मृदा अपरदन एवं कारण

मिट्टी एक अमूल्य प्राकृतिक संसाधन है, जिस पर संपूर्ण प्राणि जगत निर्भर है । भारत जैसे कृषि प्रधान देश में; जहाँ मृदा अपरदन की गंभीर समस्या है मृदा अपरदन की प्रक्रिया में मृदा की उपरी सतह टूट जाती है और एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँच जाती है| भूक्षरण या मृदा-अपरदन का अर्थ है मृदा कणों का बाह्‌य कारकों जैसे वायु, जल या गुरूत्वीय-खिंचाव द्वारा पृथक होकर बह जाना। वायु द्वारा भूक्षरण मुख्यतः रेगिस्तानी क्षेत्रों में होता है, जहाँ वर्षा की कमी तथा हवा की गति अधिक होती है, परन्तु जल तथा गुरूत्वीय बल द्वारा भूक्षरण पर्वतीय क्षेत्रों में अधिक होता है। जल द्वारा भूक्षरण के दो मुख्य चरण होते हैं- पहले सतही भूमि से मृदा कणों का पृथक होना, तथा दूसरे इन मृदा कणों का सतही अपवाह के साथ बहकर दूर चले जाना।  मृदा का प्राकृतिक अपरदन जल और वायु के कारण होता है| मृदा का प्राकृतिक अपरदन होने के निम्नलिखित कारण हैं

मृदा अपरदन के कारण

  • 1.निर्वनीकरण -
  • वन पानी के बहाव की तीव्रता तथा वायु की गति को कम करता है । वह मिट्टी को जड़ों से जकड़कर रखता है । किंतु वनों के अविवेकपूर्ण विदोहन तथा कटाई अपरदन की तीव्रता बढ़ाती है ।
  • 2.अनियंत्रित पशुचारण-
  • इससे मिट्टी का गठन ढीला हो जाता है । फलतः जलीय तथा वायु-अपरदन तीव्र होता है ।
  • 3- कृषि का अवैज्ञानिक ढंग -
  • अत्यधिक जुताई, गहन कृषि, फसल चक्र की अनुपस्थिति आदि कारणों से मिट्टी अपना प्राकृतिक गुण खो देती है, जिससे उसका विघटन होने लगता है । यह जलीय तथा वायु अपरदन को सुगम बना देती है ।
  • 4- भूमि की ढ़ाल -भूमि का तीव्र ढ़ाल गुरुत्त्वाकर्षणीय प्रभाव में मृदा को नीचे लाने में सहायक होती है ।
  • 5- अतिवृष्टि तथा अनावृष्टि
  • 6- झूमिंग कृषि प्रणाली -
  • इससे वनों का विनाश होता है तथा मिट्टी के पोषक तत्त्व बह जाते हैं।
  • 7- नदी बहाव की गति -
  •  नदी की गति यदि दोगुनी हो जाए तो अपरदन क्षमता चार गुनी तथा वहन क्षमता 64 गुनी बढ़ जाती है ।
  • 8- नदियों द्वारा मार्ग परिवर्तन
  • - नदी मार्ग परिवर्तन कर उपजाऊ भूमि को जलमग्न कर देती है।

मृदा अपरदन का प्रभाव (राष्ट्रीय योजना समिति के अनुसार)

  • 1- भूमि की उर्वराशक्ति का नष्ट होगा,
  • 2- जोतदार भूमि में कमी,
  • 3- आकस्मिक तथा भयंकर बाढ़ का प्रकोप,
  • 4- शुष्क मरूभूमि का विस्तार,
  • 5- बीहड़ तथा बंजर भूमि में वृद्धि, जो असमाजिक तत्त्वों का शरणस्थल बनता है ।
  • 6- स्थानीय जलवायु पर विपरीत प्रभाव,
  • 7- नदियों का मार्ग परिवर्तन,
  • 8- भू-जलस्तर का नीचे जाना, फलस्वरूप पेयजल तथा सिंचाई के लिए जल की कमी,
  • 9- खाद्यान्न उत्पादन में कमी, फलस्वरूप आयात में वृद्धि, भुगतान संतुलन का बिगड़ना आदि।

अभिस्थलीय प्रभाव (On-site Effects)
जब किसी स्थान पर मृदा अपरदन होता है तो इससे फसलों के विकास तथा फसलों के उत्पादन पर प्रभाव पड़ता है| इसका कारण यह है कि मृदा अपरदन के कारण मृदा में कमी हो जाती है जिससे फसलों के लिए पौषिक तत्वों की कमी हो जाती है इसके साथ मृदा में जैविक पदार्थों की भी कमी हो जाती है जिसके कारण फसलें बढ़ नहीं पाती जिसके फलस्वरूप उत्पादन में कमी आती है| मृदा के अपरदन से मृदा सरंचना भी प्रभावित होती है|

अपस्थलीय प्रभाव (Off-site Effects)
मृदा के अपरदन के कारण जब मृदा के कण स्थानांतरित होकर किसी एक स्थान पर एकत्र हो जाते हैं तब उस स्थान पर मृदा की उपरी परत मोटी हो जाती है इससे बीजों के अंकुरण पर प्रभाव पड़ता है क्योंकि अब अंकुरित होने के लिए बीजों को मृदा की मोती परत को भेदना पड़ेगा|