मिट्टी में नमी कायम रखने के आधुनिक तरीके

मिट्टी में जरूरत के मुताबिक नमी का होना बहुत जरूरी है । खेत की तैयारी से लेकर फसल की कटाई तक मिट्टी में एक निश्चित नमी रहनी चाहिए । कितनी नमी हो यह इस बात पर निर्भर करता है कि कौन सा कार्य करना है और मिट्टी की बनावट कैसी है । जैसे बलुवाही मिट्टी में कम नमी रहने से भी जुताई की जा सकती है, लेकिन चिकनी मिट्टी में एक निश्चित नमी होने से ही जुताई हो सकती है । इसी तरह अलग-अलग  फसलों के लिए अलग-अलग  नमी रहनी चाहिए । जैसे -धान के लिए अधिक नमी की जरूरत है लेकिन बाजरा, कौनी वगैरह कम नमी में भी उपजाई जा सकती है|

पौधों के लिए आवश्यक नमी का होना बहुत ही जरूरी है । क्योंकि नमी के चलते ही पौधों की जड़ें फैलती हैं और पौधे नमी के साथ ही मिट्टी से अपना भोजन लेते हैं । साथ ही मिट्टी के सूक्ष्म जीवाणु भी मिट्टी में हवा और पानी के एक निश्चित अनुपात में ही अपना काम कर पाते हैं और पौधों के लिए भोजन तैयार करते हैं ।

पठारी क्षेत्रों में सिचाई की क्षमता काफी कम है । यहाँ खरीफ में केवल सात प्रतिशत जमीन में ही सिंचाई हो सकती है, जबकि रबी के मौसम में तो सिंचाई सिर्फ 3 प्रतिशत जमीन में ही हो सकती है । इन क्षेत्रों  के सभी  सिंचाई  श्रोतों  का उपयोग यदि सही ढंग से और पूर्ण क्षमता के साथ की जाए तो यहाँ सिंचाई सिर्फ 15 प्रतिशत जमीन में ही की जा सकती है ।

पठारी क्षेत्रों की जमीन ऊबड़-खाबड़  है । मिट्टी की गहराई भी कम है। यहाँ एक  हजार से पंद्रह सौ मि.मी. वर्षा होती है । इस वर्षा का 80 प्रतिशत भाग जून से सिंतबर महीने तक होता है । मिट्टी की कम गहराई और खेत के ऊबड़-खाबड़ होने से वर्षा का पानी तो खेत से निकल ही जाता है, यह अपने साथ खेत की उपजाऊ मिट्टी भी ले जाता है । इन्हीं कारणों के चलते पठारी क्षेत्रों में पौधों के लिए नमी बनाए रखना बहुत जरूरी है ।

पठारी क्षेत्रों की मिट्टी में नमी बनाए रखने के लिए कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है वे है :-

  1. खेत की सतह से वर्षा के जल के बहाव को रोकना ।
  2. मिट्टी की गहराई के अंदर जल के बहाव की गति को बढ़ाना जिससे खेत की सतह से कम पानी बाहर जा सके ।
  3. वर्षा के जल की बूँदों के प्रभाव से जमीन की सतह पर पपड़ी बन जाती है । इससे बीज के अंकुरण में बाधा आती है और जल के मिट्टी की गहराई के अंदर बह जाने की क्षमता भी कम हो जाती है ।
  4. भूसंरक्षण के उपाय - इसके द्वारा मिट्टी के कटाव को रोकना ताकि अधिक उपजाऊ मिट्टी की ऊपरी सतह की जल-धारण  क्षमता बनी रहे ।
  5. खेत की सतह को घास - फूस या फसल के अवशेषों द्वारा ढ़क देना| जिससे कि मिट्टी से जल का वाष्पीकरण रोका जा सकें ।
  6. वर्षा जल संचय करना ताकि जरूरत के समय आवश्यक सिंचाई द्वारा मिट्टी की नमी कायम रखी जा सके ।
  7. वर्षा द्वारा संचित जल का सही उपयोग जिससे कि कम-से-कम जल द्वारा अच्छी फसल ली जा सके ।
  8. फसल की उपज को ध्यान में रखते हुए जल उपयोग क्षमता को बढ़ाना । इसके द्वारा खेती के उन्नत तरीकों को अपना कर कम-से-कम  जल के उपयोग से अधिक से अधिक फसल को  लेना । मिट्टी की नमी बनाए रखने के लिए कुछ आसान और आधुनिक उपाय किए जा सकते हैं ।

ये उपाय इस प्रकार है -

खेत की सतह से वर्षा के जल का बहाव रोकने के लिए खेत के चारों ओर हल्का मेड़ बना दें| खेत के ऊपरी ढलान पर पानी के बहाव का एक सुरक्षित रास्ता बनावें|

जो खेत के बगल होकर किसी नदी नाले में जा सके जिससे कि खेत की मिट्टी का कटाव रोका जा सके । यह उपाय बड़े किसान खुदकर सकते है । छोटे किसान सहकारी समीतियाँ या सरकार की मदद से कर सकते हैं । इस उपाय के द्वारा दो फायदे होते हैं । एक तो वर्षा का जल मिट्टी की गहराई के नीचे जाकर मिट्टी में समा जाता है और जरूरत के मुताविक फसल की जड़ों को जल मुहैया कराता है । दूसरा फायदा यह है कि इससे खेत की मिट्टी का कटाव भी नहीं हो पाता है      मिट्टी के अंदर वर्षा जल के बहाव को बढ़ाने के लिए खेत की सतह के ऊपर या उसके अंदर कड़ी परतों को उपयुक्त औजार के द्वारा काटें । इस तरह से वर्षा का अधिक जल खेत की सतह के नीचे चला जाता है और खेत के ऊपर से पानी का बहाव कम हो जाता है ।इसके लिए सबसे अच्छा उपाय है जैविक खादों का उपयोग । गोबर की खाद 10 -20 टन प्रति हेक्टेयर की दर से डालने से हल्की और कड़ी मिट्टी दोनों में जल-धारण क्षमता बढ़ जाती है । इसके साथ ही खेत में जल का जमाव भी नहीं होता है और अच्छी फसल ली जा सकती है । जैविक खाद या जैविक पदार्थो के नियमित उपयोग से खेत की सतह पर कड़ी परत भी नहीं बन पाती है । इससे मिट्टी के अंदर जल का बहाव अच्छा होता है साथ ही बीज का अंकुरण भी ठीक होता है ।

खेत की सतह को घास-फूस  या फसल के अवशेषों से ढकने की क्रिया को अंग्रेजी में 'मलचिंग' कहा जाता है । इससे सबसे बड़ा लाभ यह है कि खेत की मिट्टी से   जल का वाष्पीकरण  नहीं हो पाता है । इसका  दूसरा फायदा  यह है कि खर-पतवार के बढ़ोतरी में भी कमी होती है । जिसके चलते नमी का संरक्षण होता है । इसका तीसरा फायदा है कि वर्षा जल के द्वारा मिट्टी का कटाव भी नहीं हो पाता है । वर्षा जल का संचय करने के लिए संचय तालाब का निर्माण किया जाता है । यह तालाब यदि संभव हो तो ऐसी जगह बनाया जाए जहाँ भूमि की सतह की प्राकृतिक बनावट में थोड़ा-सा ही फेर बदल कर के तालाब का रूप दिया जा सके ।

यहाँ ध्यान देने वाली बात है कि तालाब  को ऐसी जगह बनाया जाय जहाँ से कम-से-कम खर्च में अधिक-से-अधिक खेतों में जरूरत के समय फसल को सुरक्षित रखने के लिए एक-या-दो  सिंचाई दी जा सके । ये उपाय सहकारी समितियों के माध्यम से या सरकार की मदद से किए जा सकते हैं । ऐसे तालाब विशेषज्ञों से सलाह लेकर ही बनाना चाहिए ।

कुछ ऐसे भी उपाय हैं जिसके द्वारा किसान वर्षा के जल को संचय कर कुछ समय तक के लिए मिट्टी में नमी कायम रख सकते हैं । इन उपायों में एक है फसल की कतारों के बीच गहरी नालियाँ बनाना । जिससे वर्षा का जल संचित हो ओर काफी समय तक मिट्टी के नमी को कायम रखा जा सके । दूसरा उपाय है फल वृक्षों वाले जमीन में वृक्ष की कतारों के बीच छोटे-छोटे गड्‌ढे, जगह-जगह  पर बना कर वर्षा जल को संचित किया जा सकता है और इस जल से अगल - बगल के फल वृक्षों में जरूरत के समय सिंचाई कर मिट्टी की नमी को कायम रखा जा सकता है ।

 

उन्नत और आधुनिक तरीके से खेती करने से प्रति इकाई पानी की मात्रा से अधिक से अधिक फसल ली जा सकती है । इसके लिए ऐसी फसलों का चुनाव करना चाहिए जिनकी  जड़ें मिट्टी की अधिक गहराई में जाकर वहाँ की नमी का उपयोग जरूरत के मुताबिक कर सके । सुखाड़ के समय ऐसे पौधों को लगावें जो वाष्पीकरण या अन्य तरीके से मिट्टी के जल को कम-से-कम वायुमंडल में छोड़ सके । इसके लिए कम चौड़े पत्तें वाले फसलों का चुनाव करना चाहिए । खेत से हमेशा खर-पतवार को निकालना चाहिए ताकि मिट्टी में फसलों के लायक नमी बनी रह सके ।

कीड़े-मकौड़े  और बीमारियों का निदान भी करते रहना चाहिए जिससे कि अधिक उपज कम से कम जल के उपयोग से मिल सके 

राधाकान्त जी द्वारा किसान हेल्प लाइन के जपरूपता कार्यक्रम के कुछ अंश