दलहन

दलहन वनस्पति जगत में प्रोटीन का मुख्य स्त्रोत हैं। मटर, चना, मसूर, मूँग इत्यादि से दाल प्राप्त होती हैं।

भारतीय कृषि पद्धति में दालों की खेती का महत्वपूर्ण स्थान है। दलहनी फसलें भूमि को आच्छाद  प्रदान करती है जिससे भूमि का कटाव  कम होता है। दलहनों में नत्रजन स्थिरिकरण का नैसर्गिक गुण होने के कारण वायुमण्डलीय नत्रजन को  अपनी जड़ो में सिथर करके मृदा उर्वरता को भी बढ़ाती है। इनकी जड़ प्रणाली मूसला होने के कारण कम वर्षा वाले शुष्क क्षेत्रों में भी इनकी खेती सफलतापूर्वक की जाती है। इन फसलों के दानों के छिलकों में प्रोटीन के अलावा फास्फोरस अन्य खनिज लवण काफी मात्रा में  पाये जाते है जिससे पशुओं और मुर्गियों के महत्वपूर्ण रातब  के रूप में इनका प्रयोग किया जाता है।

मूंग और उड़द के प्रमुख रोग और उनकी रोकथाम

दलहनी फसलो में उड़द एंव मूंग खरीफ की मुख्य फसल है। कम अवधि की फसल होने के कराण यह अंतवर्तीय व बहुफसलीय पध्दति के लिए भी उपयुक्त है। सिंचाई की सुविधा होने पर इसे ग्रीष्म ऋतु में भी उगाया जाता है। उड़द एंव मूंग की औसत उपज बहुत कम है। अतः उचित कीट एंव रोग प्रबंधन तकनीक अपनाकर उड़द एंव मूंग की उत्पादकता को बढाया जा सकता है।. देश में मूंग और उड़द को प्रोटीन का सबसे अच्छा स्त्रोत माना जाता है. इसके साथ ही खनिज लवण समेत कई  विटामिन भी पाए जाते हैं. इन दालों का सेवन  कई बीमारियों से बचाकर रखता है. ऐसे में किसानों को इनकी खेती अच्छी देखभाल के साथ करना चाहिए.

महामारी को दृष्टि गत रखते हुए किसान भाई अपने कृषि कार्यों को संपादित करें : डॉ आर के सिंह

कोरोना महामारी को दृष्टि गत रखते हुए देश एवं प्रदेश सरकार द्वारा लगातार किसानों के हित में ठोस कदम उठाए जा रहे हैं। इसी क्रम में सरकार द्वारा बनाए गए नियमों का अनुपालन करते हुए देश हित में इस महामारी को रोकने में अपना सहयोग प्रदान करते हुए डॉ आर के सिंह , अध्यक्ष एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र, आई वी आर आई, बरेली ( उत्तर प्रदेश)ने कुछ कृषि कार्यों को संपादित करने की सलाह दी है।

लोबिया की उन्नत खेती

जलवायु लोबिया वर्षा तथा ग्रीष्म ऋतू में उगाई जाने वाली फसल है , दक्षिणी भारत में इसकी खेती रबी मौसम में भी की है जाती , लोबिया में मक्का की अपेक्षा सूखा तथा गर्मी को सहन करने की क्षमता अधिक होती है , इसकी खेती के लिए ट्रोपिकल तथा सब - ट्रोपिकल जलवायु उत्तम रहती है , इसकी खेती के लिए 12-15 डिग्री सेल्सियस तापक्रम अनुकूल रहता है , फसल की समुचित बढ़वार के लिए 27-35 डिग्री सेल्सियस तापक्रम अनुकूल रहता है , लोबिया की वृद्धि पर पाले तथा कम तापक्रम का बुरा प्रभाव पड़ता है 

गेहूं की कटाई के बाद तैयार करें हरी खाद

गेहूं की कटाई के बाद किसान को खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए हरी खाद तैयार करनी चाहिये।गेहूं 30 अप्रैल तक पूरी तरह से कट जाएगा। इसके बाद ज्यादातर खेत खाली पड़े रहते है। जिसमें किसान ढैंचा, सन, आदि की उपज लेकर हरी खाद ले सकते हैं। किसान भाई तीसरी फसल के रूप में मूंग (दलहन) की खेती कर सकते है। यह फसल 65-70 दिनों में तैयार हो जाती है। इससे भूमि की उर्वरा शक्ति भी बढ़ती है। इस दौरान किसान चाहे तो तीसरी फसल के रूप में सूरजमुखी (तिलहन) की खेती कर सकते है।

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