कीट आर्कषित फसल लगायें, फसलों को हानिकारक कीटों से बचायें

फसल उत्पादन को प्रभावित करने वाले कारकों में कीटों की भूमिका अहम रहती है। विभिन्न प्रकार के कीटों की जातिया जैसे- काटने चबाने वाले इल्ल्यिा, तनाछेदक, बीटल व चूसने वाले कीट जैसे-माहो, थ्रिप्स, लीफ हापर आदि अपने मुख के विभिन्न भागों से फलों, सब्जियों एवं खाघानों को चूसकर, कुतरकर, खाकर एवं उसमें घुसकर हानिकारक पदार्थ छोडतें है, जिससे फसल तो खराब होती ही है साथ ही उसकी गुणवत्ता व बाजार मूल्य कम हो जाती है जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पडता है।

इसी के संदर्भ में कीट आर्कषित फसलें एक औसत अनुमान के अनुसार 10-30 प्रतिशत तक किसानों की आर्थिक आय को कीटों के आक्रमण व कीटनाशी छिडकाव से बचाव करके बढा सकती है। कीट आर्कषित फसलें विभिन्न प्रकार के कीटों द्वारा विभिन्न फसल पद्धिति को बचाने की एक रणनीति है।

कीट आर्कषित फसलें एक प्रकार की रक्षक फसलें हैं जो कि एक महत्वपूर्ण अवधि के दौरान कीटों कों अपनी ओर आर्कषित कर मुख्य फसल को विभिन्न प्रकार के कीटों या अन्य जीव जैसे निमेटोड के प्रकोप से बचाने के लिये उगाई जाती हैं। यह या तो मुख्य फसल के बीच मे अंर्तवर्तीय के रूप मे या मुख्य फसल के चारो ओर बार्डर फसल या मुख्य फसल से पहले या बाद मे लगाई जाती है। ये फसलें मुख्य फसल की कुल/परिवार या उससे भिन्न कुल की हो सकती है।

कीट आर्कषित फसल लगाने के लाभः-

 

  • यह मुख्य फसल की गुणवत्ता को बनाये रखती है।
  • यह मृदा स्वास्थय व पर्यावरण के संतुलन को बनाये रखती है।
  • फसल के उत्पादकता को बढाती है।
  • जैव विविधता को बढाने मे सहायक होती है।
  • फसलों के मित्र कीटों को आर्कषित करती है।
  • हानिकारक कीटों के प्रकोप से मुख्य फसल की रक्षा करती है।
  • कीटनाशी के अधिक मात्रा में उपयोग को कम करती है।

कीट आर्कषित फसलों के प्रकार:-

वास्तव मे रक्षक फसलों को हानिकारक कीटों के लिये एक विकल्प के रूप मे उगाया जाता है जिससे मुख्य फसल पर कीटों का आक्रमण कम किया जा सके। कीट आर्कषित फसलों को उनके स्थानिक वितरण एवं स्वाभाविक विशिष्ट लक्षणों के आधार पर वर्गीकृत किया गया है।

विशिष्ट लक्षणों के आधार पर वर्गीकरण:-

  1. परंपरागत/पारंपरिक फसलें:-यह सामान्य प्रयोग मे लायी जाने वाली विधि है इस विधि मे रक्षक फसलों को मुख्य फसल के आगे लगाया जाता है जिसमे रक्षक फसल मुख्य फसल की अपेक्षा प्राकृतिक रूप से अधिक से अधिक कीटों को भोजन व अण्डे देने के लिये आर्कषित करती है। उदा.- अरंडी/गेंदा को लीफ माइनर के रोकथाम के लिये मूंगफली के साथ लगाना व लूसर्न (अल्फा अल्फा) को लाइगस बग के रोकथाम के लिये कपास के साथ उगाना।
  2. गति रोधी फसल:- इस प्रकार की रक्षक फसल कीटों को अधिक आर्कषित करने वाली होती है लेकिन इसका परिणाम ज्यादा समय तक आस्तित्व मे नही रहता। उदा.- सरसों को हीरक पृष्ठ शलभ के रोकथाम के लिये गोभी के साथ उगाना।
  3. आनुवंशिक रूप से परिवर्तित फसल:- इस प्रकार की रक्षक फसल आनुवंशिक रूप से परिवर्तित रहती है जो कीटों को आर्कषित करती है। उदा.- आनुवंशिक अभियांत्रिकी विधि से परिवर्तित आलू (बी.टी.) आलू की फसल में कोर्लाडो पोटाटो बीटल की रोकथाम के लिये लगाई जाति है।

. स्थानिक वितरण के आधार पर वर्गीकरण:-

  1. परिमाप फसलें:- इस विधि मे रक्षक फसलों को मुख्य फसलों के चारो ओर बार्डर के रूप मे लगाया जाता है। उदा.- कपास के चारो ओर भिण्डी लगाना।
  2. क्रम के अनुसार:- इस विधि मे रक्षक फसलों को मुख्य फसलों के पहले या बाद मे लगाया जाता है। उदा.- सरसों को हीरक पृष्ठ शलभ के रोकथाम के लिये गोभी के खेत में उगाना।
  3. विविध/बहुरूपी फसलें:- इस विधि में रक्षक फसलों की विभिन्न प्रजातियों को कीटों को आर्कषित करने के लिये मिश्रित करके या मुख्य फसल के साथ लगाया जाता है। उदा.- मूंगफली में लीफ माइनर के रोकथाम के लिये अरंडी, मिलेट्स व सोयाबीन को मिश्रित करके लगाना।
  4. पुश पुल फसलें:- इस विधि में रक्षक फसलों एवं निरोधक फसलों को मिश्रित रूप से मुख्य फसल के साथ लगाया जाता है। जिसमें रक्षक फसल कीटों को आर्कषित करती है व निरोधक फसलें कीटों का ध्यान हटाकर मुख्य फसल से दूर रखती है।उदा.- मिर्च के साथ गेंदा व प्याज को लगाना एवं मक्का/ज्वार मे तनाछेदक के रोकथाम के लिये नेपियर या सुडान घांस को रक्षक फसल के रूप मे मक्का के चारो तरफ तथा डेस्मोडियम (पुष्पीय फसल) को मक्के के बीच में कतारों में निरोधक फसल के रूप लगाया जाता है।

कीट आर्कषित फसलों या रक्षक फसलों को लगाने का तरीका:-

  • गोभी में हीरक पृष्ठ शलभ के रोकथाम के लिये बोल्ड सरसों को गोभी के प्रत्येक 25 कतारों के बाद 2 कतारों में लगाना।
  • कपास की इल्ली/छेदक के रोकथाम के लिये लोबिया को कपास के प्रत्येक 5 कतारों के बाद 1 कतारों में लगाना।
  • कपास की इल्ली/छेदक के रोकथाम के लिये तंबाकू को कपास के प्रत्येक 20 कतारों के बाद 2 कतारों में लगाना।
  • टमाटर में फल छेदक/निमेटोड के रोकथाम के लिये अफ्रीकन गेंदे को टमाटर के प्रत्येक 14 कतारों के बाद 2 कतारों में लगाना।
  • बैगन में तना व फल छेदक के रोकथाम के लिये धनिया/मेथी को बैगन के प्रत्येक 2 कतारों के बाद 1 कतारों में लगाना ।
  • चने में इल्ली के रोकथाम के लिये धनिया/गेंदा को चना के प्रत्येक 4 कतारों के बाद 1 कतारों में लगाना।
  • अरहर में चने की इल्ली के रोकथाम के लिये गेंदा को अरहर के चारों तरफ बार्डर में लगाना।
  • मक्का में तना छेदक के रोकथाम के लिये नेपियर/सुडान घांस को मक्का के चारो तरफ बार्डर में लगाना।
  • सोयाबीन में तंबाकू की इल्ली के रोकथाम के लिये सूरजमुखी या अरंडी को सोयाबीन के चारों तरफ 1 कतार में लगाना।
  • रक्षक फसलों की सफलता के कुछ महत्व पूर्ण उपाय:-
  • सर्वप्रथम एक फार्म प्लान बनाना चाहिये, जो यह दर्शाये कि कब व कहाॅं रक्षक फसलों को उगायें।
  • फसलों को हानि पहुॅचाने वाले कीटों की पहचान व जानकारी होना आवश्यक है।
  • रक्षक फसलों के रूप में ऐसे फसल का चुनाव करें जो कीटों को आधिक आर्कषित करके मुख्य फसलों की रक्षा करे इसके लिये कृषि वैज्ञानिकों से सलाह लेना चाहिये।
  • फसलों की नियमित रूप से देख रेख करना चाहिये।
  • रक्षक फसलों पर यदि कीट अधिक आर्कषित होते है एवं इनकी संख्या बहुत अधिक हो जाती है या मुख्य फसल में कीट प्रकोप बढने की संभावनायें बढ जाती है तो रक्षक फसलों को समय समय पर काॅंट छाॅंट करते रहना चाहिये यदि आवश्यक हो तो कीटनाशी का भी छिडकाव करना चाहिये या इन्हे उखाडने नष्ट करने के लिये भी तैयार रहना चाहिये ताकि समय पर रोकथाम की जा सके।