आम के पेड़ों में लगता है यह रोग, ऐसे करें बचाव

जनवरी महीने में आम के पेड़ों में बौर आना शुरू हो जाता है। इस लिए किसानों को अच्छा उत्पादन पाने के लिए अभी से देखभाल करनी इसकी देखभाल करनी होगी। क्योंकि अगर ज़रा सी चूक हुई तो रोग और कीट पूरी फसल को बर्बाद कर सकते हैं।

फलों का राजा आम हमारे देश का सबसे महत्वपूर्ण फल है। इसकी खेती उत्तर प्रदेश, बिहार, आन्ध्र प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, तमिलनाडु, उडीसा, महाराष्ट्र, और गुजरात में व्यापक स्तर पर की जाती है।

''इस समय किसानों को बाग में सिंचाई कर देनी चाहिए, जिससे नमी बनी रहे। किसानों को इस समय पेड़ों पर कीटनाशकों का छिड़कार कर देना चाहिए, इसके बाद दूसरा छिड़काव जब फल चने के बराबर हो जाएं तब करना चाहिए,'' बागवानी विभाग के ज्वाइंट डायरेक्टर आरपी सिंह ने बताया, ''जिस समय पेड़ों पर बौर लगा हो उस समय किसी भी कीटनाशक का छिड़काव नहीं करना चाहिए, क्योंकि इसका परागड़ हवा या मक्खियों द्वारा होता है। अगर कीटनाशक का छिड़काव कर दिया तो मक्खिया मर जाएंगी और बैर पर नमी होने के कारण परागण नहीं हो पाएगा, जिससे फल बहुत कम आएंगे।''

मार्च महीने में बागवान अपनी आम की फसल पर जरूर ध्यान दें और उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करें. इस मार्च महीने में भी एक खास रोग आम के पेड़ों में लगता है. यह रोग सफेद चूर्णी रोग है. इसे पाउडरी मिल्ड्यू  भी कहते हैं. यह आम की फसल में लगने वाले खतरनाक रोगों में से एक है.

यह पाउडरी मिल्ड्यू रोग मार्च के महीने में, खासकर दूसरे हफ्ते से लगना शुरू हो जाता है. आम के पेड़ों में इस समय बौर (मंजर) आ चुके हैं. ऐसे में फसल की देखभाल करना और भी जरूरी हो गया है.

बागवानों को ऐसी अक्सर शिकायत होती है कि आम में बौर पूरे आने के बाद भी फल अच्छी तरह से नहीं आते हैं, तो इसकी वजह भी ये रोग और कीट हैं. इनसे बौर को अगर नहीं बचाया गया तो इसका उत्पादन पर बुरा प्रभाव पड़ता है.

आम पर लगने वाले रोग व उनसे बचाव' (mango farming ) पर बात करते हुए आज हम आपको इसी रोग की जानकारी देने जा रहे हैं. सफेद चूर्णी रोग (पाउडरी मिल्ड्यू) का प्रकोप उस समय भी होता है जब मौसम में बदलाव आना शुरू होता है. साथ ही बारिश के समय में भी यह रोग हो सकता है.

ऐसे प्रभावित होती है फसल

इस रोग से प्रभावित हिस्सा सफेद दिखाई देने लगता है जिससे मंजरियां और पत्तियां भूरी पड़कर सूखकर गिरने लगती हैं. इसका असर नए फलों पर भी देखा जा सकता है. संक्रमित बौर और विकसित हो रहे फलों पर फफूंद की सफ़ेद चूर्णिल आवरण दिखाई देने लगती है. सभी बौर आसानी से हाथ से छूने पर भी गिरने लगते हैं.

रोग प्रबंधन

इस सफ़ेद चूर्णिल रोग के लक्षण दिखाई देते ही आम के पेड़ों पर बागवान 5 प्रतिशत गंधक के घोल का छिड़काव करें. साथ ही 500 लीटर पानी में 250 ग्राम कैराथेन घोलकर छिड़काव करने से भी इस रोग की चपेट में आने से फसल को बचाया जा सकता है. अगर मौसम असामान्य हो रहा है तो बागवान 0.2 प्रतिशत गंधक के घोल का छिड़काव करें.

आम पर लगने वाले कीट

गुठली का घुन (स्टोन वीविल)- यह कीट घुन वाली इल्ली की तरह होता है। जो आम की गुठली में छेद करके घुस जाता है और उसके अन्दर अपना भोजन बनाता रहता है। कुछ दिनों बाद ये गूदे में पहुंच जाता है और उसे हानि पहुंचाता है। इस की वजह से कुछ देशों ने इस कीट से ग्रसित बागों से आम का आयात पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया था।

रोकथाम- इस कीड़े को नियंत्रित करना थोड़ा कठिन होता है इसलिए जिस भी पेड़ से फल नीचे गिरें उस पेड़ की सूखी पत्तियों और शाखाओं को नष्ट कर देना चाहिए। इससे कुछ हद तक कीड़े की रोकथाम हो जाती है।

जाला कीट (टेन्ट केटरपिलर)- प्रारम्भिक अवस्था में यह कीट पत्तियों की ऊपरी सतह को तेजी से खाता है। उसके बाद पत्तियों का जाल या टेन्ट बनाकर उसके अन्दर छिप जाता है और पत्तियों को खाना जारी रखता है।

रोकथाम- पहला उपाय तो यह है कि एज़ाडीरेक्टिन 3000 पीपीएम ताकत का 2 मिली लीटर को पानी में घोलकर छिड़काव करें। दूसरा संभव उपाय यह किया जा सकता है कि जुलाई के महीने में कुइनोलफास 0.05 फीसदी या मोनोक्रोटोफास 0.05 फीसदी का 2-3 बार छिड़काव करें।

दीमक- दीमक सफेद, चमकीले एवं मिट्टी के अन्दर रहने वाले कीट हैं। यह जड़ को खाता है उसके बाद सुरंग बनाकर ऊपर की ओर बढ़ता जाता है। यह तने के ऊपर कीचड़ का जमाव करके अपने आप को सुरक्षित करता है।

रोकथाम- इन उपायों से अपने पेड़ों को बचाएं

  • तने के ऊपर से कीचड़ के जमाव को हटाना चाहिए।
  • तने के ऊपर 1.5 फीसदी मेलाथियान का छिड़काव करें।
  • दीमक से छुटकारा मिलने के दो महीने बाद पेड़ के तने को मोनोक्रोटोफास (1 मिली प्रति लीटर) से मिट्टी पर छिड़काव करें।
  • दस ग्राम प्रति लीटर बिवेरिया बेसिआना का घोल बनाकर छिड़काव करें।

भुनगा कीट- यह कीट आम की फसल को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाते हैं। इस कीट के लार्वा एवं वयस्क कीट कोमल पत्तियों एवं पुष्पक्रमों का रस चूसकर हानि पहुचाते हैं। इसकी मादा 100-200 तक अंडे नई पत्तियों एवं मुलायम प्ररोह में देती है, और इनका जीवन चक्र 12-22 दिनों में पूरा हो जाता है। इसका प्रकोप जनवरी-फरवरी से शुरू हो जाता है।

रोकथाम- इस कीट से बचने के लिए बिवेरिया बेसिआना फफूंद के 0.5 फीसदी घोल का छिड़काव करें। नीम तेल 3000 पीपीएम प्रति 2 मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर, घोल का छिड़काव करके भी निजात पाया जा सकता है। इसके अलावा कार्बोरिल 0.2 फीसदी या कुइनोल्फास 0.063 फीसदी का घोल बनाकर छिड़काव करने से भी राहत मिल जाएगी।

आम पर लगने वाले रोग व उनसे बचाव के उपाय

सफेद चूर्णी रोग (पाउडरी मिल्ड्यू)- बौर आने की अवस्था में यदि मौसम बदली वाला हो या बरसात हो रही हो तो यह बीमारी लग जाती है। इस बीमारी के प्रभाव से रोगग्रस्त भाग सफेद दिखाई पडऩे लगता है। इसकी वजह से मंजरियां और फूल सूखकर गिर जाते हैं। इस रोग के लक्षण दिखाई देते ही आम के पेड़ों पर 5 प्रतिशत वाले गंधक के घोल का छिड़काव करें। इसके अलावा 500 लीटर पानी में 250 ग्राम कैराथेन घोलकर छिड़काव करने से भी बीमारी पर काबू पाया जा सकता है। जिन क्षेत्रों में बौर आने के समय मौसम असामान्य रहा हो वहां हर हालत में सुरक्षात्मक उपाय के आधार पर 0.2 प्रतिशत वाले गंधक के घोल का छिड़काव करें एवं आवश्यकतानुसार दोहराएं।

कालवूणा (एन्थ्रेक्नोस)- यह बीमारी अधिक नमी वाले क्षेत्रों में अधिक पाई जाती है। इसका आक्रमण पौधों के पत्तों, शाखाओं, और फूलों जैसे मुलायम भागों पर अधिक होता है। प्रभावित हिस्सों में गहरे भूरे रंग के धब्बे आ जाते हैं। प्रतिशत 0.2 जिनैब का छिड़काव करें। जिन क्षेत्रों में इस रोग की सम्भावना अधिक हो वहां सुरक्षा के तौर पर पहले ही घोल का छिड़काव करें।

पत्तों का जलना- उत्तर भारत में आम के कुछ बागों में पोटेशियम की कमी से एवं क्लोराइड की अधिकता से पत्तों के जलने की गंभीर समस्या पैदा हो जाती है। इस रोग से ग्रसित वृक्ष के पुराने पत्ते दूर से ही जले हुए जैसे दिखाई देते हैं। इस समस्या से फसल को बचाने हेतु पौधों पर 5 प्रतिशत पोटेशियम सल्फेट के छिड़काव की सिफारिश की जाती है। यह छिड़काव उसी समय करें जब पौधों पर नई पत्तियां आ रही हों। ऐसे बागों में पोटेशियम क्लोराइड उर्वरक प्रयोग न करने की सलाह भी दी जाती है। 0.1 प्रतिशत मेलाथिऑन का छिड़काव भी प्रभावी होता है।

डाई बैक- इस रोग में आम की टहनी ऊपर से नीचे की ओर सूखने लगती है और धीरे-धीरे पूरा पेड़ सूख जाता है। यह फफूंद जनित रोग होता है, जिससे तने की जलवाहिनी में भूरापन आ जाता है और वाहिनी सूख जाती है एवं जल ऊपर नहीं चढ़ पाता है इसकी रोकथाम के लिए रोग ग्रसित टहनियों के सूखे भाग को 15 सेमी नीचे से काट कर जला दें। कटे स्थान पर बोर्डो पेस्ट लगाएं तथा अक्टूबर माह में कॉपर ऑक्सी कलोराइड का 0.3 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें।

organic farming: