जून माह में फसल उत्पादन हेतु सलाह

मूंग की पकी हुई फलियों की तुड़ाई कर लें तथा 70-80% फलियाँ पकने पर फसल की कटाई कर लें। उर्द की फसल पूरी पक जाने पर एक साथ कटाई करें। कटी हुई फसल को सुखाकर गहाई करें तथा एक बार पुनः दानों को अच्छी तरह साफकर, सुखाकर भंडारित करें।

खाली खेतों से मृदा नमूना लेकर मृदा परीक्षण करायें। जून की गर्मी में खेत को मिट्टी पलट हल से गहरा जोतकर मिट्टी को धूप में तपायें।

देर से बोयी जाने वाली (कम दिन की) धान की प्रजातियों की पौध (बीज की मात्रा 25 किलोग्राम महीन दाना, 30 किलोग्राम मध्यम दाना तथा 35 किलोग्राम मोटा दाना, संकर धान के लिये 15-20 किलोग्राम तथा ऊसर भूमि में सवा से डेढ़ गुनी मात्रा/ हेक्टेयर) डालें। बीज को 6 ग्राम स्ट्रेप्टोसायक्लीन या 40 ग्राम प्लांटोमायसिन तथा ट्रायसायक्लाजोल / पायरोकुइलोन 2 ग्राम/लीटर प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर बीज को 48 घण्टे के लिये जवई (अंकुरण होने) कर पौध डाल दें।

धान की सीधी बुवाई का यह उपयुक्त समय चल रहा है अतः जून के तीसरे सप्ताह तक प्रजाति अनुसार धान की सीधी बुवाई कर दें। इसके लिए खेत समतल होना आवश्यक है।

धान की 120 दिन से अधिक की प्रजातियों की रोपाई जून के तीसरे सप्ताह से आरम्भ कर दें। रोपाई के लिये 21 दिन की पौध सर्वोत्तम रहती है। पौध को 3-4 सेंटीमीटर भरे हुये पानी में सावधानी से उखाड़ें और गड्डी बांधकर जड़ों को पानी में डुबोकर रक्खें। पौध को उखाड़ने के बाद जितनी जल्दी सम्भव हो उसकी रोपाई कर दें। रोपाई के लिये 20 सेंटीमीटर लाइन से लाइन तथा 15 सेंटीमीटर पौधे से पौधे की दूरी रखते हुये एक स्थान पर 2 स्वस्थ पौधों की रोपाई करें। रोपाई के बाद खरपतवार तथा पोषक तत्व प्रबन्धन के लिये कम पानी की अवस्था में ब्राउन मल्चिंग के लिये ढेंचा का बीज या अधिक पानी की अवस्था में नील-हरित शैवाल का प्रयोग कर सकते हैं।

ज्वार की बुवाई जून के अन्तिम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक 12-15 किलोग्राम बीज/हेक्टेयर की दर से 45X15-20 सेंटीमीटर की दूरी पर करें।

मक्का की कंचन, सूर्य, नवीन, पन्त संकुल मक्का -3 आदि प्रजातियों की बुवाई खेत में पलेवा करके 18-20 किलोग्राम /हेक्टेयर की दर से 60 सेंटीमीटर की दूरी पर लाइनों में करें। पहली निराई के समय विरलीकरण कर लाइन में पौधों की आपसी दूरी 25 सेंटीमीटर कर दें।

बाजरा की बुवाई सिंचित क्षेत्रों में पलेवा करके या मानसून की पहली अच्छी वर्षा के बाद 4-5 किलोग्राम/हेक्टेयर की दर से 45 सेंटीमीटर की दूरी पर लाइनों में करें।

मूँगफली की बुवाई जून के अन्तिम सप्ताह से जुलाई के मध्य तक करें। कम फैलने वाली प्रजातियों में लाइन से लाइन की दूरी 45 सेंटीमीटर (60-80 किलोग्राम बीज/हेक्टेयर) तथा गुच्छेदार प्रजातियों में लाइन से लाइन की दूरी 30 सेंटीमीटर (80-100 किलोग्राम बीज/हेक्टेयर) तथा पौधे से पौधा 15-20 सेंटीमीटर रखकर बुवाई करें।

सोयाबीन की बुवाई जून के अन्तिम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक 75-80 किलोग्राम बीज/हेक्टेयर की दर से 45X30 सेंटीमीटर की दूरी पर करें।

कम समय में तैयार होने वाली अरहर की किस्मों जैसे यू॰पी॰ए॰एस॰-120, पन्त अरहर-291, पूसा अरहर-33, पूसा अरहर-991, पूसा अरहर-992, पूसा अरहर-2001, पूसा अरहर-2002 की पलेवा करके 45 से 60 सेंटीमीटर की दूरी पर लाइनों में 15 किलोग्राम बीज /हेक्टेयर की दर से बुवाई कर दें।

गन्ने में यूरिया की सम्पूर्ण मात्रा की टॉप ड्रेसिंग जून के तीसरे सप्ताह तक पूरी कर लें। आवश्यकतानुसार सिंचाई एवं खरपतवार नियन्त्रण हेतु खुदाई करके लाइनों पर मिट्टी चढ़ा दें। वर्षा न होने या सूखे की स्थिति में 12 मिलीलीटर इथरेल 100 लीटर पानी में घोल बनाकर गन्ने की पत्तियों पर छिड़काव करें।
गन्ने की लाल सड़न, कंडुआ, पत्ती का झुलसना तथा घासीय प्ररोह रोगग्रस्त पौधों को पूरे झुंड सहित निकालकर नष्ट कर दें तथा रिक्त स्थान पर ट्राइकोडर्मा पाउडर या ब्लीचिंग पाउडर का बुरकाव करें।

घासीय प्ररोह ग्रस्त खेत में रोगोर 0.3 मिलीलीटर/लीटर पानी का घोल बनाकर छिड़काव करें।

यदि चोटीबेधक कीट की सफ़ेद पंखुड़ी/तितलियाँ दिखें तो चोटीबेधक या तनाबेधक कीट के नियन्त्रण के लिये 50,000 ट्राइकोग्रामा कीट के अंडे /हेक्टेयर की दर से खेत में रोपित करें।
रसायनिक नियन्त्रण के लिये खेत में पर्याप्त नमी की अवस्था में क्लोरेंट्रेनिलिप्रोले 18.5 एस॰सी॰ 500-600 मिलीलीटर मात्रा/हेक्टेयर का छिड़काव या फिप्रोनिल या फ्यूराडान 3 जी॰ 33 किलोग्राम या थिमेट 10 जी॰ 33 किलोग्राम/हेक्टेयर की दर से जून के अन्तिम सप्ताह से

जुलाई के प्रथम सप्ताह तक गन्ने की जड़ के पास प्रातः 10 बजे से पूर्व बुरकाव करें। टिड्डों तथा आर्मीवर्म के नियन्त्रण के लिये फेनवेलरेट या फेनिट्रोथिओन धूल 20-25 किलोग्राम/हेक्टेयर की दर से बुरकाव करें।

काला चिकटा के नियन्त्रण के लिये ब्यूवेरिया बेसियाना धूसरित 5000 काला चिकटा/हेक्टेयर की दर से छोड़ें। सफ़ेद गिडार के प्रौढ़ बीटल के नियन्त्रण के लिये मानसून से पूर्व की वर्षा के बाद सामुदायिक स्तर पर भाकृअनुप-भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित प्रकाश-फेरोमोन प्रपंच का प्रयोग कर ट्रैप में इकट्ठा हुये कीटों को नष्ट कर दें।

डॉ आर के सिंह,
अध्यक्ष कृषि विज्ञान केंद्र बरेली
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जैविक खेती: