मटका खाद

विशेषतायें
i. स्थानीय संसाधनों से तैयार किया जाता है।
ii. यह तकनीक सरल, सस्ती और प्रभावशाली है।
iii. पौधों में वानस्पतिक वृद्धि तेजी से करती है।
iv. भूमि में मित्र जीवाणुओं की संख्या बढ़ाता है।
v. भूमि की उर्वरा शक्ति में वृद्धि करता है और उत्पादन बढ़ाता है। 
vi. इसके उपयोग से रासायनिक खादों पर निर्भरता कम होगी।
vii. फसल की गुणवत्ता में वृद्धि होती है।

आवश्यक सामग्री

 

गौमूत्र                                     15 ली. (देशी गाय)

गाय का ताजा गोबर                     15 कि.ग्रा.

गुड़                                          250 ग्राम

पानी                                        15 लीटर

प्लास्टिक का पात्र/मटका                1

 

बनाने की विधि

सर्वप्रथम 15 ली. पानी में 250 ग्राम गुड़ का घोल तैयार करें। इसके बाद पात्र में गौमूत्र डाल कर हिला दीजिये। मटके में 5 ली. गौमूत्र, 5 कि.ग्रा. गोबर व एक तिहाई गुड़ का घोल मिला दीजिये और एक लकड़ी की सहायता से दो मिनट तक सीधा व फिर उलटा घुमाइये। इसे क्रमवार दो बार करके सभी सामग्री अच्छी तरह मिला दीजिये। कुछ देर बाद 5 मिनट तक डण्डे से घुमाइये। इसके बाद घड़े का मुँह बंद कर दीजिये और ढक्कन को गोबर व मिट्टी से लीप दीजिये। 7-10 दिन तक छाया में रखें। तब खाद तैयार हो जायेगी। फिर 200 लीटर का ड्रम लेकर 150 ली, पानी भरकर यह मटका खाद उसमें मिला कर 30 मिनट तक घुमायें। इसके बादा 1 बीघा खेत में छिड़काव करें। (पहला छिड़काव बुआई से दो दिन पहले व दूसरा बुआई के 55-60 दिन बाद तथा तीसरा छिड़काव फूल आने से पहले करें।) मटका खाद बनाने के बाद दो तीन दिन में ही इसका उपयोग करना अनिवार्य है। 7 दिन से ज्यादा पुराना गौमूत्र उपयोग नहीं करना चाहिए।

उपयोग

i. 1 बीघा खेत में 30 ली. मटका खाद 200 लीटर पानी में मिला कर फसल में जड़ों के पास छिड़काव करें।
ii. अनाज वाली फसलों में - बुआई के 25 दिन, 50 दिन, व 70 दिन पर पानी में मिला कर छिड़काव करें।
iii. इसका छिड़काव करते समय खेत में नमी का होना आवश्यक है। 

organic farming: