जैव उवर्रकों का फसलों/सब्जियों में उपयोग एवं लाभ

जैव उर्वरक क्या है ?

जैव उर्वरक विशिष्ट प्रकार के जीवाणुओं का एक विशेष प्रकार के माध्यम, चारकोल, मिट्टी या गोबर की खाद में ऐसा मिश्रण है, जो वायुमण्डलीय नत्रजन को साइकल द्वारा पौधों को उपलब्ध कराती है या मिट्टी में उपलब्ध अघुलनशील फास्फोरस को घुलनशील अवस्था मे परिवर्तित करके पौधों को उपलब्ध कराता है। इनके प्रयोग से रासायनिक उर्वरकों की 1/3 मात्रा तक की बचत हो जाती है।

जैव उर्वरकों का वर्गीकरण:

नाइट्रोजन पूर्ति करने वाले जैव उर्वरक यह जीवाणु सभी दलहनी फसलों व तिलहनी फसलों जैसे- सोयाबीन और मूँगफली की जड़ों में छोटी-छोटी ग्रन्थियों में पाया जाता है, जो सह जीवन के रूप में कार्य करते हुए वायुमण्डल में उपलब्ध नाइट्रोजन को पौधों को उपलब्ध कराता है। राइजोबियम जीवाणु अलग-अलग फसलों के लिये अलग-अलग होता है इसलिये बीज उपचार हेतु उसी फसल का कल्चर प्रयोग करना चाहिये।

जैव उर्वरकों से बीज उपचार करने की विधि:

जैव उर्वरकों के प्रयोग की यह सर्वोत्तम विधि है। 1 लीटर पानी में लगभग 100 ग्राम गुड़ डालकर उबालकर अच्छी तरह मिलाकर घोल बना लेते हैं। इस घोल को बीजों पर छिड़क कर मिला देते हैं जिससे प्रत्येक बीज पर इसकी परत चढ़ जाये !इसके उपरान्त बीजो को छायादार जगह में सुखा लेते हैं। उपचारित बीजों की बुवाई सूखने के तुरन्त बाद कर देनी चाहिये।

पौध जड़ उपचार विधि:

धान तथा सब्जी वाली फसलें, जिनके पौधों की जड़ों को जैव उर्वरकों द्वारा उपचारित किया जाता है। इसके लिये बर्तन में 5-7 लीटर पानी में एक किलोग्राम जैव उर्वरक मिला लेते हैं। इसके उपरान्त नर्सरी से पौधों को उखाड़कर तथा जड़ों से मिट्टी साफ करने के पश्चात 50-100 पौधों को बण्डल में बाँधकर जीवाणु खाद के घोल में 10 मिनट तक डुबो देते हैं। इसके बाद तुरन्त रोपाई कर देते हैं।

कन्द उपचार विधि: गन्ना, आलू, अदरक, घुइयाँ जैसी फसलों में जैव उर्वरकों के प्रयोग हेतु कन्दों को

उपचारित किया जाता है। एक किलोग्राम जैव उर्वरक को 20-30 लीटर घोलकर मिला देते हैं। इसके उपरान्त कन्दों को 10 मिनट तक घोल में डुबोकर रखने के पश्चात बुवाई कर देते हैं।

मृदा उपचार विधि: 4-5 किलोग्राम जैव उर्वरक 50-60 कि.ग्रा. मिट्टी या कम्पोस्ट का मिश्रण तैयार करके प्रति हेक्टेयर की दर से खेत की अन्तिम जुताई पर खेत में मिला देते हैं।

जैव उर्वरकों के उपयोग से लाभ:

  1. इसके प्रयोग सं फसलों की पैदावार में वृद्धि होती है।
  2. रासायनिक उवर्रक एवं विदशी मुद्रा की बचत होती है।
  3. ये हानिकारक या विषैले नही होते !
  4. मृदा को लगभग 25-30 कि.ग्रा./हे. नाइट्रोजन एवं 15-20 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर फास्फोरस उपलब्ध कराना तथा मृदा की भौतिक एवं रासायनिक दशाओं में सुधार लाना।
  5. इनके प्रयोग से उपज में वृद्धि के अतिरिक्त गन्ने में शर्करा की, तिलहनी फसलों में तेल की तथा मक्का एवं आलू में स्टार्च की मात्रा में बढ़ोतरी होती है।
  6. विभिन्न फसलों में बीज उत्पादन कार्यक्रम द्वारा 15-20 प्रतिशत उपज में वृद्धि करना।
  7. किसानों को आर्थिक लाभ होता है।
  8. इनसे बीज उपचार करने से अंकुरण शीघ्र होता है तथा कल्लों की संख्या में वृद्धि होती है।
    सीताराम देवांगन और घनश्याम दास साहू (उघानिकी विभाग, इंदिरा गांधी कृषि महाविघालय रायपुर)