यथा जड़ों तथा राईजोबियम ग्रंथियों का विकास प्रभावित होगा।

6. पहली सिंचाई के बाद एक निराई-गुड़ाई करने का फसल पर बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

7. पहली सिंचाई के बाद पीला चित्रवर्ण रोग, थ्रिप्स तथा सफ़ेद मक्खी के लिये नियमित निगरानी करते रहें तथा इनका प्रकोप आरम्भ होते ही उचित उपचार करें।

8. भण्डारण से पूर्व उर्द को अच्छी तरह से सुखा लें तथा उपचारित कुठलों में ही भण्डारण करें या उर्द की दाल बनाकर रखने से भी भण्डारण कीटों का प्रकोप कम होता है।

राकेश पाण्डेय (विषय वस्तु विशेषज्ञ – शस्य)
डॉ आर के सिंह, अध्यक्ष कृषि विज्ञान केंद्र बरेली
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