राजमा की खेती

आजकल पूरे देश में शाकाहारी भोजन में राजमा का चलन बढ़ता जा रहा है. राजमा एक ओर जहां खाने में स्वादिष्ठ और स्वास्थ्यवर्धक है, वहीं दूसरी ओर मुनाफे के लिहाज से किसानों के लिए बहुत अच्छी दलहनी फसल है, जो मिट्टी की बिगड़ती हुई सेहत को भी कुछ हद तक सुधारने का माद्दा रखती है. इस के दानों का बाजार मूल्य दूसरी दलहनी फसलों की बनिस्बत कई गुना ज्यादा होता है. राजमा की खेती परंपरागत ढंग से देश के पहाड़ी क्षेत्रों में की जाती है, पर इस फसल की नवीनतम प्रजातियों के विकास के बाद इसे उत्तरी भारत के मैदानी भागों में भी सफलतापूर्वक उगाया जाने लगा है. थोड़ी जानकारी व सावधानी इस फसल में रखना महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यह फसल जहां एक ओर दूसरी दलहनी फसलों के बजाय सर्दियों के प्रति अधिक संवेदी है, तो वहीं दूसरी ओर इस की जड़ों में नाइट्रोजन एकत्रीकरण की क्षमता भी कम पाई जाती है.

जलवायु
 भारत में रबी की ऋतू में राजमा की खेती का प्रचलन मैदानी क्षेत्र में विगत कुछ वर्षों से हुआ है . इस फसल को अभी कुछ वर्षों से ही मान्यता मिली है , इसे दाल के काम में लाते हैं , इसकी हरी फलियों का उपयोग सब्जी के रूप में किया जाता है और भूसे का उपयोग पशुओं के लिए किया जाता है . इसके दानों में प्रोटीन की मात्रा 24 प्रतिशत तक रहती है . 
भूमि 
दोमट तथा हलकी दोमट भूमि उपयुक्त है , पानी के निकास की उत्तम व्यवस्था होनी चाहिए . भूमि का पी एच मान . 6.5-7.5 हो तो अच्छी मानी जाती है . लवणीय सोडिक भूमि उचित नहीं होती . 
भूमि की  तैयारी 
 प्रथम जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से 2-3 जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करने पर खेत तैयार हो जाता है तथा , बोवाई के समय भूमि में पर्याप्त नमी अति आवश्यक है , राजमा महीन भूमि की तैयारी चाहता है . राजमा की खेती रबी ऋतु में की जाती है। अभी इसके लिए उपयुक्त समय है। यह मैदानी क्षेत्रों में अधिक उगाया जाता है। राजमा की अच्छी पैदावार हेतु 10 से 27 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान की आवश्यकता पड़ती है। राजमा हल्की दोमट मिट्टी से लेकर भारी चिकनी मिट्टी तक में उगाया जा सकता है।
बीज दर
बीज दर की बात है, तो इस की खेती के लिए 120-140 किलोग्राम बीज की प्रति हेक्टेयर जरूरत होती है. खास बात यह है कि राजमा से अधिकतम उत्पादन लेने के लिए ढाई से साढ़े 3 लाख पौधे प्रति हेक्टेयर जरूरी होते हैं. पौधों की यह संख्या दानों के भार के अनुसार हासिल की जा सकती है.खरीफ की फसल के बाद खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा बाद में दो-तीन जुताई कल्टीवेटर या देशी हल से करनी चाहिए। खेत को समतल करते हुए पाटा लगाकर भुरभुरा बना लेना चाहिए इसके पश्चात ही बुआई करनी चाहिए।
राजमा उन्नतशील प्रजातियां है
तराइ एवं भावरः- फरवरी का प्रथम पखवाडा़ जायद में एवं अक्टबूर का दसूरा पखवाडा़ रबी में।

पर्वतीय क्षेत्रः- जनू का द्वितीय पखवाडा़ खरीफ में।

बीज की मात्राः- 75-80 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर।

राजमा में प्रजातियां जैसे कि पीडीआर 14, इसे उदय भी कहते है। मालवीय 137, बीएल 63, अम्बर, आईआईपीआर 96-4, उत्कर्ष, आईआईपीआर 98-5, एचपीआर 35, बी, एल 63 एवं अरुण है।

 

- राजमा के बीज की मात्र 120 से 140 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर लगती है। बीजोपचार 2 से 2.5 ग्राम थीरम से प्रति किलोग्राम बीज की मात्र के हिसाब से बीज शोधन करना चाहिए।

- राजमा की बुआई बुआई लाइनों में करनी चाहिएढ्ढ लाइन से लाइन की दूरी 30 से 40 सेंट मीटर रखते है, पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखते है। इसकी बुआई 8 से 10 सेंटीमीटर की गहराई पर करते हैं।

खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग

राजमा के लिए 120 किलोग्राम नत्रजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस एवं 30 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर तत्व के रूप में देना आवश्यक है। नेत्रजन की आधी मात्रा, फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुआई के समय तथा बची आधी नेत्रजन की आधी मात्रा खड़ी फसल में देनी चाहिए। इसके साथ ही 20 किलोग्राम गंधक की मात्रा देने से लाभकारी परिणाम मिलते है। 20 प्रतिशत यूरिया के घोल का छिड़काव बुवाई के बाद 30 दिन तथा 50 दिन में करने पर उपज अच्छी मिलती है।

¨सचाई कब करनी चाहिए और कितनी मात्रा में करनी चाहिए

राजमा में 2 या 3 ¨सचाई की आवश्यकता पड़ती है। बुआई के 4 सप्ताह बाद प्रथम ¨सचाई हल्की करनी चाहिए। बाद में ¨सचाई एक माह बाद के अंतराल पर करनी चाहिए खेत में पानी कभी नहीं ठहरना चाहिए।

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