दलहन

दलहन वनस्पति जगत में प्रोटीन का मुख्य स्त्रोत हैं। मटर, चना, मसूर, मूँग इत्यादि से दाल प्राप्त होती हैं।

भारतीय कृषि पद्धति में दालों की खेती का महत्वपूर्ण स्थान है। दलहनी फसलें भूमि को आच्छाद  प्रदान करती है जिससे भूमि का कटाव  कम होता है। दलहनों में नत्रजन स्थिरिकरण का नैसर्गिक गुण होने के कारण वायुमण्डलीय नत्रजन को  अपनी जड़ो में सिथर करके मृदा उर्वरता को भी बढ़ाती है। इनकी जड़ प्रणाली मूसला होने के कारण कम वर्षा वाले शुष्क क्षेत्रों में भी इनकी खेती सफलतापूर्वक की जाती है। इन फसलों के दानों के छिलकों में प्रोटीन के अलावा फास्फोरस अन्य खनिज लवण काफी मात्रा में  पाये जाते है जिससे पशुओं और मुर्गियों के महत्वपूर्ण रातब  के रूप में इनका प्रयोग किया जाता है।

मटर की उन्नत खेती

मटर की उन्नत खेती 

शीतकालीन सब्जियो मे मटर का स्थान प्रमुख है। इसकी खेती हरी फल्ली (सब्जी), साबुत मटर, एवं दाल के लिये किया जाता है।  मटर की खेती सब्जी और दाल के लिये उगाई जाती है। मटर दाल की आवश्यकता की पूर्ति के लिये पीले मटर का उत्पादन करना अति महत्वपूर्ण है, जिसका प्रयोग दाल, बेसन एवं छोले के रूप में अधिक किया जाता है ।आजकल मटर की डिब्बा बंदी भी काफी लोकप्रिय है। इसमे प्रचुर मात्रा मे प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, फास्फोरस, रेशा, पोटेशियम एवं विटामिन्स पाया जाता है। देश भर मे इसकी खेती व्यावसायिक रूप से की जाती है।

जलवायु 

मूंग की आर्गेनिक खेती

 

मूँग एक प्रमुख फसल है। इसका वानस्पतिक नाम बिगना सैडिएटा है। यह लेग्यमिनेसी कुल का पौधा हैं तथा इसका जन्म स्थान भारत है। मूँग के दानों में २५% प्रोटिन, ६०% कार्बोहाइड्रेट, १३% वसा तथा अल्प मात्रा में विटामिन सी पाया जाता हैं।

मूंगफली के प्रमुख रोग एवं बचाब

मूंगफली के दानों से 40-45% तेल प्राप्त होता है जो कि प्रोटिन का मुख्य स्त्रोत है। मूंगफली की फल्लियों का प्रयोग वनस्पति तेल एवं खलियों आदि के रुप में भी किया जाता है। मूंगफली का प्रचुर उत्पादन प्राप्त हो इसके लिये पौध रोग प्रबंधन की उचित आवश्यकता महसूस होती है। पौध रोग की पहचान एवं प्रबंधन इस दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास है।मूंगफली तिलहनी फसलों के रुप में ली जाने वाली प्रमुख फसल है। मूंगफली की खेती मुख्य रुप से रेतीली एवं कछारी भूमियों में सफलता पूर्वक की जाती है।

मूंगफली के प्रमुख रोग एवं रोग जनक:

 

Pages